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निरक्त कोश
वादः
दृष्टयो-दर्शनानि नया उद्यन्ते-अभिधीयन्ते यस्मिन्नसौ दृष्टि
(स्थाटी प १६२) जिसमें अनेक दृष्टियों/दर्शनों का कथन है, वह दृष्टिवाद बारहवां अंग (आगम) है। ७६८. दिट्टिवाअ ((दृष्टिपात)
सवणतदिछीओ तत्थ पतंति त्ति दिट्ठिवातो। (नंचू पृ ७१) दृष्टयो-दर्शनानि नया पतन्ति-अवतरन्ति यस्मिन्नसौ दृष्पिातः।
__(स्थाटी प १९२) जिसमें अनेक दृष्टियां/दर्शन पतित/अवतरित हैं, वह दृष्टि
पात/दृष्टिवाद है। ७६६. दिळंत (दृष्टान्त) दीसंति अणेण अत्था तेण दिळंतो।
(दजिचू ) जिसके द्वारा अर्थ दृष्ट/ज्ञात होता है, वह दृष्टांत/उदाहरण
दृष्टमर्थमन्तं नयतीति दृष्टान्तः ।
(दटी प ३४) जो दृष्ट अर्थ की पुष्टि करता है, वह दृष्टांत है। ८००. दिणयर (दिनकर) दिनं करोतीति दिनकरः।
(अनुद्वामटी प २१) जो दिन को करता है, वह दिनकर सूर्य है । ८०१. दिय (द्विज) दो जम्माणि जस्स सो दिओ।
(आचू पृ २२६) गर्भादण्डाच्च द्विर्वा जातो द्विजः। (सूचू १ पृ २२८)
जो गर्भ से और अंडे से-इस प्रकार दो बार उत्पन्न होता है, वह द्विज/पक्षी है। ८०२. दिव्व (दिव्य) अक्षर्दोव्यतीति दिव्यम् ।
(सूचू १ पृ ६६) जो हारजीत के लिए पाशों से खेला जाता है, वह दिव्य/ जूआ है।
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