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________________ निरक्त कोश ५०३. गिरि (गिरि) गृणाति गिरंति वा तस्मिन् गिरी। (उचू पृ २०८) जो गिरा/वाणी को प्रतिध्वनित करता है, वह गिरि/पर्वत गृणन्ति-शब्दायन्ते जननिवासभूतत्वेनेति गिरयः । (भटी प ३०६,७) पर्वत निवासी मनुष्यों के द्वारा जो शब्दायमान रहते हैं, वे गिरि पर्वत हैं। ५०४. गिह (गृह) गृह्णातीति गृहम् । (उचू पृ २१६) ___ जो ग्रहण करता है, वह गृह है । ५०५. गिहत्थ (गृहस्थ) गृहे गृहलिङ्ग तिष्ठतीति गृहस्थः। (व्यभा ४/२ टी ५ २६) जो घर में रहते हैं, वे गृहस्थ हैं। जो गृहस्थवेश में रहते हैं, वे गृहस्थ हैं। ५०६. गिहि (गृहिन्) गिहाणि संति जेसि ते गिहिणो । (दअचू पृ २५१) जिनके घर हैं, वे गृही/गृहस्थ हैं। गिहं-पुत्त-दारं, तं जस्स अत्थि सो गिही। (दअचू प २६६) जिसके गृह/पुत्र-पत्नी है, वह गृही है। धर्मार्थकामान् गृह्णातीति गृही। (उचू प १३८) __ जो धर्म, अर्थ और काम का ग्रहण/आसेवन करता है, वह .. गृही है। १. गृह्णाति पुरुषोपार्जितं द्रव्यमिति गृहम् । (अचि पृ २१६) जो पुरुष द्वारा उपाजित द्रव्य/धन को ग्रहण करता है, उसका व्यय करता है, वह गृह है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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