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प्रस्तावना
शास्त्रीय वाङ्मय का विस्तार जितनी मात्रा में होता है उतनी ही मात्रा में ज्ञान की परिधि बढ़ती जाती है । विषयों के वर्गीकरण तथा विशेष वर्गों में पुनः आन्तरिक अध्ययन से ज्ञान और अगाध होता जाता है । कुछ बहुश्रुत विशेषज्ञ तो इस ज्ञानसागर का आंशिक अवगाहन कर पाते हैं, परन्तु अधिकांश शिक्षित समुदाय के लिए उसमें उतरना संभव नहीं हो पाता । उसके लिए किसी और प्रकार का सोपान चाहिए जिससे वह ज्ञानसमुद्र में उतर सके । अतः सामान्य शिक्षित लोगों की सहायता के लिए सन्दर्भ और कोश ग्रंथों की आवश्यकता होती है । इनके द्वारा सामान्य शिक्षित व्यक्ति अपने संकीर्ण अध्ययनक्षेत्र के बाहर से भी संक्षिप्त ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रायः सभी विकसित भाषाओं में कोश और विश्वकोश निर्मित करने के प्रयास होते रहे हैं । सम्पूर्ण वाङ्मय के कोश और शब्दकोश बनते आये है। अंग्रेजी तथा अन्य समृद्ध भाषाओं में इस प्रकार का प्रचुर साहित्य निर्मित हो चुका है। भारतीय वाङ्मय में भी शब्दकोश तथा विश्वकोश बनाने की परम्परा रही है। संस्कृत में अनेक प्रकार तथा आकार के शब्दकोश एवं पर्यायकोश पाये जाते हैं । संग्रह, निबंध, सार आदि विषयगत कोश भी संस्कृत में मिलते हैं । महाभारत, पुराणादि विश्वकोश शैली के आकर ग्रन्थ हैं । इनमें विविध विषयों पर प्रचुर सामग्री का संकलन पाया जाता हैं। अमरकोश वर्गीकृत पर्यायकोश है। लक्ष्मीधर का कृत्यकल्पतरु, मित्रमित्र का वीरमित्रोदय, हेमाद्रि पन्त का चतुर्वगं चिन्तामणि आदि निबन्ध ग्रंथ विश्वकोश शैली के ही हैं, यद्यपि ये अक्षरक्रम में न होकर विषयक्रम से लिखे गये हैं । माधवाचार्य के सर्वदर्शनसंग्रह आदि मिलते-जुलते प्रयत्न हैं । इन सभी का उद्देश्य यही था कि किसी या किन्हीं विषयों के विस्तृत ज्ञान की सामग्री एकत्र उपलब्ध हो सके।
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हिन्दी भाषा में भी कोश और विश्वकोश बनाने के प्रयत्न पहले से प्रारम्भ हो चुके हैं । कुछ छिटपुट शब्दकोशों के पश्चात् काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित 'हिन्दी शब्दसागर' तथा 'संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर' प्रसिद्ध कोश हैं । कलकत्ते से डॉ० नगेन्द्रनाथ वसु द्वारा छब्बीस भागों में रचित एवं प्रकाशित 'हिन्दी विश्वकोश' एक विराट् कृति है । मुख्यतः एक व्यक्ति का यह प्रयास वास्तव में आश्चर्यजनक और सराहनीय है। इस ग्रन्थ का प्रणयन १९१६ ई० में प्रारम्भ हुआ था। डॉ० बसु ने इस ग्रन्थ की भूमिका में कहा है कि यह किसी अन्य ग्रन्थका अनुवाद न होकर स्वतंत्र रचना है और हिन्दी में इसका प्रणयन इसलिए किया गया कि हिन्दी आगे चलकर राष्ट्रभाषा बनेगी । वास्तव में विश्वकोश किसी भी राष्ट्रभाषा के गौरवग्रन्थ हैं । इनसे ही राष्ट्र की ज्ञानगरिमा का परिचय एकत्र मिलता है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित 'हिन्दी विश्वकोश' इसी दिशा में एक दूसरा प्रशंसनीय प्रयास है। लखनऊ से प्रकाशित 'विश्व भारती' और जामिया मिल्लिया दिल्ली से प्रकाशित 'ज्ञानगंगा' उल्लेखनीय कृतियां हैं ज्ञानमण्डल, वाराणसी से प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य कोश' विषयगत कोश की दिशा में पहला मूल्यवान् प्रयास है फिर भी हिन्दी में विषयगत कोशों का प्रायः अभाव ही है। हिन्दी में धर्मसाहित्य का भी कोई कोश अथवा विश्वकोश नहीं बन पाया है । ज्ञानमण्डल, वाराणसी से प्रकाशित 'हिन्दुत्व' हिन्दू धार्मिक साहित्य का संक्षिप्त विवरणात्मक परिचय है, कोश नहीं उसकी संग्रथन शैली भी अक्षरक्रमिक न होकर ऐतिहासिक तिथिक्रमिक है । अतः हिन्दी में 'हिन्दू धर्मकोश' की वांछनीयता बनी रही और इसके अभाव का अनुभव हो रहा था । प्रस्तुत प्रयास इसी दिशा में प्रथम चरण है। हेस्टिग्ज् द्वारा सम्पादित 'धर्म- नीति विश्वकोश' (इन्साइक्लोपीडिया ऑफ रेलिजन एण्ड ईथिक्स) के सम्मुख तो यह बाल प्रथम चरण है । यदि राष्ट्र का सामूहिक साहस जगा तो इस प्रकार का महाप्रयास भी संभव हो सकेगा। आज से दस वर्ष पूर्व मैंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के लिए 'धर्म- नीति विश्वकोश' की योजना प्रस्तुत की थी । परन्तु यह कार्य कई कारणों से आगे नहीं बढ़ा । अभी भविष्य उसकी प्रतीक्षा में है ।
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