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अष्टमङ्गल-अष्टाङ्गयोग
अष्टमङ्गल-आठ प्रकार के मङ्गलद्रव्य या शुभकारक [अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा, भूमि, जल, वायु, यजमान, वस्तुएँ । नन्दिकेश्वर पराणोक्त दुर्गोत्सवपद्धति में कथन है : आकाश ये आठ महादेव की मतियाँ हैं।।
मृगराजो वृषो नागः कलशो व्यजनं तथा । अष्टश्रवा-जिनके आठ कान हैं; ब्रह्मा का एक उपनाम । वैजयन्ती तथा भेरी दीप इत्यष्टमङ्गलम् ।।
चार मुख वाले ब्रह्मा के प्रत्येक मुख के दो दो कान होने के [सिंह, बैल, हाथी, कलश, पंखा, वैजयन्ती, ढोल तथा कारण उनको आठ कानों वाला कहते हैं। . दीपक ये आठ मङ्गल कहे गये है।]
अष्टाकपाल-आठ कपालों ( मिट्टी के तसलों) में पका शुद्धितत्त्व में भिन्न प्रकार से कहा गया है :
हआ होमान्न । यह एक यज्ञकर्म भी है, जिसमें आठ लोकेस्मिन् मङ्गलान्यष्टौ ब्राह्मणो गौर्हताशनः ।।
कपालों में पुरोडाश (रोट ) पकाकर हवन किया हिरण्यं सर्पिरादित्य आपो राजा तथाष्टमः ॥
जाता है। [ इस लोक में ब्राह्मण, गौ, अग्नि, सोना, घी, सूर्य, जल
अष्टाङ्ग-देवदर्शन की एक विधि, जिसमें शरीर के आठ तथा राजा ये आठ मङ्गल कहे गये हैं।
अंगों से परिक्रमा या प्रणाम किया जाता है। आत्मअष्टमी-आठवीं तिथि, यह चन्द्रमा की आठ कला-क्रिया
उद्धार अथवा आत्मसमर्पण की रीतियों में 'अष्टाङ्ग रूप है । शुक्ल पक्ष में अष्टमी नवमी से युक्त ग्रहण करनी
प्रणिपात' भी एक है। इसका अर्थ है (१) आठों अङ्गों से चाहिए। कृष्ण पक्ष की अष्टमी सप्तमी से युक्त ग्रहण
( पेट के बल ) गुरु या देवता के प्रसन्न तार्थ सामने लेट करनी चाहिए, यथा :
जाना। (२) इसी रूप में पुनः पुनः लेटते हुए एक स्थान कृष्णपक्षेऽष्टमी चैव कृष्णपक्षे चतुर्दशी।
से दूसरे स्थान पर जाना। इसके अनुसार किसी पूर्वविद्धैव कर्तव्या परविद्धा न कुत्रचित् ॥
पवित्र वस्तु की परिक्रमा या दण्डवत् प्रणाम उपर्युक्त रीति उपवासादिकार्येषु एष धर्मः सनातनः ।। से किया जाता है। अष्टाङ्ग-परिक्रमा बहुत पुण्यदायिनी [उपवास आदि कार्यों में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तथा मानी जाती है । साधारण जन इसको 'डंडौती देना' कहते कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पूर्वविद्धा ही लेनी चाहिए न कि हैं। इसका विवरण यों है : परविद्धा । यही परम्परागत रीति है । ]
उरसा शिरसा दृष्टया मनसा वचसा तथा । अष्टमीव्रत-लगभग तीस अष्टमीव्रत हैं, जिनका उचित पद्भ्यां कराभ्यां जानुभ्यां प्रणामोऽष्टांग उच्यते ॥
नों पर उल्लेख किया गया है। सामान्य नियम यह है छाती, मस्तक, नेत्र, मन, वचन, पैर, जंघा और कि शुक्ल पक्ष की नवमीविद्धा अष्टमी को प्राथमिकता हाथ-~-आठ अंगों से झुकने पर अष्टांग प्रणाम होता है।] प्रदान की जाय तथा कृष्ण पक्ष में सप्तमीसंयुक्त अष्टमी (स्त्रियों को पञ्चांग प्रणाम करने का विधान है।) ली जाय । दे० तिथितत्त्व, ४०, धर्मसिन्धु, १५, हेमाद्रि, अष्टाङयोग-(१) पतञ्जलि के निर्देशानसार आठ अंगों व्रतखण्ड, १.८११-८८६ ।
की योग साधना । इसके आठ अङ्ग निम्नांकित है : अष्टमूर्ति-शिव का एक नाम । उनकी आठ मूर्तियों के १. यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) निम्नांकित नाम हैं :
२. नियम (शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर(१) क्षितिमूर्ति शर्व, (२) जलमूर्ति भव, (३) अग्नि
प्रणिधान) मूर्ति रुद्र, (५) वायुमूर्ति उग्र, (५) आकाशमूर्ति भीम, ३. आसन (स्थिरता तथा सुख से बैठना) (६) यजमानमूर्ति पशुपति, (७) चन्द्रमूर्ति महादेव और ४. प्राणायाम (श्वास का नियमन-रेचक, पूरक तथा (८) सूर्यमूर्ति ईशान । शरभरूपी शिव के ये आठ चरण
कुम्भक) भी कहे गये हैं। दे० कालिकापुराण और तन्त्रशास्त्र । ५. प्रत्याहार (इन्द्रियों का अपने विषयों से प्रत्यावर्तन) शिव की आठ मूर्तियाँ इस प्रकार भी कही गयी हैं : ६. धारणा (चित्त को किसी स्थान में स्थिर करना)
अथाग्निः रविरिन्दुश्च भूमिरापः प्रभञ्जनः । ७. ध्यान (किसी स्थान में ध्येय वस्तु का ज्ञान जब एक यजमानः खमौ च महादेवस्य मूर्तयः ।।
प्रवाह में संलग्न है, तब उसे ध्यान कहते हैं ।
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