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________________ अश्वमेधिक-अश्विनौ रानी उठ खड़ी होती, त्यों ही चातुरीपूर्वक यज्ञ-अश्व काट दिया जाता था । अनेकों अबोधगम्य कृत्यों के पश्चात्, जिसमें सभी पुरोहित एवं यज्ञ करनेवाले सम्मिलित होते थे, अश्व के विभिन्न भागों को भूनकर प्रजापति को आहुति दी जाती थी । तीसरे दिन यज्ञकर्त्ता को विशुद्धिस्नान कराया जाता, जिसके बाद वह यश कराने वाले पुरोहितों तथा ब्राह्मणों को दान देता था । दक्षिणा जीते हुए देशों से प्राप्त धन का एक भाग होती थी। कहीं-कहीं दासियों सहित रानियों को भी उपहार सामग्री के रूप में दिये जाने का उल्लेख पाया जाता है । अश्वमेध ब्रह्महत्या आदि पापक्षय, स्वर्ग प्राप्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए भी किया जाता था। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद अश्वमेध प्रायः बन्द ही हो गया। इसके परवर्ती उल्लेख प्रायः परम्परागत हैं। इनमें भी इस यज्ञ के बहुत से धौत अङ्ग संपन्न नहीं श्रौत होते थे । अवमेधिक अपयमेध याग के उपयुक्त घोड़ा। देखिए 'अश्वमेध' । अश्वयुज् (क) — अश्विनी नक्षत्र आश्विन मास । अश्वल - विदेहराज जनक का पुरोहित जो बृहदारण्यक उप निषद् में एक प्रामाणिक विद्वान् कहा गया है। ऋग्वेद के श्रोत सूत्रों में सबसे प्रथम आश्वलायन श्रौतसूत्र समझा जाता है, जो बारह अध्यायों में विभक्त है। कुछ लोगों का कहना है कि अश्वल ऋषि ही उस सूत्रग्रन्थ के रचयिता हैं । ऐतरेय आरण्यक के चौथे काण्ड के प्रणेता का नाम भी आश्वलायन है । अन्धव्रत- यह संवत्सर व्रत है। इसका इन्द्र देवता है। दे० मत्स्य पुराण, १०१.७१ तथा हेमाद्रि, व्रत खण्ड । अश्विनौ ( अश्विन् ) - ये वैदिक आकाशीय देवता हैं और दो भाई है तथा इनका 'उषा' से समीपी सम्बन्ध है, क्योंकि तीनों का उदय एक साथ ही प्रातः काल होता है । निश्चय ही यह दिन-रात्रि का सन्धिकाल है क्योंकि अग्नि, उषा एवं सूर्य के उदय काल का अश्विन के उदयकाल से साम्य है ( ऋ० १.१५७ ) । सूर्य की पुत्री तीन बैठकों से युक्त अश्विन के रथ में सवार होती हैं' (ऋ० १. २४.५ आदि ) । आशय यह है कि उषा ( पौ फटना ) एवं सन्धिकालीन धीमा प्रकाश ( प्रातःकालीन नक्षत्र अश्विनी) दोनों एक ही काल में प्रकट होते हैं। इस ----- Jain Education International ६३ प्रकार साथ-साथ उदय से उषा एवं अश्विनी भाइयों में प्रेम का आरोपण किया गया गया है और उषा देवी ने दोनों अश्वारोहियों को अपना सहयोगी चुना है । समस्या और भी उलझ जाती है जब कि सूर्यपुत्री को अश्विनौ की बहिन तथा पत्नी दोनों कहा जाता है ( ऋ० १. १८०.२ ) । वास्तव में यह सम्पूर्ण वर्णन आलंकारिक और रूपकात्मक है | अश्विनों के वाहन अश्व ही नहीं, अपितु पक्षी भी कहे गये हैं । उनका रथ मधु हाँकता है । उसके हाथ में मधु का ही कोड़ा है । ओल्डेनबर्ग ने इसका अर्थ प्रातःकालीन ओस - बूँदें तथा ग्रिफिथ ने जीवनदायक प्रभात वायु लगाया है। उनके वाहन पक्षी रक्त वर्ण के हैं। उनका पथ रक्तवर्ण एवं स्वर्णवर्ण है । अश्विनौ का जो भी भौतिक आधार हो, वे स्पष्टतः उषा एवं दिन के अग्रदूत हैं । 7 इनका दूसरा पक्ष है दुःख से मुक्ति देना एवं आश्चर्यजनक कार्य करना । अश्विनी विपत्ति में सहायता करते हैं। वे देवताओं के चिकित्सक हैं जो प्रत्येक रोग से मुक्ति देते हैं खोयी हुई दृष्टि दान करते हैं, शारीरिक क्षतों को पूरते हैं और अस्वास्थ्यकारी एवं पीड़क बाणों से बचाते हैं । वे गौ एवं अश्व-धन से परिपूर्ण हैं एवं उनका रथ धन एवं भोजन से भरा रहता है । इनके दुःख से मुक्ति देने के चार उदाहरण ऋग्वेद ( ७.७१. ५) में दिये हुए हैं उन्होंने बूढ़े महर्षि च्यवन को युवक बना दिया, उनके जीवन को बढ़ा दिया तथा उन्हें अनेक कुमारियों का पति होने में समर्थ बनाया । इन्होंने जलते हुए अग्निकुण्ड से अत्रि का उद्धार किया । : अश्विनौ के वंश का विविधता से वर्णन मिलता है । कई बार उन्हें द्यौ की सन्तान कहा गया है । एक स्थान पर सिन्धु को उनकी जननी कहा गया है ( निःसन्देह यह आकाशीय सिन्धु है और इसका सम्भवतः अर्थ है आकाश का पुत्र ) । एक स्थान पर उन्हें विवस्वान् की जुड़वाँ सन्तान कहा गया है। अश्विनौ का निकट सम्बन्ध प्रेम, विवाह, पुरुषत्व एवं संतान से है वे सोम एवं सूर्या के विवाह में वर के मध्यस्थ के रूप से प्रस्तुत किये गये हैं । वे सूर्या को अपने रथ पर लाये । इस प्रकार वे नवविवाहिताओं को वरगृह में लाने का कार्य करते हैं । वे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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