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हिन्दुत्व
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था। यह शब्द सबसे पहले 'जेन्दावस्ता' ( छन्दावस्था) पारसी धर्मग्रन्थ में मिलता है । फारसी व्याकरण के अनुसार संस्कृत का 'स' अक्षर 'ह' में परिवर्तित हो जाता है। इसी कारण 'सिन्धु' 'हिन्दु' हो गया। पहले 'हेन्दु' अथवा 'हिन्द' के रहनेवाले 'हैन्दव' अथवा 'हिन्दू' कहलाये। धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत के लिए इसका प्रयोग होने लगा, क्योंकि भारत के पश्चिमोत्तर के देशों के साथ सम्पर्क का यही एकमात्र द्वार था। इसी प्रकार व्यापक रूप में भारत में रहनेवाले लोगों का धर्म हिन्दू धर्म कहलाया।
फारसी भाषा में 'हिन्दू' शब्द के कुछ अन्य घृणासूचक अर्थ भी पाये जाते हैं, यथा डाकू, सेवक, दास, पहरेदार, काफिर ( नास्तिक ) आदि । ये अर्थ अवश्य ही जातीय द्वेष के परिणाम हैं। पश्चिमोत्तर सीमा के लोग प्रायः बराबर साहसी और लड़ाकू प्रवृत्ति के रहे हैं। अतः वे फारस के आक्रामक, व्यापारी और यात्री सभी को कष्ट देते रहे होंगे। इसीलिए फारसवाले उन्हें डाकू कहते थे और जब फारस ने इस्लाम स्वीकार किया तो नये जोश - में उनको काफिर ( नास्तिक) भी कहा। परन्तु जैसा पहले लिखा जा चुका है, 'हिन्दू' का तात्पर्य शुद्ध भौगो- लिक था। __ अब प्रश्न यह है कि आज 'हिन्दू' और 'हिन्दूधर्म' किसे कहना चाहिए। इसका मल अर्थ भौगोलिक है। इसको स्वीकार किया जाय तो हिन्द ( भारत ) का रहनेवाला 'हिन्दू' और उसका धर्म 'हिन्दुत्व' है। मस्लिम आक्रमणों के पूर्व भारत में इस अर्थ की परम्परा बराबर चलती रही। जितनी जातियाँ बाहर से आयीं उन्होंने 'हिन्दु' जाति और 'हिन्दुत्व' धर्म स्वीकार किया। इस देश में बहुत से परम्परावादी और परम्पराविरोधी आन्दोलन भी चले, किन्तु वे सब मिल-जुल कर 'हिन्दुत्व' में ही विलीन हो गये। वैदिक धर्म ही यहाँ का प्राचीनतम सुव्यवस्थित धर्म था जिसने क्रमशः अन्य आर्येतर धर्मों को प्रभावित किया और उनसे स्वयं प्रभावित हआ। बौद्ध और जैन आदि परम्परा विरोधी धार्मिक तथा दार्शनिक आन्दोलनों का उदय हुआ। किन्तु कुछ ही शताब्दियों में वे मूल स्कन्ध के साथ पुनः मिल गये। सब मिलाकर जो धर्म बना वहीं हिन्दू धर्म है। यह न तो केवल मूल
वैदिक धर्म है और न आर्येतर जातियों की धार्मिक प्रथा अथवा विविध विश्वास, और नहीं बौद्ध अथवा जैन धर्म; यह सभी का पञ्चमेल और समन्वय है। इसमें पौराणिक तथा तान्त्रिक तत्त्व जुटते गये और परवर्ती धार्मिक सम्प्रदायों, संतों, महात्माओं और आचार्यों ने अपने-अपने समय में इसके विस्तार और परिष्कार में योग दिया। 'प्रवर्तक धर्म' होने के कारण इस्लाम और ईसाई धर्म हिन्दू धर्म के महामिलन में सम्मिलित होने के लिए न पहले तैयार थे और न आजकल तैयार हैं। किंतु जहाँ तक हिंदुत्व का प्रश्न है, इसने कई मुहम्मदी और मसीही उप-सम्प्रदायों को 'हिन्दू धर्म' में सम्मिलित कर लिया है। इस प्रकार हिंदुत्व अथवा हिन्दू धर्म वर्द्धमान विकसनशील, उदार और विवेकपूर्ण समन्वयवादी (अनुकरणवादी नहीं ) धर्म है।
हिन्दू और हिन्दुत्व की एक परिभाषा लोकमान्य तिलक ने प्रस्तुत की थी, जो निम्नाङ्कित है :
आसिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभमिका । पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ॥
[सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु ( हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू ( अथवा मातृभूमि ) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि ) है, वह 'हिन्दू' कहलाता है ( और उसका धर्म हिन्दुत्व )।]
सम्पूर्ण हिन्दू तो ऐसा मानते ही हैं। यहाँ बसनेवाले मुसलमान और ईसाइयों की पितृभूमि ( पूर्वजों की भूमि ) भारत है ही। यदि इसे वे पुण्यभूमि भी मान लें तो हिन्द की समस्त जनता हिन्दू और उनका समन्वित धर्म हिन्दुत्व माना जा सकता है। यह सत्य केवल राजनीति की दृष्टि से ही नहीं धर्म और शान्ति की दृष्टि से भी वांछनीय है। भारत की यही धार्मिक साधना रही है। परन्तु इसमें अभी कई अन्तर्द्वन्द्व वर्तमान और संघर्षशील हैं। अभी वांछनीय समन्वय के लिए अधिक समय और अनुभव की अपेक्षा है।
अन्तर्द्वन्द्व तथा अपवादों को छोड़ देने के पश्चात् अपने अपने विविध सम्प्रदायों को मानते हुए भी हिन्दुत्व की सर्वतोनिष्ठ मान्यताएँ हैं, जिनको स्वीकार करनेवाले हिन्दू कहलाते हैं। सर्वप्रथम, हिन्दू को निगम ( वेद ) और आगम (तर्कमूलक दर्शन ) दोनों और कम से कम दोनों
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