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बराम-बलि
उत्पादनशक्ति प्रति वर्ष फसलों की उपज से ह्रास को और कहीं-कहीं विष्णु के अवतारों में भी इनकी प्राप्त होती रहती है। इसे पुनः सञ्चित करने तथा गणना है। पृथ्वी को उर्वरा बनाने के लिए कृषक वर्ग में अनेक प्रकार बलरामदास-सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक चालीस वर्षों की पूजाएँ की जाती हैं। नर्मदा-तापी की घाटी में रहने में बङ्गाल में चैतन्य मतावलम्बी अनेक प्रशस्तिकाव्यलेखक वाली 'पावरा' नामक जाति फसल कटने के पहले 'बरा- हुए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कवि गोविन्ददास हैं । बलरामकुम्बा' और 'रानो काजल' ( देव-दम्पति) को अनाज दास इनके समकालीन थे, जिन्होंने एक महत्त्वपूर्ण स्तुतिसमर्पित करती हैं। ये देवदम्पति दो समीपी वक्षों पर ग्रन्थ की रचना की। वास करते हैं । विवाह के गीतों में भी इनके विवाह की बलाका-बलाका ( बगुला पक्षियों के झुण्ड ) का उल्लेख गाथा होती है।
तैत्ति० सं० (६.२४,५ एवं वाजस० सं० २४.२२, २३) बराम-क्योंझर ( उड़ीसा प्रदेश) की जुआङ्ग नामक
में अश्वमेध की बलितालिका के अन्तर्गत हआ है। वनवासी जाति का वनदेवता 'बराम' है। अपने इस बलात्कार-अनुचित रीति से बल का प्रयोग करके छीनासर्वश्रेष्ठ देवता की वे बहुत सम्मानपूर्वक पूजा करते हैं। झपटी, मारपीट, अत्याचार करना । धर्मशास्त्र में यह बरु-ऋग्वेदीय ब्राह्मणों (ऐत० ब्रा० ६.१५; कौ० वा. अपराधों में गिना गया है । स्त्रीप्रसङ्ग अथवा ऋण वसूल २५.८) के अनुसार बरु दशम मण्डल के ९६ संख्यक करने का अनुचित प्रकार भी बलात्कार कहलाता है । सूक्त के प्रवचनकर्ता हैं।
धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों में वादों की सूची में इसकी बल-(१) श्री कृष्ण के बड़े भाई। दे० 'बलराम'। गणना है।
(२) एक असुर का नाम, जिसका वध इन्द्र ने किया। बलाय-यजुर्वेद ( वाजस० सं० २४.३८, मैत्रा० सं० उनका एक नाम बलाराति इसी कारण हुआ है। ३.१४,१९) के अनुसार अश्वमेध यज्ञ के बलिपशुओं की बलदेव-(१) श्री कृष्ण के अग्रज, बलराम ।
__तालिका में उद्धृत एक अज्ञात पशु का नाम । (२) अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में पं० बलदेव बलि-(१) उपहार या नैवेद्य की वस्तु । बलि का उल्लेख विद्याभूषण ने चैतन्य सम्प्रदाय के उपयोग के लिए वेदान्त- अनेकों बार ऋग्वेद (१.७०,९; ५.१.१० ८.१००.९ सत्र पर 'गोविन्दभाष्य' की रचना की। इनके दार्शनिक एक देवता के लिए; ७.६,५; १०.१७३,६ एक राजा के मत का नाम 'अचिन्त्यभेदाभेद' है। इसके अनसार ईश्वर लिए) तथा अन्य ग्रन्थों में हुआ है। बलि प्रदान इच्छातथा आत्मा का सम्बन्ध अचिन्त्य है अर्थात् इसकी नुसार किया जाता था। उसके ऐच्छिक स्वरूप की परिकल्पना नहीं की जा सकती। यह कहना भी कठिन है कि णति राजा की उत्पत्ति में हुई, जिसने नियमित रूप से बलि ईश्वर और प्रकृति का भेद सत्य है अथवा असत्य । (उत्पादन का एक भाग) लेना आरम्भ किया। इसके बलराम-नारायणीयोपाख्यान में वर्णित व्यूहसिद्धान्त के बदले में उससे प्रजावर्ग सुरक्षा प्राप्त करता था। इसी अनुसार विष्ण के चार रूपों में दूसरा रूप 'संकर्षण' प्रकार देवों को बलि देना स्वेच्छया होता था, जिसे वे (प्रकृति = आदितत्त्व) है । संकर्षण बलराम का अन्य नाम देवताओं द्वारा किये गये महान् अनुग्रह का देय 'कर' समहै जो कृष्ण के भाई थे। संकर्षण के बाद प्रद्यम्न तथा झते थे । यज्ञों में अनेक प्रकार की बलियों का वर्णन है। अनिरुद्ध का नाम आता है जो क्रमशः मनस् एवं अहंकार (२) प्रसिद्ध दानवराज । यह प्रह्लाद का पौत्र और के प्रतीक तथा कृष्ण के पुत्र एवं पौत्र हैं । ये सभी देवता के विरोचन का पुत्र था। इसने अपने गुरु शुक्राचार्य के मन्त्र रूप में पूजे जाते हैं । इन सबके आधार पर चतुर्ग्रह सिद्धान्त । और अपनी शक्ति से तीनों लोकों को जीत लिया। देवता की रचना हुई है। जगन्नाथजी की त्रिमूर्ति में कृष्ण, उससे त्रस्त थे, वे भगवान् विष्णु के पास अपनी रक्षा के सुभद्रा तथा बलराम तीनों साथ विराजमान हैं । इससे भी लिए गये । विष्णु दया करके कश्यप और अदिति से वामन बलराम की पूजा का प्रसार व्यापक क्षेत्र में प्रमाणित रूप में उत्पन्न हुए और तपस्वी ब्राह्मण का रूप धारण होता है।
कर बलि के पास गये, जो दान के लिए प्रसिद्ध था। सामान्यतया बलराम शेषनाग के अवतार माने जाते हैं वामन ने बलि से तीन पग भूमि माँगी । बलि ने सहर्ष
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