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चरण - वैदिक पाठवली के भेद से कर्मकाण्ड की विभिन्न शाखाओं अथवा पद्धतियों को चरण कहते हैं। उत्तर भारत के अधिकांश मन्दिरों में स्मार्त ब्राह्मण मूर्ति के पास जाकर अपने चरण के गृह्यसूत्र के निर्देशानुसार स्वतः पूजा कर सकते हैं ।
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चरणव्यूह - वेदों की शाखाओं के क्रमानुसार उनके ब्राह्मण, आरण्यक, सूत्र तथा उपवेद आदि का निर्देशक ग्रन्थ । यथा चरणव्यूह में कथन है :
द्वे सहस्रे शतम्पूने मन्त्रा वाजसनेयके । तावत्त्वन्येन संख्यातं बालखिल्यं सयुक्तिकम् । ब्राह्मणस्य समाख्यातं प्रोक्तमानाच्चतुर्गुणम् || [ वाजसनेय अर्थात् शुक्ल यजुर्वेदसंहिता में १९०० मंत्र हैं । बालखिल्य शाखा का भी यही परिमाण है। इन दोनों से चार गुना अधिक इनके ब्राह्मणों का परिमाण है । ] चरणव्यूह के अनुसार वेदों के चार उपवेद हैं । ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गान्धर्ववेद और अथर्ववेद का अर्थशास्त्र उपवेद है परन्तु सुश्रुत और चरक से अवगत होता है कि आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद हैं और अर्थवेद ऋग्वेद का
चरनदास - एक योग-ध्यानसाधक संत । १७३० ई० के लगभग इन्होंने एक सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसे ' चरन - दासी' सम्प्रदाय कहते हैं । इस सम्प्रदाय का आधार कबीरपन्थ के समान है । इन्होंने धर्मोपदेशमय अनेक हिन्दी कविता ग्रन्थों की रचना की है ।
चरनदास भार्गव ब्राह्मण तथा अलवर के रहने वाले थे । बाद में ये दिल्ली में रहने लगे। इनकी दो शिष्याएँ थीं; सहजोबाई और दयाबाई । दोनों ने पद्य में योग सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे हैं। चरनदास का जन्मसमय नागरीप्रचारिणी सभा की खोज के अनुसार संवत् १७६० है और ७८ वर्ष की अवस्था में संवत् १८३८ में इनका देहावसान हुआ। खोज में इनके निम्न ग्रन्थ मिले हैं
(१) अष्टांगयोग (२) नरसाकेत (३) सन्देहसागर (४) भक्तिसागर ( ५ ) हरिप्रकाश टीका (६) अमरलोक खण्डधाम ( ७ ) भक्तिपदारथ (८) शब्द (९) दानलीला (१०) मनविरक्तकरन गुटका (११) राममाला और (१२) ज्ञानस्वरोदय । चरनवासी यह योगमार्गी धार्मिक पन्थ है। नाथ सम्प्रदाय
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जैसे पाँव है, वैसे ही चरनदासी पन्य वैष्णव समझा जाता है । परन्तु इसका मुख्य साधन हठयोगसंवलित राजयोग है। उपासना में ये राधा-कृष्ण की भक्ति करते हैं, परन्तु योग की मुख्यता होने से इसे योगमत का ही एक पन्थ मानना चाहिए । इस पन्थ के प्रथमाचार्य शुकदेव जी कहे जाते हैं। चरनदास लिखते हैं कि मुझको शुकदेवजी के दर्शन हुए और उन्होंने मुझे अपना शिष्य बनाया और योग की शिक्षा दी ।
चरण- चाणक्य
चर्पटनाथ - नाथ सम्प्रदाय के नव नाथ प्रसिद्ध हैं । चर्पटनाथ उनमें से एक हैं । चर्मण्वती - एक नदी का नाम, जो मध्य प्रदेश में बहती हुई इटावा (उ० प्र०) के निकट यमुना में मिलती है। पुराणों और महाभारत में इसके किनारे पर राजा रन्तिदेव द्वारा अतिथियज्ञ करने का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि बलिपशुओं के चमड़ों के पुंज से यह नदी वह निकली, इसीलिए इसका नाम चर्मण्यती (आधुनिक चम्बल) पड़ा । किन्तु यह पुराणों की गुप्त या सांकेतिक भाषाशैली की उक्ति है, जिससे बड़े-बड़े लोग भ्रमित हो गये हैं। यहाँ रन्तिदेव की पशुबलि और चर्मराशि का अर्थ केला (कदली) स्तम्भों को काटकर उनके फलों से होम एवं अतिथिसत्कार करना है। केलों के पत्तों-छिलकों को भी चर्म कहा जाता था। ऐसे कदलीवन से उक्त नदी निर्गत हुई थी।
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चर्यापाद वैष्णव या क्षैव संहिताओं के चार खण्ड है (१) ज्ञानपाद ( २ ) योगपाद (३) क्रियापाद एवं (४) चर्यापद | चर्यापाद में धार्मिक क्रियाओं का वर्णन है । शैवागमों में इसका विस्तृत उल्लेख पाया जाता है । चाल - यज्ञयूप (स्तम्भ) के ऊपर पहनाये गये लकड़ी के ढक्कन को चषाल कहते हैं ।
चाक्षुष मनु-- चौदह मनुओं में से एक मनु का नाम । इनके नाम से चाक्षुष मन्वन्तर की कल्पना हुई । चाणक्य राजनीतिशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'कंटिलीय अर्थशास्त्र' के रचयिता एवं चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधान मंत्री । कौटिल्य, विष्णुगुप्त आदि नामों से भी पुकारते हैं । ये चणक नामक स्थान के रहने वाले थे, अतः चाणक्य कहलाये । अर्थशास्त्र राजनीति का उत्कट ग्रन्थ है, जिसने परवर्ती राजधर्म को प्रभावित किया। चाणक्य के
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