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________________ गङ्गाजयन्ती-गङ्गेश उपाध्याय २२१ प्रकार के पतितों का उद्धार कर देती है। कहा जाता है गङ्गाधर-शिव का एक पर्याय । शिवजी गङ्गा को अपने सिर कि गङ्गा में स्नान करते समय व्यक्ति को गङ्गा के सभी पर धारण करते है, इसलिए इनका यह नाम पड़ा। नामों का उच्चारण करना चाहिए। उसे जल तथा मिट्टी वाल्मीकि रामायण (१.४३.१-११) में शिव द्वारा गङ्गा लेकर गङ्गा से याचना करनी चाहिए कि आप मेरे पापों धारण की कथा दी हुई है। को दूर कर तीनों लोकों का उत्तम मार्ग प्रशस्त करें। गङ्गाधर (भाष्यकार)-कात्यायनसूत्र (यजुर्वेदीय) के भाष्यबुद्धिमान व्यक्ति हाथ में दर्भ लेकर पितरों की सन्तुष्टि के कारों में गङ्गाधर का भी नाम उल्लेखनीय है। लिए गङ्गा से प्रार्थना करे । इसके बाद उसे श्रद्धा के साथ गङ्गाधर (कवि)-ऐतिहासिक गया अभिलेख के रचयिता, सूर्य भगवान् को कमल के फूल तथा अक्षत इत्यादि सम- जिनका समय ११३७ ई० है। गङ्गाधर नामक गीतपण करना चाहिए । उसे यह भी कहना चाहिए कि वे गोविन्दकार जयदेव के प्रतिस्पर्धी एक कवि भी थे। उसके दोषों को दूर करें। गङ्गासागर-वह तीर्थ, जहाँ गङ्गा नदी सागर में मिलती है ___ काशीखण्ड (२७.८०) में कहा गया है कि जो लोग गङ्गा (गङ्गा और सागर का संगम) । सभी संगम पवित्र माने के तट पर खड़े होकर दूसरे तीर्थों की प्रशंसा करते है और जाते हैं, यह संगम औरों से विशेष पवित्र है। अपने मन में उच्च विचार नहीं रखते, वे नरक में जाते यात्री कलकत्ता से प्रायः जहाज द्वारा गंगासागर जाते हैं। काशीखण्ड (२७.१२९-१३१) में यह भी कहा गया हैं। कलकत्ता से ३८ मील दक्षिण 'डायमण्ड हारबर' है कि शुक्ल प्रतिपदा को गङ्गास्नान नित्यस्नान से सौगुना, है, वहाँ से लगभग ९० मील गंगासागर के लिए नाव या संक्रान्ति का स्नान सहस्रगुना, चन्द्र-सूर्यग्रहण का स्नान जहाज द्वारा जाना होता है। द्वीप में थोड़े से साधु रहते लाखगुना लाभदायक है। चन्द्रग्रहण सोमवार को तथा है, वह अब वन से ढका तथा प्रायः जनहीन है। जहाँ सूर्यग्रहण रविवार को पड़ने पर उस दिन का गङ्गास्नान गंगासागर का मेला होता है, वहाँ से उत्तर वामनखल असंख्यगुना पुण्यकारक है। स्थान में एक प्राचीन मन्दिर है। उसके पास चन्दनपीडि __ भविष्यपुराण में गङ्गा के निम्नांकित रूप का ध्यान वन में एक जीर्ण मन्दिर है और बुड-बुडीर तट पर करने का विधान है : विशालाक्षी का मन्दिर है । इस समय गङ्गासागर का मेला सितमकरनिषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम् जहाँ लगता है पहले वहाँ पूरी गङ्गा समुद्र में मिलती थी। करधृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् । अब सागरद्वीप के पास एक छोटी धारा समुद्र में मिलती विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडाम् है। यहाँ कपिल मुनि का आश्रम था, जिनके शाप से कलितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि । राजा सगर के साठ हजार पुत्र जल गये थे और जिनको गङ्गा के स्मरण और दर्शन का बहुत बड़ा फल बत- तारने के लिए भगीरथ गङ्गा को यहाँ लाये । संक्रान्ति के लाया गया है : दिन समुद्र की प्रार्थना की जाती है, प्रसाद चढ़ाया जाता दृष्टा तु हरते पापं स्पृष्टा तु त्रिदिवं नयेत् । है और स्नान किया जाता है। दोपहर को फिर स्नान प्रसङ्गेनापि या गङ्गा मोक्षदा त्ववगाहिता ।। तथा मुण्डन कर्म होता है। श्राद्ध, पिण्डदान भी किया गङ्गाजयन्ती-ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गङ्गाजयन्ती मनायी __ जाता है। मीठे जल का कच्चा सरोवर है जिसका जल जाती है । इस तिथि को गङ्गादशहरा भी कहते हैं। इस पीकर लोग अपने को पवित्र मानते हैं । दिन गङ्गास्नान का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इसी दिन गङ्गश उपाध्याय-न्यायदर्शन के एक नवीन शैली प्रवर्तक हिमालय से गङ्गा का निर्गमन हुआ था। इस तिथि का आचार्य । इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ 'तत्त्वचिन्तामणि' त्रयोदश गङ्गास्नान दसों प्रकार के पापों का हरण करता है। दस शताब्दी में रचा गया था। ये मिथिला के निवासी थे । पापों में तीन मानसिक, तीन वाचिक और चार कायिक हैं। जब मैथिलों ने नवद्वीप विद्यापीठ के पक्षधर पण्डित को गङ्गादास सेन-महाभारत ग्रन्थ को उड़िया भाषा में अनू- उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि नहीं करने दी, तब उन्होंने सुनदित करने वालों में गङ्गादास सेन भी एक हैं। उत्कल कर हो उसे पूरा कण्ठस्थ कर लिया और नवद्वीप के प्रदेश में इनका महाभारत बहुत लोकप्रिय है। प्रकाण्ड विद्वान् जगदीश तर्कालंकार, मथुरानाथ भट्टाचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016098
Book TitleHindu Dharm Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajbali Pandey
PublisherUtter Pradesh Hindi Samsthan Lakhnou
Publication Year1978
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size27 MB
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