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अग्नि
अग्नि सर्वदर्शी है । उसकी १०० अथवा १००० आँखें हैं प्रायश्चित्ते विधुश्चैव पाकयज्ञे तु साहसः । जिनसे वह मनुष्य के सभी कर्मों को देखता है (ऋ० लक्षहोमे तु वह्निः स्यात् कोटिहोमे हुताशनः ।। १०. ७९. ५)। उसके गुप्तचर हैं। वह मनुष्य के गुप्त पूर्णाहुत्यां मृडो नाम शान्तिके वरदस्तथा। जीवन को भी जानता है। वह ऋत का संरक्षक है (ऋ० पौष्टिके बलदश्चैव क्रोधाग्निश्चाभिचारिके ।। १०. ८. ५)। अग्नि पापों को देखता और पापियों
वश्यर्थे शमनो नाम वरदानेऽभिदूषकः । को दण्ड देता है (ऋ० ४. ३. ५-८; ४. ५. ४-५) । कोष्ठे तु जठरो नाम क्रव्यादो मृतभक्षणे ।। वह पाप को क्षमा भी करता है (ऋ० ७. ९३.७)।
(गोभिलपुत्रकृत संग्रह) अग्नि की तुलना बृहस्पति और ब्रह्मणस्पति से भी की गर्भाधान में अग्नि को 'मारुत' कहते हैं। पुंसवन में गयी है । वह मन्त्र, धी (बुद्धि) और ब्रह्म का उत्पादक है। 'चन्द्रमा', शङ्गाकर्म में 'शोभन', सीमन्त में 'मङ्गल', जातइस प्रकार का अभेद सूक्ष्मतम तत्त्व से दर्शाया गया है। कर्म में 'प्रगल्भ', नामकरण में 'पार्थिव', अन्नप्राशन में वैदिक साहित्य में अग्नि के जिस रूप का वर्णन है उससे 'शचि', चडाकर्म में 'सत्य', व्रतबन्ध (उपनयन) में विश्व के वैज्ञानिक और दार्शनिक तत्त्वों पर काफी प्रकाश 'समद्धव', गोदान में 'सूर्य', केशान्त (समावर्तन) में पड़ता है।
'अग्नि', विसर्ग (अर्थात् अग्निहोत्रादिक्रियाकलाप) में जैमिनि ने मीमांसासूत्र के 'हविःप्रक्षेपणाधिकरण' में 'वैश्वानर', विवाह में 'योजक', चतुर्थी में 'शिखी', धृति में अग्नि के छः प्रकार बताये हैं : (१) गार्हपत्य, (२) आह- 'अग्नि', प्रायश्चित्त (अर्थात् प्रायश्चित्तात्मक महाव्याहृतिवनीय, (३) दक्षिणाग्नि, (४) सभ्य, (५) आवसथ्य और होम) में 'विधु', पाकयज्ञ (अर्थात् पाकाङ्ग होम, वृषोत्सर्ग, औपासन ।
गृहप्रतिष्ठा आदि में) 'साहस', लक्षहोम में 'वह्नि', कोटि'अग्नि' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ इस प्रकार है : जो 'ऊपर होम में 'हुताशन', पूर्णाहुति में 'मृड', शान्ति में 'वरद', की ओर जाता है' (अगि गतौ, अंगेर्नलोपश्च, अंग् + नि पौष्टिक में 'बलद', आभिचारिक में 'क्रोधाग्नि', वशीकरण और नकार का लोप)।
में 'शमन', वरदान में 'अभिदूषक', कोष्ठ में 'जठर' और ___ अग्नि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पौराणिक गाथा इस मृत-भक्षण में 'क्रव्याद' कहा गया है।] प्रकार है-सर्वप्रथम धर्म की वसु नामक पत्नी से अग्नि अग्नि के रूप का वर्णन इस प्रकार है : उत्पन्न हुआ। उसकी पत्नी स्वाहा से उसके तीन पुत्र पिङ्गभ्रूश्मश्रुकेशाक्षः पीनाङ्गजठरोऽरुणः । हुए-(१) पावक, (२) पवमान और (३) शुचि । छठे छागस्थः साक्षसूत्रोऽग्निः सप्ताचिः शक्तिधारकः ।। मन्वन्तर में अग्नि की वसुधारा नामक पत्नी से द्रविणक
(आदित्यपुराण) आदि पुत्र हुए, जिनमें ४५ अग्नि-संतान उत्पन्न हुए। इस [भौंह, दाढ़ी, केश और आँखें पीली है, अङ्ग स्थूल है प्रकार सब मिलकर ४९ अग्नि हैं । विभिन्न कर्मों में अग्नि और उदर लाल है। बकरे पर आरूढ है, अक्षमाला के भिन्न-भिन्न नाम हैं । लौकिक कर्म में अग्नि का प्रथम लिये है। इसकी सात ज्वालाएँ है और शक्ति को धारण नाम 'पावक' है। गृहप्रवेश आदि में निम्नांकित अन्य नाम ___करता है । ] प्रसिद्ध है :
होम योग्य अग्नि के शुभ लक्षण निम्नांकित हैं : अग्नेस्तु मारुतो नाम गर्भाधाने विधीयते ।
अचिष्मान् पिण्डितशिखः सपिःकाञ्चनसन्निभः । पुंसवने चन्द्रनामा शङ्गाकर्मणि शोभनः ॥
स्निग्धः प्रदक्षिणश्चैव वह्निः स्यात् कार्यसिद्धये ॥ सीमन्ते मङ्गलो नाम प्रगल्भो जातकर्मणि ।
(वायुपुराण) नाम्नि स्यात्पार्थिवो ह्यग्निः प्राशने च शुचिस्तथा ।।
[ज्वालायुक्त, पिण्डितशिख, घी एवं सुवर्ण के समान, सत्यनामाथ चुडायां व्रतादेशे समुद्भवः । चिकना और दाहिनी ओर गतिशील अग्नि सिद्धिदायक गोदाने सूर्यनामा च केशान्ते ह्यग्निरुच्यते ।। होता है ।] वैश्वानरो विसर्गे तु विवाह योजकः स्मृतः । देहजन्य अग्नि में शब्द-उत्पादन की शक्ति होती है, चतुर्थ्यान्तु शिखी नाम धतिरग्निस्तथा परे ।। जैसा कि 'सङ्गीतदर्पण' में कहा है :
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