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उत्तरपक्ष-उदककमं
पाकर एक बार अर्जुन ने कहा कि भगवन् ! युद्धारम्भ में आपने जो गीता उपदेश मुझको दिया था, युद्ध की मार-काट और भाग-दौड़ के बीच उसे मैं भूल गया हूँ । कृपा कर वह ज्ञानोपदेश मुझको फिर से सुना दीजिए। श्री कृष्ण बोले कि अर्जुन, उक्त उपदेश मैंने बहुत ही समाहितचित ( योगस्थ ) होकर दिव्य अनुभूति के द्वारा दिया था, अब तो मैं भी उसको आनुपूर्वी रूप में भूल गया हूँ। फिर भी यथास्मृति उसे सुनाता हूँ इस प्रकार श्री कृष्ण का बाद में अर्जुन को दिया गया उपदेश ही 'उत्तर गीता' नाम से प्रसिद्ध है। स्वामी शंकराचार्य के परमगुरु गौडपादाचार्य की व्याख्या इसके ऊपर पायी जाती है, जिससे इस ग्रन्थ का गौरव और भी बढ़ गया है । उत्तरपक्ष पूर्व पक्ष का विलोम विवाद के मध्य प्रतिपक्षी के सिद्धान्तों का खण्डन करने के पश्चात् किसी विचारक का अपना जो मत होता है उसे उत्तरपक्ष कहते हैं ।
उत्तराफाल्गुनी अश्विनी आदि सत्ताईस नक्षत्रों के अन्त गंत बारहवाँ नक्षत्र इसमें पर्यदु के आकार के दो तारे हैं। इसका अधिष्ठाता देवता अर्थमा है। उद्वह आकाशमण्डल के स्टरों में छाये हुए सात प्रकार के वायुओं के अन्तर्गत एक वायु। इसकी स्थिति ऊपर की ओर होती है। 'सिद्धान्तशिरोमणि' में कथन है
आवहः प्रवश्चैव विवहश्च समीरणः । परवहः संवहश्चैव उद्वहश्च महाबलः । तथा परिवहः श्रीमानुत्पातभयशंसिनः । इत्येते क्षुभिताः सप्त मारुता गगनेचराः ॥ [ आवह, प्रवह विवह, परवह, संवह, उद्वह तथा परिवह; आकाशगामी ये सात पवन परस्पर टकराते हुए उपद्रव होने की सूचना देते हैं । ] उद्वाह-विवाह एक स्त्री को पत्नी बनाकर स्वीकार करना । यह आठ प्रकार का होता है (मनु० ३.२१ ) : (१) वर को बुलाकर शक्ति के अनुसार कन्या को अलंकृत करके जब दिया जाता है, उसे 'ब्राह्म विवाह' कहते हैं । (२) जहाँ यज्ञ में स्थित ऋत्विक् वर को कन्या दी जाती है, उसे 'देव विवाह' कहते हैं। (३) जहाँ वर से दो बैल लेकर उसी के साथ कन्या का विवाह कर दिया जाता है। उसे 'आर्य' विवाह कहते हैं। (४) जहाँ इसके साथ धर्म का आचरण करो" ऐसा नियम करके कन्यादान किया
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जाता है उसे 'प्राजापत्य' विवाह कहते हैं । (५) जहाँ धन लेकर कन्यादान किया जाता है वह 'आसुर विवाह' कहलाता है । (६) जहाँ कन्या और वर का परस्पर प्रेम हो जाने के कारण "तुम मेरी पत्नी हो", "तुम मेरे पति हो" ऐसा निश्चय कर लिया जाता है यह 'गान्धर्व विवाह' कहलाता है । ( ७ ) जहाँ पर बलपूर्वक कन्या का अपहरण कर लिया जाता है उसे 'राक्षस विवाह' कहते हैं । (८) जहाँ सोयी हुई, मत्त अथवा प्रमत्त कन्या के साथ निर्जन में बलात्कार किया जाता है, वह 'पैशाच विवाह' कहलाता है। विवाह का शाब्दिक अर्थ है 'उठाकर ले जाना' । क्योंकि विवाह के अन्तर्गत कन्या को उसके पिता के पर से पतिगृह को उठा ले जाते हैं, इसलिए इस क्रिया को 'उद्वाह' कहा जाता है । विशेष विवरण के लिए दे० 'विवाह' ।
उद्दालक यह व्रत 'पतितसावित्रीक' (उपनयन संस्कारहीन लोगों के लिए है। ऐसा बतलाया गया है कि उष्ण दुग्ध तथा 'आमिक्षा' पर ही व्रती को दो मास तक निर्भर रहना चाहिए । आठ दिन तक दही पर तथा तीन दिन घी पर जीवन-यापन करना चाहिए अन्तिम दिन पूर्ण उपवास का विधान है। उद्दालक आरुणि अरुण का पुत्र उद्दालक आरुणि वैदिक काल के अत्यन्त प्रसिद्ध आचार्यों में से था । वह शतपथ ब्राह्मण ( ११.४.१.२ ) में कुरुपञ्चाल का ब्राह्मण कहा गया है । वह अपने पिता अरुण तथा मद्रदेशीय पतञ्चल काव्य का भी शिष्य ( बृहदा० उप० ) तथा प्रसिद्ध याज्ञवल्क्य ऋषि का गुरु था ( वृहदा० उप० ) । तैत्तिरीय संहिता में अरुण का नाम तो आता है, आरुणि का नहीं । उद्दालक का वास्तविक पुत्र श्वेतकेतु था, जिसका समर्थन आपस्तम्ब ने अपने समय के अवर व्यक्ति के रूप में किया है ।
उदककर्म - मृतक के लिए जलदान की क्रिया। यह कई प्रकार से सम्पन्न होती है । एक मत से सभी सम्बन्धी ( ७ वीं या १० वीं पीढ़ी तक ) जल में प्रवेश करते है। वे केवल एक ही वस्त्र पहने रहते हैं और यज्ञसूत्र दाहिने कन्धे पर लटकता रहता है । वे अपना मुख दक्षिण की ओर करते हैं, मृतक का नाम लेते हुए एक-एक अञ्जलि पानी देते हैं । फिर पानी से बाहर आकर अपने भीगे कपड़े निचोड़ते हैं।
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