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________________ १० जैन आगम वाद्य कोश था। वर्तमान में यह वाद्य प्राप्त नहीं होता। खरमुही (खरमुखी) निसि. १७/१३९, राज. (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय वाद्य गलु) ७७, पज्जो. ७५, ६४, दसा. १०/१७, औप. ६७, जीवा. ३/५८८ कुतुंबर (कुस्तुम्बर) राज. ७७ खरमुखी, काहला, भूपाड़ो। आकार-तीन हाथ लम्बा एक सुषिर वाद्य। कुस्तुंबर, तुम्बकनारी, घुमट। विवरण-इस वाद्य का निर्माण तांबा, चांदी अथवा आकार-सूराही सदश। सोने से होता था। फूंक मारकर बजाए जाने वाला यह वाद्य भीतर से खोखला होता था। इसकी मुखाकृति धतूरे के फूल के सदृश होती थी। बीच में दो छिद्र बनाये जाते थे। वादन करने पर हाथी के सदृश हूं, हूं, हाहू' शब्द उत्पन्न होते थे। इसे विवाह आदि सभी मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता था। लौकिक भाषा में इसे भूपाड़ों के नाम से जाना जाता था। विमर्श-खरमुखी एक प्राचीन सुषिर वाद्य है। इसके निर्माण एवं आकृति के बारे में भिन्न-भिन्न मत प्राप्त होते हैं। संगीत रत्नाकर और संगीत सार के अनुसार इस वाद्य का निर्माण चांदी, तांबा अथवा सोने से होता था। मुखाकृति धतूरे के फूल के विवरण यह वाद्य दुर्दुर वाद्य का ही एक विशेष समान होती थी। संगीत समयसार ६/१३१-१३२ रूप है, जिसका प्रकार एक बृहद् सुराही सदृश के कर्ता पार्श्वदेव ने भी लगभग इसी बात की होता है। यह कश्मीर के लोक वाद्यों में अपना पष्टि की है। किन्त अल्प परिचित शब्द कोश एवं विशेष स्थान रखता है। इसका ऊपरी हिस्सा राज. टी. प. ४९-५० में "खरमही काहला तस्य चमड़े से ढका होता है और निचला भाग खुला मुहत्थाणे खरमुहाकारं कट्ठमयं मुहं कज्जंति" होता है। इसको गोद में खड़ा रखा जाता है और कहकर काहला को काष्ठनिर्मित एवं 'खरमुखाकार अंगुलियों से बजाया जाता है। गोवा और महाराष्ट्र बताया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि काहला का घुमट अधिक गोल और छोटी गर्दन वाला हैं। काष्ठ निर्मित भी होते थे। .. इसमें निचला भाग खुला होता है, जिस पर खाल कसकर मढ़ी जाती है और गर्दन का मुंह खुला गोमुही (गोमुखी) राज. ७७, ठाणं ७/४२, अनु. रहता है। ३०१ कश्मीर में इसे तुम्बक नारी एवं तिब्बत के निकट- गोमुखी, नरसिंघा (म. प्र.), रणसिंघा (हिमाचल), वर्ती क्षेत्रों में कुस्तुम्बर नाम से जाना जाता है। बांकया, वारगु (राज.) बांके (कर्नाटक) (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-वाद्य यंत्र) आकार-अंग्रेजी के 'एस' अक्षर के आकार का वाद्य, देखने में इसका मुख गाय के सींग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Interational
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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