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________________ जैन आगम वाद्य कोश कुक्कययं (कुक्कययं) सूय. १/४/३८ तुंबवीणा, खुंखुणक, रबाब । आकार-आधुनिक सरोद तथा सारंगी के मध्य का वाद्य। का और चतुर्भुज तुम्बे का। इसमें चार मुख्य तार होते हैं जो तांत के बने होते हैं। एक लोहे का तार होता है, जिसे चिकारी की भांति प्रयोग किया जाता है। सिंध प्रांत में इसे खुंखुणक भी कहते हैं। सूत्रकृतांग टी. पृ. ११६ में “कुक्कययं ति खुंखुणकम्' कहकर खुंखुणकम् कहा है। जैन रामायण में भी "खुणण-खुणण बाजै रबाब" कहकर रबाब की पहचान दी है। कुक्कयय (कुक्कयय) सू. १/४/३८ झुनझना, झुंझनी, खुलखुला, खुंखुना, गिलकी। आकार-नारियल सदृश। विवरण-नारियल का खोल झुनझुना जैसे लोकविवरण यह एक बिना पर्ने ी और कोली सीता वाद्य की ही एक किस्म है। थोड़े से बीज या कंकरी वाली वीणा है। कश्मीर से लेकर अफगानिस्तान अंदर डालकर इसके मुंह को बंद कर दिया जाता है। तक इसका प्रचार देखने को मिलता है, जहां नारियल के खोपरे में आमतौर पर एक मूठ भी लगी इसके तार को खींच कर बजाते हैं। इस वीणा में होती है जिसे पकड़कर इसे हिला-हिलाकर बजाया दो से सात तक तार होते हैं। 'आइने अकबरी' में जाता है। ये सभी आदिम और प्राकृतिक झुनझुने रबाब की षट् तंत्रीय, बारह तंत्रीय और अठारह निश्चय ही उन धातु तथा लकड़ी के बने परिष्कृत तंत्रीय वाला भी कहा है। झुनझुनों के आरंभिक रूप हैं, जो प्रायः बच्चों के झुंझनी, खुलखुला, खंखुना और गिलकी नामक कश्मीर में आजकल प्रचलित रबाब पोली लकड़ी खिलौनों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। का बना होता है। स्वर-पेटी खाल से ढकी होती (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-वाद्य यंत्र) है। दंड में खूटी लगी होती है। इस दंड पर एक पतला मेरु होता है जिसके ऊपर तांत की छह तंत्रीयां होती हैं जो खंटीयों से कसी जाती हैं। कुतुंब, कुत्तुंबक (कुस्तुम्ब, कुस्तुम्बक) राज. ७७, इनके अतिरिक्त धातु की ग्यारह तंत्रीयां होती हैं. जीवा. ३/७८ जो अनुगूंज का कार्य करती हैं। दंड के आर-पार कुस्तुम्ब, गोपुच्छा, यवाकृति। इसके दूर वाले सिरे के तीन तांत बंधी रहती हैं, आकार-मृदंग सदृश। जो सुरों की स्थिति की ओर इंगित करती हैं। बाद विवरण-यह वाद्य मृदंग जाति का ही एक अनवद्ध में वाद्यों में इसी प्रक्रिया को धातु के पर्यों के रूप वाद्य था, जो एक सिरे पर काफी चौड़ा और दूसरे में विकसित कर लिया गया होगा। सिरे पर काफी संकरा होता था। बंगाल में राजस्थान के लोक वाद्य में प्रयुक्त होने वाला प्रचलित श्री खोल के सदृश इसमें कई पर्तों वाले रबाब मुख्यतः दो प्रकार का होता है-गोल तुम्बे दो मुख होते थे। इसको भी हाथ से बजाया जाता jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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