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________________ आडम्बरो (आडम्बर)-ठाणं ७/४२, अनुयोगद्वार- इस वाद्य पर बजाई जाती है। मुसलमान इसको ३०१, नगाड़ा, नक्कारा नक्कारा कहते हैं, नगाड़ा इसी का बिगड़ा हुआ रूप है। राजस्थान के शेखावटी और अलवर क्षेत्र में नगाड़ा वादन की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। नगाड़ा युद्ध के वाद्यों के साथ बहुत प्रयोग किया जाता है। किन्तु आजकल राजस्थान के उत्सवों में इसका प्रचार अधिक है। नृत्य मण्डलियों में इसका प्रयोग संगति के लिए भी होता है। मंदिरों में इस वाद्य का प्रयोग अधिक देखने को मिलता है। उत्तरप्रदेश की नौटंकी में यह नक्कारा के नाम से प्रयुक्त होता है। तथा इसके बड़े भाग का पिछला हिस्सा कुछ नुकीला बनाया जाता है। विमर्श-भारतीय संगीत के लेखक प्रो. कृष्णराव आकार-नौबत वाद्य से कुछ छोटे इस वाद्य का गणेश मूले एवं वाद्य प्रकाश के लेखक आकार दो कटोरों के समान होता है। जिनमें एक विद्याविलासी पंडित ने आडम्बर शब्द को वैदिक छोटा और दूसरा बड़ा होता है। बड़ा कटोरा तांबे यगीन बताते हए वीणा का ही एक भेद माना है। का तथा छोटा लोहे का बना होता है। बड़े कटोरे डॉ. लाल मणि मिश्र ने अपनी पुस्तक “भारतीय पर भैंस की तथा छोटे पर ऊंट की खाल मढ़ी संगीत वाद्य" में आडम्बर वाद्य को वीणा के होती है। यह खाल चमड़े की बद्धियों की सहायता अन्तर्गत स्पष्टतः स्वीकार नहीं किया है। लेकिन से कसी जाती है। जैन आगमों के टीकाकारों एवं कोशकारों ने विवरण-पूरे उत्तर भारत में मिलने वाला यह एक आडम्बर शब्द का अर्थ पटह, नगाड़ा करते हुए अवनद्ध-वाद्य है। यह एक व्यक्ति के द्वारा दो अवनद्ध (वितत) वाद्य के अन्तर्गत स्वीकार किया डण्डियों से बजाया जाता है। बड़ा नगाड़ा नीचे है। इसलिए आडम्बर को अवनद्ध वाद्य के स्वर में तथा छोटा नगाड़ा बहुत ऊंचे स्वर में अन्तर्गत लिया गया है। मिलाया जाता है। दोनों में से छोटे की आवाज पैनी होती है। जिसे मादि या मादा कहा जाता है। आमोट, आमोत पा. (आमोट, आमोत पा.) जबकि बड़े की आवाज भारी होती है, उसे नर राज.-७७ कहा जाता है। इसके स्वर की ऊंचाई के लिए प्रायः इसे आग में सेंकते है। बड़े नगाड़े की सतह आमोट, मंजीरा, मंजीर, मजीरा। में एक छेद होता है जिससे पानी डालकर ऊपर आकार-ताल वाद्य के सदृश। मढ़ी खाल तक पहुंचाया जाता है, जिसके कारण विवरण-प्राचीन काल में यह वाद्य ताल से छोटा उसका स्वर नीचा होता है। कहरवा दादरा के एवं ध्वनि में लगभग धुंघरुओं के समान होता था। अतिरिक्त विभिन्न कठिन ताले तथा लयकारिया भी यह कांसा, पीतल, फूल तथा अष्टधातु का बनाया Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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