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३, ११९८ - १२०३ ]
नु-निपात ताना-निपात
किं-निपात क्रं - निपात अमा-निपात
पुत - निपात
किर-निपात उद-1 - निपात पच्छा-निपात
सामि-निपात
पातु-निपास
मिथो - निपात
हा - निपात
अहह - निपात
भि-निपात
तिरो-निपात
अभिधानपदीपिका
नु. (संसये च पडे ) नाना. (नेकत्थ बज्ज ) । किं. ( तु पुच्छा जिगुच्छासु )
कं. ( तु वारिहि मुनि ) ॥ ९८ ॥
अमा. ( सह समीपे थ ( भेदे अप्पटमे पुन. किरा. ( नुम्सवारुचिसु ) उदा. ( -Sप्यथे विकप्पने ) ॥ ९९ ॥ ( पतीच चरिमे ) पच्छा. सामि - ( जिगुच्छ ने ) |
( पकासे संभवे ) पातु. ( अनोजे तु रहे ) मिथो हा. (खेढे सोकदुक्खेसु ) ( खेदेव - Sह ( विम्ये ) | ( हिंसापने ) धि ( निंदार्य ) ( पिधाने तिरियं ) तिरो ॥ १ ॥ तून स्वान -तवे-त्वा-तुवा-सो-था- क्खत्तु - ( मेवच ) | तो-थ-त्र-हिश्वनं-हिं-हंधि-ह-हि-धुना - रहि - ॥ २ ॥ दानि - वो-दाचने-दा-ज्ज - थं-थत्ता–ज्झ-ज्जू-( आदयो । समास चाव्ययीभावो
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अभिधानपदी पिकासमन्त्ता ।
यासो चाऽव्ययं भवे ) ।। १२०३ ॥ ॥ अव्ययवगो || सामञ्जकण्डो तनियो ||
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॥ १२०० ॥
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