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अमरकोषः।
[सीवकाण्डे
-१पथः सङ्याव्ययात्परः। २ षष्ठयाश्छाया बहूनां चेद्विच्छायं ३ संहती सभा ॥ २६ ॥ शालार्थापि परा राजामनुण्यार्थादराजकात् ।
, 'संख्या १, अव्यय २, से परे कृतसमासान्त' (समासान्त 'अच्' प्रत्यथान्त ) 'पथिन्' शब्द नपुंसकलिङ्ग होता है। (कमशः उदा०-, द्विग्थम् , त्रिपथम् ,......। विपथम , कापथम् ......")। 'संख्याध्यय' ग्रहण करनेसे 'धर्मपथा,..." में 'पथ' (कृतसमासान्त) ग्रहण करनेसे 'अतिपन्थाः, सुपन्या,......में नपुंसकलिङ्ग नहीं होता है।
२ षष्यन्त (षष्ठी विभक्ति जिसके अन्त में रहे उस) से परे कृतसमासान्त 'छाया' शब्द नपुंसकलिङ्ग होता है, यदि वह छाया बहुतोंकी' रहे तक। ('जैसे-इच्छायम , वीना पति छापा विच्छायम , वृद्धानां छाया वृद्ध
छायम् ,.....")। 'बहूनां चेत् (बहुतोंकी छाया रहे तब ) ग्रहण करनेसे 'वृक्षस्य छाया वृक्षच्छाया,......" में नपुंसकषित नहीं होता है ।
३ षष्ठयन्तसे परे (आगे) रहनेपर समूहाक (समूह अर्थवाला) 'समा' शब्द १, षष्ठयन्तसे परे रहनेपर गृहायक (गृह अर्थवाला) और 'मपि' शब्दसे समूहार्थक 'सभा' शब्द अराजक ('राज' शब्दसे मिन) राजा. र्थक (रान पर्यायवाले) २, अमनुष्यार्थक ( मनुष्य अर्थसे भिन्न ) ३, नपुंसक. लिङ्ग होता है। ('क्रमशः उदा०-1 दासोसमम् , ब्राह्मणसभम् ,"...। नृपसभम , इनसभम् , प्रभुलभम् ,..." रासमम् , पिशाचसमम् , ......')। 'संहती (समूहार्थक) ग्रहण करनेसे 'दासीमा समा गृहम इस विग्रहमें 'दासीसमा यहापर, 'षष्ठया(पन्तसे परे रहनेपर) ग्रहण करने. से 'नृपतिविषये सभा 'नृपतिसमा' बहाँपर, नृगा पतिर्यस्यां सा नृपतिः सा चासो सभा च' यह विग्रहकर कर्मधारय समास करनेसे 'नृपतिसमा यहाँपर, 'अराजक' ('राजन्' शब्दसे मिट) ग्रहण करनेसे चन्द्रगुप्त के राज
१. मूले 'पथ' शब्दोपादानं कृतसमासान्तस्वैव पविन्' शब्दस्य प्राहकशक्तिपरम् ।
२. अत एव भुच्छायनिषादिन्यः..... (.४।२०) इत्येव समीचीनः पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org