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अमरकोषः। [तृतीयकाण्डे१ अहरे नीचेश्महत्युच्चैः ३ प्रायो भून्यते शनैः । ५ सना नित्ये ६ बहिर्बाह्य ७ स्मातोतेऽस्तमदर्शने ॥१७॥ ९ अस्ति सत्त्वे १० 'रुषाक्तावु ११ ऊप्रश्ने१२नुनये त्वयि । १३ हुं तकें १४ म्यादुषा रात्रेवसाने १५ नमो नती ॥१८॥ १६ पुनार्थेऽग १७ मिन्दायां दुष्टु १८ सुष्टु प्रशंसने । १२ सायं लाये २० प्रगे प्रातः प्रभाते २१ निकषाऽन्तिके ॥१९॥ १ नीचैः (= नीचे ), १ का 'छोटा, धीरे-धीरे, नीचे' अर्थ है ॥ २ उच्चैः (%D उच्चैस्), १ का ऊंत्रा, अधिक, जल्दी-जल्दो' अर्थ है ॥ ३ प्रायः (= प्रायस), १ का 'बाहुल्य, अधिकतर' अर्थ है। ४ शनैः (= शनैस), १ का 'धीरे-धीरे अर्थ है ॥ ५ सना (+ सनत् , सनात् ), १ का 'नित्य' अर्थ है ॥ ६ बहिः (= बहिस), १ का 'बाहर' अर्थ है ॥ ७ स्म, १ का 'बीता हुआ' अर्थ है ॥ ८ अस्तम् , १ का 'अस्त' ( नहीं दिखाई देना) अर्थ है ॥ ९ अस्ति , १ का 'है' अर्थ है ॥ १० 3 ( + उम्), १ का क्रोधले कहना' अर्थ है ॥ ११ ऊं (= ऊज़ ) १ का 'पूछना' (+ क्रोधसे पूछना क्षी० स्वा०) अर्थ है। १२ अयि, १ का 'शान्त करना, स्ठे हुएको मनाना' अर्थ है । १३ हुम् (+ स्यात् 'जैसे-स्याद्वादिनो जैनाः'), ' का 'तर्क' अर्थ है। १४ उषा, १ का 'रात्रिका अन्त, सबेरा' अर्थ है । १५ नमः (= नमस ), १ का 'प्रणाम' अर्थ है । १६ अङ्ग, १ का 'फिर' अर्थ है ॥ १७ दुष्टु, १ का 'निन्दा' अर्थ है। १८ सुष्टु, १ का 'बड़ाई, प्रशंसा अर्थ है ॥ १९ सायम् , १ का 'सायंकाल, साँझ अर्थ है ॥ २० प्रगे, प्रातः (=प्रातर). २ का 'प्रातःकाल, सुबह' अर्थ है। २१निकषा, १ का 'समीप अर्थ है।
१. 'इषोकाई' इति पाठान्तरम् । २. 'त: स्यात्' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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