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अमरकोषः।
तृतीयकापडे१ पुरोऽधिकमुपर्यग्राण्य २ गारे नगरे पुरम् ।
मन्दिरं चास्य राष्ट्रोऽस्त्री विषये स्थादुपद्रवे ।। १८४ ॥ ४ दरोऽस्त्रियां भये श्वश्वे ५ योऽस्त्री होरके पवौ। ६ तन्त्रं प्रधाने सिद्धान्त प्राय परिच्छदे ।। १८५।। ७ 'औशीरचामरे दण्डेयौशीरं शयनासन । ८ पुष्करं करिइस्ताग्ने नाधलाण्डमुखे जले १८६ ।।
ज्योमिन खड्गफले पो तीर्थोषधिविशेषयोः । ९ अन्तरमवकाशावधिपरिधानान्तधिभेदतादयें ॥ १८७ ॥
१ 'अग्रम्' ( न ) के अागे । सामने ), एक पल ( ४ भरी ) का प्रमाण. विशेष, ऊपर, आलम्बन, समूह, प्रान्त, अर्थ और 'अनम्' (त्रि) के अधिक प्रधान, पहला, ३ अर्थ हैं।
२ 'पुरम्' (न ) के घर, नगर (शहर, बहा ग्राम ), . अर्थ और 'पुर (पु) के गुग्गुल, । अर्थ तथा 'मन्दिरम् (न) के घर, नगर, २ अर्थ हैं ।
३ 'राष्ट्र' (पुन ) के देश, उपद्रव, २ अर्थ हैं ॥ ४ 'दर' (पु न ) के डर, गढा, र अर्थ हैं। ५'वजः' (पुन) के हीरा, बद्र (इन्द्रका प्रायुध विशेष), १ अर्थ है।
६ 'तन्त्रम् (न) के प्रधान, सिद्धान्त, जुलाहा (कपडा बुननेवाली जाति-विशेष), सामग्री, वेदकी एक शाखा, कारण, उत्तम औषध, ७ अर्थ हैं।
. 'औशीरः' (पु+न. पी. स्वा० ), का चवरका दण्ड, , r); 'मौशीरम(न) के शयन, भासन (+ शयन और आसन दोनोंका समुदाय जी. स्वा.), उशीर (खश) से उत्पन, ३ अर्थ है ॥ . ___ ८ 'पुष्करम् (न) के हाथीकी सँड़का भागेवाला हिस्सा, बाजाके भाण्डका मुख, पानी, आकाश, तलवारका फल, कमल, पुष्कर क्षेत्र' नामक तीर्थ विशेष, पुष्करमूल औषध, ८ अर्थ हैं ॥
९ 'अन्तरम् (न) के अवकाश (खाली), अवधि, पहिरने का कपड़ा वादि, अन्तर्धान (छिपना), भेद (फरक.), तादर्थ्य ( उसके लिये, जैसे
१. 'भौशीरं चामरे दण्डे' इति पाठान्तरम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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