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________________ नानार्थवर्ग : ३ ] -१ सुगते च विनायकः ॥ ६ ॥ २ किष्कुर्हस्ते वितस्तौ च ३ शूककीटे च वृश्चिकः । ४ प्रतिकूले प्रतीक स्त्रिष्वेकदेशे तु पुंस्ययम् ॥ ७ ॥ ५ स्यादुभूतिकं तु भूनिम्बे कतृणे भूस्तृणेऽपि च । ६ ज्योतिस्तकायां च घोषे च कोशातक्यथ ७ कट्फले ॥ ८ ॥ सिते च खदिरे सोमवल्कः स्या ८ दथ सिद्धके । तिलकल्के च पिण्याको ९ बाह्निकं रामठेऽपि च ॥ ९ ॥ १० महेन्द्रगुग्गुलूलू कव्यालग्राहिषु कौशिकः । मणिप्रभाव्याख्यासहितः । ११ रुक्तापशङ्कास्वातङ्कः १२ स्वल्पेऽपि क्षुल्लकस्त्रिषु ॥ १० ॥ १३ जैवातृकः शशाङ्केऽपि - ४२५ ● 'विनायकः' (पु) के बुद्धदेव, गणेश, गरुद, गुरु, विघ्न, ५ अर्थ है ॥ १ 'किष्कुः' (पु) के हाथभर, वित्ताभर ( प्रमाण-विशेष ), २ अर्थ हैं ॥ ३ ' वृश्चिकः' (पु) के बिच्छू, आठवीं राशि ( लग्न ), भौंरा केकड़ा, ओषधि-विशेष, ५ अर्थ हैं ॥ ● 'प्रतीक' (त्रि ) का प्रतिकूल, १ अर्थ और 'प्रतीकः' (पु) का wana ( fgtar ), i mat 11 ५ 'भूतिकम्' (न) के चिरायता, 'रोहिस' नामक घास, भूतृण, १ अर्थ हैं ॥ ६ 'कोशातकी' (स्त्री) के चिचिढ़ा, तरोई या परवल, २ अर्थ हैं ॥ ७ ' सोमवल्कः' ( पु ) के कायफल, दुधिया ( सफेद ) खैर २ अर्थ है ॥ ८ ' पिण्याकः' (पु) के लोहबान, तिलकी खली, २ अर्थ है ॥ ९'बाहिकम्' (+ बाह्रीकम् । न) के हींग, बाह्रीक देश का ( काबुली ) घोड़ा, कुंकुम, ३ अर्थ हैं ॥ १० 'कौशिकः' (पु) के इन्द्र, गुग्गुलु, उल्लू पक्षी, रुँपेरा, ४ अर्थ हैं ॥ ११ 'आतङ्कः' (पु) के रोग, ताप, शङ्का, मुरज बाजेका शब्द, ४ अर्थ हैं। १२ 'क्षुल्लकः' (त्रि ) के क्षुद्र, नीच, जैनसम्प्रदायका तपस्वि - विशेष, २ अर्थ हैं ॥ Jain Education International १३ 'जैवातृकः' (पु) का चन्द्रमा, १ अर्थ और 'जैवातृकः' (त्रि ) के आयुष्मान् ( चिरजीवी ), कृश, भेषज, ३ अर्थ हैं ॥ १. 'बाह्रोकम्' इति पाठान्तरम् ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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