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अमरकोषः
[ तृतीयकावे-१ याच्या भिक्षाऽर्थनाऽर्दना ॥ ६ ॥ २ वर्धनं छेदने ३ ऽथ द्वे 'आनन्दलभाजने ।
आप्रच्छन्न ४ मथाम्नायः संप्रदायः ५ क्षये क्षिया ।। ७ ।। ६ ग्रहे ग्राहो ७ वशः कान्तौ ८ 'रास्त्राणे ९ रणः कणे। १० मधो बेधे ११ पचा पाके १९ हवो हूतौ १३ वरो वृतौ।। ८ १४ ओषः कोषे १५ नयो नाये-- , यात्रा, भिक्षा, अर्थना, अर्दना ( ४ स्त्री ), 'माँगने के ४ नाम हैं । २ वर्धनम् , छेदनम् , ( २ न ), 'काटने के २ नाम है ॥
३ भानन्दनम् ( + आमन्त्रणम् ), समाजनम् , आप्रच्छन्नम् ( ३ न ), 'मित्र या गुरुजन आदिके आनेपर अभ्युत्थान ( उठकर अगवानी), आलिङ्गन आदि और कुशल प्रश्न आदि द्वारा उनके सत्कार करने के ३ नाम हैं।
४ आम्नायः संपदायः (. पु), रिवाज, कुलक्रमागत (खान्दानी) रहन-सहन या गुरु-परम्परागत उपदेश आदि' के २ नाम हैं ।
५ क्षयः (पु), शिया (स्त्री), 'घटने या कम होने के २ नाम हैं ।। ६ ग्रहः, ग्राहः (२ पु), 'ग्रहण करने, लेने के २ नाम हैं । ७ वशः (पु), कान्तिः (स्त्री), 'चाहना इच्छा' के २ नाम हैं । ८ रणः (+रक्षा स्त्री), त्राणः ( २ पु), 'रक्षा' के २ नाम हैं । ९ रणः, कणः (८ पु), 'शब्द करने के २ नाम हैं ॥ १० व्यधः, वेधः, (२ पु), 'छेदने' के २ नाम हैं ॥ ११ पचा ( + पतिः । स्त्री). पाकः (पु), 'पकाने के २ नाम हैं । १२ हवः (पु), हूतिः (स्त्री), 'पुकारने या बुलाने के २ नाम हैं ।। १३ वरः (पु), वृतिः (स्त्री), 'घेरे या तप, सेवा आदिसे प्रसन्न होकर देवता, गुरु आदिके वरदान देने के २ नाम हैं ।
१४ ओषा, प्लोषः ( + प्रोषः । १ पु), 'दाह' के २ नाम हैं । ५५ नयः, नायः (२ पु), 'नीति' के २ नाम हैं। १. 'आमन्त्रणसभालने इति पाठान्तरम् । २. 'रक्ष' इत्यपपाठः' इति क्षी० स्था। ३. तथा च कास्यः-तपोमिरिष्यते यस्तु देवेभ्यः स वरो मतः' । रति ।
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