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अमरकोषः। [ततीवका
-१ 'शतः प्रियंवदे ॥३६॥ २ लोहलः स्यादस्फुटवाग ३ महावादी तु कदः। ४ समी कुवादकुचरी ५ स्थादसौम्यस्वरोऽस्वरा ॥ ३७॥ ६ रवणः शब्दनो ७ नान्दीवादी नान्दीकरः समौ । ८ जडोड:
शल: (+शका, श), पियंवदः (. त्रि), 'प्रिय बोलनेवाले' के २ नाम हैं। ___ २ कोहलः, अस्फुटवाक ( = अस्फुटवाच । २ त्रि), 'अस्पष्ट बोलनेवाले' के २ नाम हैं।
३ गवादी ( = गह्मवादिन ), कहा ( + दुर्वा = दुर्वाच् । २ त्रि) 'बुरा बोलनेवाले' के नाम है।
५ कुवादा, (वि), 'दोषयुक्त या दोषारोपण करते हुए बोलनेवाले' के २ नाम हैं। __ ५ असौम्य स्वा, भस्वरः (त्रि), 'कौवे मादिकी तरह खे स्वरसे बोलनेवाले' के २ नाम है।
शब्दना, रवणः (त्रि), 'विशेष शन्द करनेवाले' के ' नाम है। ७ नाम्दीवादी (= नान्दीवादिन् ), नान्दोकरः ( . त्रि), नान्दी' (स्तुति-विशेष)को करनेवाले या नाटकके भारम्भमें मालपाठ करनेवाले पात्र' नाम है।
'डा, अज्ञः ( . त्रि), 'जड़, मूर्ख' के नाम हैं ॥
१. 'शक्तः' इति क्षी० वा. 'शक्नः' इति सपरस्प संमतः पाठः ॥ २. नान्दीलक्षणं भरत माह । तद्यथा
'भाशीर्व वनसंयुक्ता स्तुतियस्मात्मवर्तते ।
'देवदि मनगीनां तस्मान्नान्दीति कोर्तिता' ॥१॥ जरलक्षणं यथा
'अष्टं वाऽनिष्टं वा मुखदुःखे वा न चेर यो मोहात । विन्दति परवशगः स भवेदिह बरसंशः पुरषः॥१॥ इति ॥
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