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अमरकोषः । [द्वितीयकाण्हे
-१ स्तम्बो गुच्छस्तृणादिनः ॥ २१ ॥ २ नाडी नालश्च काण्डोऽस्य ३ पलामोऽस्त्री स निष्फलः । ५ 'कङ्गरो बुसं क्लीवे ५ धान्यस्यचि तुषः पुमान् ।। २२॥ ६ शूकोऽस्त्री लक्षातीक्ष्णाने ७ शमी शिम्या ८ त्रिपूत्तरे।
ऋद्धमावसितं धान्यं ९ पूतं तु बहलीकृतम् ॥ २३ ॥ , स्तम्बः, गुच्छ ( भा० दी० । २ पु ), 'तृण यवादिके गुच्छे' के १ नाम हैं।
२ नाडी ( स्वी), नालम् (न), 'यवादिके डण्ठल' के ३ नाम हैं । ३ पलालः (पुन), 'पुमाल' का ! नाम है ॥
कडङ्गरः(+ कडङ्करः। पु), बुसम (+ बुपम् । न), 'पुआले आदिके भूसे' के २ नाम है ॥
५ धान्यस्वक् ( = धान्यस्वच, भा० दी०, खो), तुषः (पु), 'धानके भूसे के २ नाम हैं।
६ शूकः (पुन), 'धान्य या तृण आदिके चिकने और नुकीले ढूंड आदि' का । नाम है । ('धान्य-तृणसे पृथक बिच्छू आदिके हङ्कका भी यह वाचक है, अत एव इसका किंशारु (श्लो० २। में उक्त ) शब्दसे अलग निर्देश है)
शमी .( + शमिः ), शिम्बा ( + शिम्बिा, शिम्बी, सिम्बा, सिम्बिः, सिम्खी । २ स्त्री), 'छीमी, फली' अर्थात् 'मटर, केराव आदिकी उदी' के २ नाम हैं।
ऋद्धम (+ रिद्धम् ), भावसितम् ( + अवसितम् । ३ त्रि), 'हवा. में मोसाकर इकट्ठा करने योग्य धान आदि अन्न' के २ नाम हैं ।
९ पूतम् , बहुलीकृतम् (२ त्रि), ओसाये हुए धान आदि अन्नकी राशि के नाम हैं।
१. 'कङ्करः" इति दरदत्तपाठः' इति महे. मा. दी० ॥ २. 'सिम्बा' इति पाठान्तरम् ।। ३. 'रिखमावसितं' इति पाठान्तरम् ।
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