________________
[प्रथमकाण्डे
अमरकोषः १ 'भेदाख्यानाय न द्वन्द्वो नैकशेषो न सङ्करः ।
और बहुवचन ही होता है । दूसरा उदाहरण जैसे-'स्वरव्यय............ (१६)' यहाँ 'अव्ययम्' इस विशेष पदसे 'स्वर' शब्द अव्यय ही है । इसी तरह अन्यत्र भी समझना चाहिये)॥
१इस ग्रन्थ में प्रत्येक शब्दका लिङ्गमालूम करने के लिये उन शब्दोंके 'द्वन्द्व, एकशेष और सङ्कर' प्रायः नहीं किये गये हैं, जिनके लिङ्ग पहिले नहीं कहे हैं और भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु जिन शब्दोंके लिङ्ग आदि कहींपर कह दिये गये हैं, उन्हींके 'द्वन्द्व, एकशेष और सङ्कर' किये गये हैं । (क्रमशः उदाहरण-पहला द्वन्द्व जैसेजातिर्जातञ्च सामान्य ......(१।४।३१) यहाँ 'जातिसामान्यजातानि' इस तरह और 'कुलिशं भिदुरं पविः' (११॥४७)' यहाँ 'कुलिशभिदुरपवयः' इस तरह द्वन्द्व नहीं किया गया है। यहाँ पहले उदाहरण द्वन्द्व समास करने पर अन्तिम शब्दका लिङ्ग हो जाने से 'जाति' शब्द स्त्रीलिङ्ग और 'जात तथा सामान्य'ये दोनों नपुंसकलिङ्ग हैं, यह मालूम नहीं हो सकता, इसी तरह दूसरे उदाहरणमें भी द्वन्द्व करनेपर 'कुलिश और भिदुर' ये दोनों शब्द नपुंसकलिङ्ग और 'पवि' शब्द खित है, यह मालूम नहीं पड़ सकता। दूसरा एकशेष जैसे-'भोकः समाश्रयश्चौकाः......(३।३।२३३) सहाँ 'ओकस्' शब्दको 'सद्माश्रयश्चौकसौ' इस तरह और 'नभः खं श्रावणो नभाः (३।३।२३२) यहाँ 'खश्रावणौ तु नभसी' इस तरह एक. शेष नहीं किया गया है; अन्यथा पहले उदाहरण में 'ओकस' शब्द 'सम' अर्थात् गृह अर्थमें नपुंसक तथा 'आश्रय' अर्थमें पुंल्लिङ्ग है यह मालूम नहीं पड़ सकता, इसी तरह दूसरे उदाहरणमें भी 'नभस' शब्द 'आकाश' अर्थमें नपुंसकलिङ्ग तथा श्रावण महीना' अर्थमें पुंल्लिङ्ग है यह ज्ञान नहीं हो सकता। तीसरा सङ्कर जैसे-....... स्तवः स्तोत्रं स्तुतिर्नुतिः(१।६।११)'यहाँ पुंल्लिङ्ग, नपुंसकलिङ्ग और स्त्रीलिङ्ग क्रमसे
१. उपाध्याय-गौड-मालाकार-श्रीमोजास्तु इमं विमिन्नक्रमेण व्याचख्युः, तद्वयाख्या च 'उपाध्यायश्च कमाइते....."हस्ताद्यैश्चार्थसूचनेति' क्षीरस्वामिकृतामरकोशोद्घाटनाख्यव्याख्यायो मा० दी० कृतम्याख्यासुधायाः, पं० शिवदत्तकृतटिप्पण्यां क्षीरस्वाभ्यादिमतं, रायमुकुटकृत 'पदचन्द्रिका रामकृष्णदीक्षितकृत 'पीयूष' व्याख्यां चानुपर्येण विलिख्य पूर्वोक्त. टिप्पणीकारमतं च लिखितमिति तत एव सकलं सविस्तरतोऽवधाय॑म् ॥
२. 'परवल्लिङ्ग द्वन्द्वतत्पुरुषयोः (पा० सू० २।४।२६) हति परवलिमाता स्यादित्याशयः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org