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अमरकोषः। [द्वितीयकाण्डे
__ -१ तरलो हारमध्यगः ॥१०२।। २ वालपाश्या पारितथ्या ३ पत्नपाश्या ललाटिका। ४ कर्णिका तालपत्नं स्यात् ५ कुण्डलं कर्णवेष्टनम् ॥ १०३ ।। ६ अवेयकं कण्ठभूषा ७ लम्बनं स्याललन्तिका । ८ स्वर्णैः भालम्बिका ९ ऽथोरसूत्रिका मौक्तिकैः कृता ॥ १४ ॥ १० हारो मुक्तावलो ११ देवच्छन्दोऽसौ शतयष्टिका ।
१ सरल: ( + नायकः । पु) 'हारका सुमेरु' अर्थात् 'हार या माला के जीचमाले बड़े दाने' का । नाम है ॥
२ वालपाश्या ( + बालपाश्या), पारितथ्या (२ स्त्री), 'त्रियोंकी चोटी या जूड़ामें लगानेके लिये सोने आदिको पट्टी' (भूषण-विशेष ) के २ नाम हे ॥
३ पत्नपाश्या, ललाटिका (स्त्री), 'बन्दी, बेना आदि ललाटके भूषण' के २ नाम हैं ॥
४ कर्णिका (स्त्री), तालपस्त्रम् (+ ताइपस्त्रम् । न), 'कनफूल, ऐरन, तरकी, झूमक आदि कानके भूषण के नाम हैं।
५ कुण्डलम्, कर्णवेष्टनम् (२न), 'कुण्डल' के नाम हैं। ('कुण्डल' और 'कणीि में यह भेद है कि 'कुण्डल' को खो-पुरुष दोनों पहनते हैं और 'कर्णिका' को केवल मियाँ ही पहनती हैं)।
६ प्रैवेयकम् ( + प्रैवेयम्, अवम्, । न ), कण्ठभूषा (स्त्री), 'हसुली, कण्ठा, टीक आदि गलेके आभूषण' के २ नाम हैं। ___७ लम्बनम् (न), ललन्तिका (स्त्री), 'गलेले थोड़ा नीचे लटकनेवाले भूषण' के २ नाम हैं। __८ प्रालम्बिका (स्त्री), 'गलेसे थोड़ा नीचे लटकनेवाले सुवर्णके भूषण ( सोनेकी हलकी सिकड़ी आदि) का नाम है ।
९ उरसूत्रिका (स्त्री), 'मोतीके हार का । नाम है ॥ १० हारः (पु), मुक्तावली (बी), 'हार' के नाम हैं।
" देवच्छन्दः (पु), शतपटिका (खो। भा. दो०) 'सी लड़ोवाले हार के नाम है।
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