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मनुष्यवर्ग: ६] मणिप्रभाव्याख्यासहितः ।
१ गौरी तु नग्निकाऽनागतार्तवा । २ स्यान्मध्यमा इष्टरजास्तरुणी युवतिः समे ॥ ८॥ ४ 'समाः स्नुषाजनीवश्व५श्चिरिण्टी तु स्ववासिनी।
गौरी, नग्निका ( + लग्निका) अनागतार्तवा ( ३ स्त्री), 'जिसे रजोधर्म नहीं हुआ हो उस स्त्री' के ३ नाम हैं ।
२ मध्यमा, दृष्टरजाः (= इष्टरजस । २ स्त्री), 'जिसे पहली बार रजोधर्म हुआ हो उस स्त्री' २ नाम हैं ।
३ तरुणी ( + तलुनी ), युवतिः ( + युवती । ३ स्त्री) 'जवान स्त्री' के २ नाम हैं। (स्त्री १६ वर्षकी अवस्थातक 'बाला' १७ से ३० वर्षकी अवस्था तक 'तरुणी', ३१ से ५५ वर्ष की अवस्थातक 'प्रौढा' और उसके बाद 'वृद्धा' कहलाती है। यह वृद्धा रतिमें त्याज्य है। यह अवस्थाकथन जब मनुष्य स्वस्थ एवं पूर्णायु होते थे, उस समय के अनुसार उचित प्रतीत होता है)।
४ स्नुषा, जनी (+जनिः) वधूः (३ सी), 'पतोहू' अर्थात् 'पुत्र, भतीजा या शिष्य आदिकी खी' के ३ नाम हैं।
५ चिरिण्टी (+ चिरण्टी, चरण्टी, चरिण्टी), स्ववासिनी (+ सुवासिनी । २स्त्री), जिसे जवानीके चिह्न कुछ-कुछ मालूम पड़ रहे हो ऐसी विवाहितास्त्री के २ नाम हैं ।
१. 'समाः स्नुषाज नौवध्वश्चिरण्टी तु सुवासिनी' इति पाठान्तरम् ।। २-३. अथ प्रसङ्गास्त्रीणां संचाविशेषा उच्यन्ते
'बालेति गीयते नारी यावर्षाणि षोडश । गौरी स्वसंजातरजाः श्यामा षोडशवार्षिकी' ॥ १॥ इति ।। 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी नववर्षा च रोहिणी। दशवर्षा भवेत्कन्या मत सर्व रजस्वला' ॥१॥
इति संवर्तस्मृति ११६६ ।। पत्र 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी नवमे ननिका भवेत्' इति स्मातों विशेषो नाइत इति क्षी० स्वा०॥ ४. भवस्थाभेदेन स्त्रीणां संशा माह
'यावत्योशसंख्यमन्दमुदिता. बाला ततत्रिंशतं तावत्स्यातरुणीति वाणविशिखः संख्या तु तावद्भवेत् । सा प्रौढेत्यभिधीयते कविवरशा सर्वं स्मृता निन्या कामकाजाविधिषु स्यान्या सदा कामिभिः ॥१॥इति ॥
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