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सन् १९१८ में पं० हंसराज इस पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष बने । मैंने ब्राह्मण-ग्रन्थों में से पूर्वोक्त दोनों प्रकार के वाक्यों का संग्रह करने के सम्बन्ध में उन से बात की । वे मुझे ही कार्य भार लेने के लिये कहते थे । अन्त को हम दोनों एक निश्चय पर पहुंच गये । तदनुसार पं० हंसराज ने सन् १९१८ के अन्त में संग्रह का काम आरम्भ कर दिया । तब से वे यह काम करते ही आये हैं । उन के इस अविश्रान्त परिश्रम का फल अब वैदिक विद्वानों के सम्मुख उपस्थित किया जाता है । मैं भी समय २ पर उनके कार्य का निरीक्षण करता रहा हूं। मुझे सदा ही अत्यन्त प्रसन्नता होती थी, जब मैं उनके संग्रह में प्रायः सब ही आवश्यक शब्दों को आया हुआ पाता था ।
पर इतने बड़े काम में त्रुटियों का होना बहुत साधारण बात है । हमें स्वयं इसकी अनेक नदियों का ज्ञान है । पर धनाभाव में हम इससे अधिक अच्छा काम नहीं कर सकते थे ।
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ग्रन्थनाम ।
हम ने इस संग्रह का नाम वैदिककोष रखा है । सम्भव है अनेक विद्वान् प्रश्न करें कि यह वेदान्तर्गत प्रत्येक शब्द का कोष तो है नहीं, पुन: इसका ऐसा नाम क्यों ? हमारा विचार है कि जैसे यास्कीय-निघण्टु वैदिककोष कहा जाता है, वैसे यह बृहत्संग्रह भी वैदिककोष कहला सकता है । विशेषता इस में यह है कि इस में निर्वचनादि का संग्रह होनेसे यह निम्नादि का भी मूल कहा जा सकता है । कोषार्थ प्रयुक्त ब्राह्मण-ग्रन्थों के नाम ।
अब तक जितने ब्राह्मण ग्रन्थ मुद्रित हो चुके हैं, उनसे ही कोष के इस प्रथम-भाग की रचना हुई है । उनके नामादि और संस्करण जो समय २ गये निम्नलिखित हैं ।
परवर्त
ऋग्वेदीय ब्राह्मण । (१) क - ऐतरेय ब्राह्मणम् -Martin Haug द्वारा गवर्नमेण्ट द्वारा प्रकाशित । सन् १८६३ | Vol. I.
ख- ऐतरेय ब्राह्मणम् – सायणभाष्य समेतम् । सत्यव्रत सामश्रमा द्वारा सम्पादित | Asiatic Society of Bengal. Calcutta. सम्ब १९५२-१९६२. Vol. I-IV.
ग- ऐतरेय ब्राह्मणम् ।
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सम्पादित । मुम्बई
Das Aitareya Brahmana सम्पादक
Theodor Aufrecht. Bom सन् १८७९ ।
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