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उत्तर ----- यद्यपि महाभारत काल में भी पाण्डवों की सन्तति में “पारिक्षित जनमेजय" था, तथापि यह व्यक्ति उससे पूर्वकालीन प्रतीत होता है । देखो महाभारत*, शान्तिपर्व अध्याय १४९ में कहा है--- भीष्म उवाच-.
अत्र ते वर्तयिष्यामि पुराणमृषिसंस्तुतम् । इन्द्रोतः शौनको विप्रो यदाह जनमेजयम् ॥ २ ॥
आसीद्राजा महावीर्यः पारिक्षिजनमेजयः । तथा अध्याय २१
एवमुका तु राजानमिन्द्रोतो जनमेजयम् । याजयामास विधिवत् वाजिमेधेन शौनकः॥३८॥ यहाँ भीष्म महाराज युधिष्ठिर को कह रहे हैं कि“महावीर्यवान् राजा पारिक्षित जनमेजय हुआ था ।"
अतः ब्राह्मणान्तर्गत गाथास्थ ‘पारिक्षित जनमेजय'। महाभारत-काल से कुछ पहले हो चुका था।
प्रश्न-अथर्ववेद २० । १२७ । ७-१० ॥ में महाराज परिक्षिा का वर्णन है । उसे कौरव्य भी कहा है । पं० भगवान दास पाठक भी अपने ग्रन्थ HinduAryan Astronomy and Antiquity of Aryan Race (सन् १९२०) पृ० ४६ पर अथर्ववेद के महाभारतोत्तर कालीन होने में यह एक युक्ति देते हैं । तो क्या वस्तुतः यह बात ठीक है ? ।
उत्तर-अथर्ववेद के जिस सूक्त में परिक्षित् शब्द आया है वह कुन्ताप सूक्तों में से पहला है । कुन्ताप सूक्त अथर्व संहितान्तर्गत नहीं हैं । इन सूक्तों का पदपाठ भी नहीं है । अनुक्रमणिका में इन्हें खिल कहा है। इन सूक्तों में परिक्षित् शब्द के आजाने से सारी संहिता महाभारतोत्तर-कालीन नहीं कही जा सकती | और वस्तुतः
*महाभारत के सब प्रमाण कुम्भघोण के संस्करण से दिये गये हैं । यद्यपि महाभारत के सब संस्करण प्रक्षेपों से भरे हुए हैं, तथापि हमने अपने दिए हुए प्रमाणों की तुलना दूसरे संस्करणों से करके प्रमाण का कुछ २ निश्चित रूप ही उपस्थित किया है।
___+गोपथ ब्राह्मण पूर्वभाग २ ॥ ५ ॥ में जिस जनमेजय पारीक्षित का वर्णन आया है, वह भी यही व्यक्ति प्रतीत होता है।
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