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________________ દેશીદસંગ્રહ 'पुंडे-जा-चाल्यो जा पुत्थ-पोचु-नरम-मृदु पुंड-खागे पुंपुष-संगम-बेनो समागम-मेढ़पुप्फा-बापनी बेन-फई मिलन पुव्वाड-पीन-पुष्ट पुष्पुअ। महारगाथा पुवाडस्कन्ध ! पुष्पुअभुज ! पुत्थालाप ! अन्यतः पुंडे । न सहते पुंपुर अस्माकम् पतिपुप्फा पुडसमगल्ला ॥४१९॥ पुष्ट अलावा ! पुष्ट मुलवाणा ! न भृह मालाया ! તુ બીજી તરફ ચાલ્યા જા; ખાડા જેવા ઊંડા ગાલવાળી મારા પતિની ફઈ આપણા બન્નેને સમાગમ, સહી શકતી નથી. तरुणे पुअंडो पेंडओ च, प्रवरे पुरिल्लो च । असत्यां पुंणालो, पुण्णवत्तं प्रमोदहृतवस्त्रे ॥५१५॥ पुअंड। | पुंगालो-पुन्नाटी-असती स्त्री पेंडअ 1-पुरगण्ड-तरुण-जुवान पुणवत्ता पूर्णपात्र प्रमोदने लोघे पुरिल्ल-पुरा+इल्ल-पुरिल्ल-प्रवर-अप्रेसर | पुण्यवस्त्र हरायेलु-खेंचा J पूर्णवस्त्र J-येलु-वस्त्र १ "पडि गतौ"-(माधवीयधा० पृ० ७५) तथा “पडुङ् गतो" हैमधातुपारा० पृ० ८२) 'पण्ड्' धातु 'पति'-जवं अर्थमां नोंघेलो छे. ए जोतां प्रस्तुत 'पुंडे क्रियापदना मूळमां 'पण्ड्' धातु होवानी शक्यता छे. २ 'गण्ड' शब्दनो 'वीर-शूर' अर्थ हेमचन्द्रे (अनेकार्थ सं० कां• २ श्लो० ११२) आपेलो छे ए जोतां पुंसु गण्डः - पुंगण्ड: अर्थात् पुरुषोमां जे शूर+ते पुंगण्ड. ३ पुंमांसं नाटयति इति पुनाटो. मसती माटे 'पुश्चली' शब्द जेवो भा 'पुनाटी' शन्दछे. . ४ संस्कृतकोशमां तथा संस्कृत साहित्यमा 'पूर्णपात्र' शब्द भावे छे; तेमो अर्थ-उत्सवने समये हर्षने लोधे अलंकार, वस्त्र वगेरे जे खेंची लेवाय तेनु नाम पूर्णपात्र अथवा पूर्णान. पूर्णपात्र-पुण्णवत्त. हेमचन्द्र कहे छे के “उत्सवेषु सुहृद्भिर्यद् बलाद् आकृष्य गृह्यते ।। वस्त्र-माल्यादि तत् पूर्ण पात्रं पूर्णानकं च तत् ॥ (अभिधानचि. कां० ३ xलो० ३११) हारावलीमा श्रीपुरुषोत्तमदेव पण लो: ५९मां हेमचन्द्रनी पेठे ज कहे छे. वळो, मालतीमाधव नाटकमा "तत् कामं प्रभवति पूर्णपात्रवृत्त्या'' (चतुर्थ अंक लो० १) एम कहीने पूर्वोक्त अर्थमां भवभूति पण 'पूर्णपात्र' शब्दने वापरे छे. 'पूर्णपात्र'नो अर्थ 'वधामणो आपनार' पण थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016081
Book TitleDesi Shabda Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherUniversity Granth Nirman Board
Publication Year1974
Total Pages1028
LanguageGujarati
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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