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ह२२ पाइअसहमहण्णवा
सुारदय-सुवत्त विद्याधर नरेश (पउम ७, २६) दत्त पुं सुलसा स्त्री [सुलसा] १ नववें जिनदेव की | विजय-क्षेत्र, प्रान्त-विशेष, जिसकी राजवानो [दत्त] एक राज-कुमार (उप ६३६) । प्रथम शिष्या (सम १५२)। २ भगवान् कुंडला नगरी है (ठा २, ३-पत्र ८० इक) सुरिंदय पुंसुरेन्द्रक] विमानेन्द्रक, देव
सुवच्छा स्त्री [सुबत्सा] १ अधोलोक में विमान-विशेष (देवेन्द्र १३१)। प्रागामि काल में तीर्थंकर होगा (ठा 8-पत्र
रहनेवाली एक दिशा-कुमारी देवी (ठा४५५; सम १५४)। ३ नाग नामक गृहपति सुरी स्त्री [सुरीदेवी (कुमा)
पत्र ४३७)। २ सौमनस पर्वत पर रहनेवाली की बी (अंत ४)। ४ शक्र की एक अग्र- एक देवी (इक)। सुरंगा देखो मुरंगा (पउम ८, १५८) ।
महिषी, एक इन्द्राणी पउम १०२, १५६)। सुरुग्घ पृ न] देश-विशेष (हे २. ११३;
सुवज्ज पुं[सुबन] १ एक विद्याधर-वंशीय ५ शंखपुर के राजः सुन्दर की पत्नी (महा) षड्ज वि [ज] देश-विशेष में उत्पन्न
राजा (पउम ५. १६)। २ न. एक देवसुलह देखो सुलभ (स्वप्न ४८; महा; दं (कुमा)।
विमान (सम २५)। सुरु? वि [सुरुष अत्यन्त रोप-युक्त (पउम
सुवट्टिय वि [सुतित] अतिशय गोल किया सुलाह पुं [सुलाभ ] अच्छा नफा (सुपा | ६८, २५)
हुप्रा (राज)। सुरूया स्त्री [सुरूपा] एक इन्द्राणी (णाया
सुवण न [स्त्रपन] शयन (मोघ ८७ पंचा | सुली स्त्री [दे] उल्का, आकाश से गिरती २-पत्र २५२) । देखो सुरुवा।
१, ४५, उप ७६२) । प्राग (दे ८, ३६) सुरूत्र सुरूप] १ भूत-निकाय के दक्षिण
सुवण पुसुपर्ण] १ गरुड़ पक्षी (उत्त १४; सुलुसुल ।प्रक[सुलमुलाय ] 'सुल' 'सुल' दिशा का इन्द्र (ठा २, ३-पत्र ८५)। २
४७)। २ भवनपति देवों की एक जाति सुलसुलाय ) आवाज करना। सुलुसुलायइ न. सुन्दर रूप। ३ वि. सुन्दर रूपवाला
(औप)। ३ प्रादित्य, सूर्य (गउड)कुमार (तंदु ४१)। वकृ. सुलुसुलिंत, सुलसुलें। (उवा; भग)।
पुं[कुमार] भवनपति देवों की एक जाति (तंदु ४४महा)। सुरूवा श्री [सुरुषा] सुरूप तथा प्रतिरूप
सुलूह वि[सुरूक्ष प्रत्यन्त लूना-रूखा (सूप नामक भूतेन्द्रों की एक एक अग्र-महिषी १, १३, १२)
सुवण्ण पुं[दे] अर्जुन वृक्ष (दे ८, ३७) । (ठा ४, १-पत्र २०४)। २ भूतानन्द सुलोअ देखो सिलोअश्लोक (प्रवि १६)
सुवण्ण न [सुवर्ण] १ सोना, हेम (उवा; नामक इन्द्र की एक अग्र-महिषी (इक)।
महाः गाया १,१७ गउड)। २ पृ. भवनसलोयण ३ एक दिशा-कुमारी देवी (ठा ४,१-पत्र
सुलोचन] एक विद्याधर-नरेश पति देवों की एक जाति (भग)। ३ सोलह १९८६-पत्र ३६.): ४ एक कुलकर(पउम ५, ६६)
कर्म-माषक का एक बाँट (अणु १५५)। ४ पत्नी (सम १५०)। ५ सुन्दर रूपवाली सुलोल वि [सुलोल] प्रति चपल (कप्पू)। सुन्दर वणं । ५ वि. सुन्दर वर्णवाला (भग)। (महा) ।
सुल्लन [शूल्य शूला-प्रोत मांस (दे ८, "आर, कार [कार] सोनी, सुनार (दे सुरेस पु[सुरेश १ देव-पति, इन्द्र। २ ३६ पाम)।
महा), कुंभ '[कुम्भ] प्रथम बलदेव के उत्तम देव (सुपा ६१४) 0
सुव प्रक [स्वप्] सोना । सुवइ, सुवंति धर्म-गुरु एक जैन मुनि (पउम २०, २०५) । सुरेसर सुरेश्वर] इन्द्र, देव-राज (सुपा (हे १, ६४ षड् ; महाः रंभा)। भवि. 'कुसुम न [कुसुम] सुवर्णयूथिका लता २७; कुप्र ४)।
सुविस्सं (पि ५२६) । वकृ. सुवंत, सुवमाण का फूल (राय ३१), कूला श्री [कूला] मुलक्खणि वि[मुलक्षणिन् उत्तम लक्षण- __ (पान; से १, २१; भग)। संकृ. सुविऊण नदी-विशेष ( सम २७, इक ) 'गुलिया वाला (धर्मवि १४२)।
स्त्री [गुलिका] एक दासी का नाम (महा)। मुलग्ग चि [मुलग्न] अच्छी तरह लगा हुआ सुव देखो स= स्व (हे २, ११४; षड् ; कुमा) 'सिला स्त्री [शिला] एक महौषधि (ती (महा)। सुव (अप) देखो सुअ = श्रुत, सुत (भवि)।
५, राज)। "गर पुं [कर] सोने की सुलझ वि सुलब्ध] सम्यक् प्राप्त (णाया
खान (णाया १, १७-पत्र २२८) र सुवंस पु[सुवंश] १ अच्छा बास । २ वि. १, १-पत्र २४; उबा)।
पुं [कार] सोनो (उप पू ३५१)। देखो सुन्दर कुल में उत्पन्न, खानदानी (हे ४, मुलभ । वि [सुलभ] सुख से प्राप्त हो सके, ४१६)
सुबन्न = सुवर्ण । सुलभ ) वह (था १२ सुख २, १५; महा)। सुवग्गु पु[सुवल्गु] एक विजय-क्षेत्र, जिसकी । सुषण्णाषLJ
महा) सवग्ग पंसिबला एक विजय-क्षेत्र जिसकी सुवण्णविंदु पु[दे] विष्णु (दे ८,४०)।। सुलस [सुलस] पर्वत-विशेष (इक)। राजधानी खड्गपुरी है (ठा २, ३.-पत्र सुवण्णिा वि [सौवर्णिक] सुवर्ण-मय, सोने सुलस न [दे] कुसुम्भ-रक्त वन (दे ८, ३७) ८० इक)।
का बना हुमा (हे १, १६०; षड् प्राक सलसमंजरी। स्त्री [दे] तुलसी (दे ८, ४०
सुवच्छ पुं[सुबत्स] १ व्यन्तर-देवों का सुवच्छ पुंसुवर
३६) 10 सुलसा पान)
एक इन्द्र (ठा २, ३--पत्र ८५)। २ एक सुवत्त देखो सुव्वत्त (राज) ।
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