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सुणक्खत्त-सुत्थ पाइअसमरणयो
६१५ की पटरानी-तीसरा स्त्री-रत्न (सम १५२% सुण्ण न [शून्य] १ निर्जन स्थान (गउड सुन्त देखो सुअ = श्रुत, पचक्लमोहिमणमहा)। ३ भूतानन्द प्रादि इन्द्रों के लोकपालों ५२४) । २ वि.रिक्त, रीता, खालो (स्वप्न ३१ | केवलं च पक्खि मइसुतं' (जीवस १४१)।की अग्रमहिषियों के नाम (ठा ४,१-पत्र । गउड।: निष्फल: व्यर्थ. निष्प्रयोजन (गउड सुत्त देखो सेन्त = स्रोतस् (भवि) । २०४: इक) ८४२९७२)। ४ न. तप-विशेष, एकाशन
सुत्त देखा सोत्त = श्रोत्र (रंभाः भवि) सुणक्खत्त पुं[सुनक्षत्र] १ एक जैन मुनि द्रत (संबोध ५७) । देखो सुन्न ।
सुत्त विसुम] सोया, शयित (ठा ५, २(मनु २)। २ भगवान् महावीर का शिष्य सुगआर देखो सुग्गार दे ३, ५४) ।
पत्र ३२६, स्वप्न १०४, प्रासू ६८ श्रा एक मुनि (भग १५-पत्र ६७८)। सुण्णइथ वि [शून्यन] शून्य किया
२५) सुणक्खा स्त्री [सुनक्षत्रा] पक्ष की दूसरी ! सुण्णविअ हुआ. ११, ४० गउड गा
सुत्त वि सक्ती १ सुचारु रूप से कहा हुआ । रात (सुज्ज १,१४)।
२६, १६६६.६) सुणग दे । सुगय (प्राचाः पि २०६)।
। २ न. सुभाषित. सुन्दर वचनः मुकइब्ध मुत्तसुग्णार पुं[सुवर्णन सुनार, सोनी (दे ५, सुणण न [श्रवण] सुनना (स ५३)
उत्तीए' (सुपा ३३) ३६) सुरक्षाशुनका कुक्कुर, कुत्ता (हे सुबह देखो सह % सुक्ष्म (हे १, ११८: सुन्दन सूसूता, धागा, वन तन्तु (विधा सुणह १, ५२ गा ५५०; ६८, ६९ कुमा)
१, --पत्र ८५; सुपा २८१)। २ नाटक णाया १, १-पत्र ६५; गा १३८; १७५; सुण्हसिअ वि [द] स्वपन-शोल, सोने की
का प्रस्ताव (मोह ४८; मुपा १). ३ शाम्बसुर २, १०३, ६, २०४; श्रा १६; कुप्र आदतवाला ( दे ८, षड)।
विशेष ( भगः ठा४, ४--पत्र २८३: जी १५३; रंभा)। स्त्री. सुणई, सुगिना (कुमाः सुण्हा स्त्री [सास्ना] गौ का गल-कम्बल (हे
३९) पुंकार] ग्रंथकार (कप्यु ।। गा ६८६) । २ . छन्द-विशेष (पिंग)। १, १५; कुमा)4 ल ल वृषभ, बैल
कंठठ ] आह्मग. विप्र (पउम ४, सुणहिल्या स्त्री [शुनकी] कुत्ती, मादा-कुक्कुर (कुमा)+लचि [ल. चह्न १ भगवान
६५),डन [कृत द्वितीय जैन प्रागम
ग्रंथ (सूपनि २) गन [क] यज्ञोपवीत ऋषभदेव । २ महादेव कुमा)। (वज्जा ८६)
(प्रौप, । धार पुं[धार देखो हार सुणावण न [श्रावण] सुनाना (विसे २४८५)। सुण्हा स्त्री [स्नुपा] पुत्र-वधू (णाया १,७
(सुपा १ मोह ४८)। फासि णित्ति सुणावि वि [श्रावित] सुनाया हुमा (सुपा।
। पत्र ११७; सुर ४,६८ सुतणु स्त्री सुनु] नारी, स्त्री (सुर २,
स्त्री ६०२)
नियुक्ति] सूत्र की व्याख्या
(अणु) रुइ श्री [रुचि] शास्त्र-श्रद्धा सुणासीर पुं [सुनासीर] इन्द्र, देव-राज
(प्रोप) सुतरं प्रसुतराम्] निश्चित अर्थ के अतिशय
धार] १ प्रधान नट, (पान; हम्मीर १२) का सूचक अव्यय (विसे ८६१)
नाटक का मुख्य पात्र (प्रानू : ६३)। २ सुणाह देखो सुनाभ (राज)
सुतार, बड़ई (कम्म १, ४८) । सुतवसिय न [सुप ला] सुन्दर तप, सुगिज देखो सुग। । तपश्चर्या का सुन्दर अनुष्ठान (राज)।
सुत्ति नो मत सोपः घोंघा (हे २, १३८ सुणिअ वि [श्रुत] सुना हुआ (कुमाः रयण ।
कुमा) । म स्त्री [मती] चेदि देश की सुतवास्स वि[सुपस्थिन् ] अच्छा तपस्वी
प्राचीन राजधानी (णाया १,१६-पत्र (सम ५१)। सुणिअ पुं[शौनिक] कसाई (सिरि १०७७)
२०८) सुतार वि[सुमार] १ अत्यन्त निर्मल । अतिसुणिउग देखो सुनिउण (राज)।
शय ऊँचा। ३ अच्छा तैरनेवाला । अत्युच्च
सुत्ति स्त्री मुक्ति] सुन्दर वचन, भुभाति ।। सुणिपकंप देखो सुनिप्पकंप (राज) प्रावाजवाला (हे १, १७७)।
त्ति पात्रो [प्रत्यया] एक जैन मुनि
। शाखा (कप्प-पृ ७६ टि राज) सुणिम्मिय वि [सुनिर्मित] चारु रूप से बना सुतारया , स्त्री [सुरा] १ भगवान् सुविधि- । हुआ (कप्प)।
सुतारानाथजी को शासन-देवी (संतिक सुत्तिर देने सत्तअ = मोत्रिक (वन) सुणिव्य वि [सुनिर्वत] अत्यन्त स्वस्थ २ सुग्रीव की पत्नी पिउम १०,१)। ३ सुत्तिय निवृत्रित सूत्र-निबद्ध (राज)। (णाया १, १-पत्र ३२) । प्राभूषण-विशेष (कुमा)।
सुत्थ विसुन्थ] १ स्वस्थ, तन्दुरुस्त । २ सुणिस । वि [सुनिशान्त] अच्छी तरह सुना सुतितिक्स वि सुतितिक्ष] सुख से सहन सुखी (संक्षि १२; गा ४७८; महा; देइय हुआ, 'हमेगेसि प्रायारगोयरे को सुणिसंते करने योग्य (ठा ५, १-पत्र २६६) २६६: १०३१ टी)। भवति' (याचा १, ८, १, २, २, २, २, सुतोसअवि [सुनोष्य सुख से तुष्ट करने सुत्थ नास्थ्य] १ तंदुरुस्तो, स्वस्थता । १०, १३, १५) । योग्य (दस ५, २, ३४) ।
२ सुखिपन (संक्षि १२, कुप्र १७६: सुपा सुणुसुणाय सक [सुनसुनाय ] 'सुनु' 'सुन्' सुत्त सक [ सूत्रय, बनाना । सुत्तइ (सुपा १८ १२८, स १३५, उप६०२, धर्मवि मावाज करना । वकृ. सुणुसुणायंत (महा) २३५) ।
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