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सुक्काणय-सुचिर पाइअसहमहण्णवो
६१३ सुक्कागय न [दे] जहाज के आगे का ऊँचा सुगंधा स्त्री [सुगन्धा] पश्चिम विदेह का एक (ठा ५, १-पत्र ३०२)। २ भारतवर्ष में काष्ठ; गुजराती में 'सुकान' (सिरि ४२४) सिरि ४२४) विजयक्षेत्र (इक) IN
होनेवाला नवयाँ प्रतिवासुदेव राजा (सम सुक्काम न [शुक्राभ] १ एक लोकान्तिक सुगंधि देखो सुधि (प्रौप)। "पुर न [पुर] १५४) । ३ राक्षस-वंश का एक राजा, एक देव-विमान (पव ३६७)। २ वैताब्य पर्वत वैताब्य की उत्तर श्रेरिण में स्थित एक विद्या- लङ्का-पति (उम ५, २६०) । ४ नववें की दक्षिण श्रेणि में स्थित एक विद्याधर- घर-नगर (इक)
जिनदेव के पिता का नाम (सम १५१) । नगर (इक)।
सुगण वि सुगण अच्छी तरह गिननेवाला । ५ राजा वालि का छोटा भाई (पउम ६,६: सुक्किय देखो सुकय (भवि)। (षड् )
से १,४६: १४, ३६)। ६ एक राजा का सुगम वि [सुगम] १ अल्प परिश्रम से जाया नाम (सुर . २४)! ७ न. नगर-विशेष सुकिय देखो सुक्कीअ (राज)।
जा सके बैसा. सुरु-मध्य (प्रोधभा ७५)। (उत्त , १) IN सकिल देखो सुक्क = शुक्ल (भग; २ सुबोध (चेय ३६३)। सुशिलय प्रौप; हे २, १०६, पंच ५,
सुध (अप) देखो सुइ = सुख (हे ४ ३६६) । सुकिल्ल ३३; पण १०४); मत्तं सुगय वि सुगत] १ प्रच्छो गतिवाला (ठा
सुघटु वि [मुघण] अच्छी तरह घिसा हुआ सुक्किलवत्थं' (गच्छ २, ४६; कप्प; सम ४१ ४, १-पत्र २०२ कुप्र १००)। २ सुस्थ ।
(राय ८० टी)। धर्मसं ४५४) । स्त्री. 'एगो सुक्किलियाएं एगो ३ धनी । ४ गुणी (४, १-पत्र २०२
सुघरा स्त्री [सुगृहा] मादा-पक्षी की एक सबलाणं वग्गो को (आक ७)। राजः हे १, १७७)। ५. बुद्धदेव (पान;
जाति जो पापना घोंसला खूब सुन्दर बनाती पव ६४)।' सुक्की वि [सुक्रीत] अच्छी तरह खरीदा सुगय वि [सौगत] बुद्ध-भक्त, बौद्ध (सम्मत्त
है (नाच १)। हुआ. 'मुक्की वा सुविक्कीअं (दस ७, ४५)।
१२०)
| सुबोस सुघाप] १ एक कुलकर-पुरुष सुक्ख देखो सुक्क = शुष् । वकृ. सुक्खंत
सुगर वि[सुकर] सुख-साध्य, अल्प परिश्रम (गा ४१४; वज्जा १४६)।से हो सके ऐसा (प्राचा १, ६, १, ८)
(उप ७२८ सी)। ३ पुंन. सनत्कुमार देवलोक सुक्ख देखो सुक्क = शुष्क (हे २,५; गा २६३,
का एक विमान (सम १२)। ४ लान्तक सुगरि? वि [सुरिट] अति बड़ा (श्रु १६) मा ३१, उप ३२० टो)।
नामक देवलोक का एक विमान (सभ १७) । सुगिझ वि [सुग्राह्य सुख से ग्रहण करने ।
५ वि. सुन्दर प्रावाजवाला (जीव ३,१; सुक्ख न [सौख्य सुख (कप्पा कुमाः सार्ध योग्य (पउम ३१, ५४)।
भवि)। एक नगर का नाम (विपा २,८४ ५१, प्रासू २८; १४५) । सुगिम्ह पुंसुग्रीम] १ चैत्र मास की
| सुघोमानी सुबोषा] १ गीतरति नामक सुक्खव देखो सुक्कव । कर्म. सुक्खवीअंति पूर्णिमा (ठा ५,२-पत्र २१३) । २
गन्धर्वेन्द्र की एक पटरानी (ठा ४.१-पत्र (पि ३५६ ५४३) फाल्गुन का उत्सव (2८, ३६)।
२:४)। २ गीतयशनामक गन्धर्व की एक सुक्खिय वि [स्वाख्यात] अच्छी तरह कहा सुगिर वि [सुगमन्छी वाणीवाला (षड्)
पटरानी आ४, १-पत्र २०४) । ३ हुमा, प्रतिज्ञातः 'तो सुइवइयराजपणे ते सुगहिय) वि सुगृहीत] विख्यात.
सुधर्मेन्द्र की प्रसिद्ध घंटा (पएह २, ५-पत्र सुक्खियमासि बुद्धिलेण अद्धलक्खं, तन्निमित्तसुगिहीय विश्रुत (स ६६; १३) ।
१४६, सुपा ४५)। ४ वाद्य-विशेष (राय मेसो पेसिपो चालीससाहस्सो हारो त्ति वोत्त सुगी देखो सुई = शुकी (कुमा)समपिउं च हारकरंडियं गो दासचेडो' सुगुत्त पुं [सुगुप्त] एक मंत्री का नाम सुचंद सुचन्द्र] ऐरवत वर्ष में उत्पन्न (महा) । (महा)।
दूसरे जिन-देव (सम १५३) । सुखम (पै) देखो सह = सूक्ष्म 'मुखमवरिसो' सुगुरु सुगुरु] उत्तम गुरु (कुमा)।
सुचरिशन सुवरित] १ सदाचरण, सदा(प्राकृ १२४)।
सुग्ग न [दे] १ आत्म-कुशल (दे ८,५६ चार कप्पः गउड) । २ वि. सदाचरण सुग देखो सुअ = शुक (उप ६७२; स ८६; :
सण)। २ वि. निर्विघ्न, विघ्न-रहित । ३ .
नावघ्न, विघ्न-राहत । ३ संपन्न (गउड)। ३ अच्छी तरह पाचरित
' विसर्जित (दे ८, ५६) । उर ५, ७ कुप्र ४३८ कुमा)।
(पउम ७५, १८: रणाया १,१६-पत्र सुग्गइ देखो सुगइ (सुपा १६१; सं ८१)।
२०५)सुगइ स्त्री [सुगति] १ अच्छी गति (ठा ३,
सुग्गय देखो सुगय - मुगत (ठा ४, १-पत्र सुचिण्ण। वि सुचीर्ण] १ सम्यग पाच३--पत्र १४६)। २ सन्मार्ग, अच्छा मार्ग, २०२)
सुचिन्न । रितः 'तवसंजमो सुचिरागोवि' (सपनि ११५)। ३ वि. अच्छी गति को सरगाह प्रकाप्रीफैलना । सुग्गाहइ (पउम, ६५, ६४, २२ ठा ४, २-पत्र प्राप्त (प्रावम)। (धात्वा १५६)
२१०) । २ न. पुण्य (प्रौपः उवा)। सुगंध देखो सुअंध (कप्पः कुमा; प्रौप; सुर सुग्गीव पुं[सुग्रोव] १ नागकुमार देवों के मुचिर न [सुचिर] प्रत्यन्त चिर काल, २, ५८)।
' इन्द्र भृतानन्द के अश्व-रौन्य का अधिपति सुदीर्घ काल (सुपा २७ महा: प्रासू ३२) । ११५
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