________________
पाइअसद्दमण्णवो
अजिआ-अभावग अजिआ स्त्री [आर्यिका] १ मान्या, पूज्या ४)। दोस' [ दोष आध्यात्मिक दोष- अभवसिय वि [अध्यवसित] १ जिसका स्त्री। २ साध्वी, संन्यासिनी (सम ६५; पि क्रोध, मान, माया और लोभ (सून १, ६)। चिन्तन किया गया हो वह (प्रौप)। २ न., ४४८) । ३ माता की माता (दस ७)। ४ वत्तिय वि [प्रत्ययिक] चित्त-हेतुक, मन चिन्तन, विचार (अणु)। पिता की माता (स २५५) ।
से ही उत्पन्न होनेवाला शोक, चिन्ता आदि| अज्भवसिय न [दे] मुंड़ा हुआ मुंह (दे १, अज्जिड्डीअ वि [दे] दत्त, दिया हुआ (वंव (सूत्र २, २, १६)। विसोहि स्त्री[वशुिद्धि] ४०)। १ टी)।
आत्म-शुद्धि (ोध ७४५)। संवुड वि अज्झसिय वि [दे] देखा हुआ, दृष्ट (दे १, अजिणण देखो अजणण (उप ६६४)।
[संवृत] मनो-निग्रही, मन को काबू में रखने- ३०)। अज्जीव देखो अजीव, 'धम्माधम्मा पुग्गल,
वाला (पाचा)। सुइ स्त्री [ श्रुति अध्यात्म- अज्झरस सक [आ + क्रुश] आक्रोश करना,
शास्त्र, आत्म-विद्या, योग-शास्त्र (पराह २.१) अभिशाप देना । अज्झस्सइ (दे १.१३)। नह कालो पंच हुँति अजीवा' (नव १०)।।
सुद्धि स्त्री [°शुद्धि] मन की शूद्धि (पाचू अज्झस्स विथआकष्ट] जिस पर माक्रोश अज्जु (अप) अ [अद्य आज (हे ४, ३४३; १)। सोहि स्त्री [शुद्धि] मनः-शुद्धि (प्राचू |
अज्झस्सिय किया गया हो वह दि १,१३)। भविः पिंग)।
अज्झहिय वि [अध्यधिक] अत्यंत, अतिशअज्जुअ (शौ) देखो अज = आर्य (नाट)। अज्झस्थिय वि[आध्यात्मिक प्रात्म-विषयक,
यित (महा)। अज्जुआ (शौ) देखो अजा-आर्या (पि ।
आत्मा या मन से संबंध रखनेवाला (विपा १,
अज्झा स्त्री [दे] १ असती, कुलटा । २ प्रशस्त १.०५) । १; भग २,१)।
स्त्री । ३ नवोढ़ा, दुलहिन । ४ युवती स्त्री।६ अज्जुण ' [अर्जुन] १ तीसरापाण्डव (गाया अज्झत्थीअ देखो अज्झत्थिय (पव १२१)।
यह (स्त्री) (दे १, ५०; गा ८३८, ९९८ १, १६) । २ वृक्ष-विशेष (गाया १,
वजा ६४)। प्रौप) । ३ गोशालक के एक दिक्चर (शिष्य) अज्झप्पिा वि [आध्यात्मिक] १ अध्यात्म
अज्झा सक [अधि+इ] अध्यन करना, का नाम (भग १५)। ४ न. श्वेत सुवर्ण,
का जानकार (अज्झ २)। २ अध्यात्म-सम्बन्धी अज्झाअ पढ़ना । अज्झामिः (सुख २, १३)। सफेद सोना: 'सव्वज्जुरणसुवरणग्गमई' (प्रौप)। (सूअनि ६४)।
हेकृ. अज्झाइउ (सुख २, १३)। ५ तृण-विशेष (पएण १)। ६ अर्जुन वृक्ष का | अज्झय वि [दे] प्रातिश्मिक, पड़ोसी (दे १, अज्झाअ सक [अध्यापय् ] पढ़ाना। कर्म. पुष्प (गाया १, ६)।
अज्झाइजइ (सुख २, १३)। अजणगअर्जुनका १-६ ऊपर देखो। अज्झयण पुंन [अध्ययन] १ शब्द, नाम । अज्झाइअव्व वि [अध्येतव्य] पढ़ने योग्य, अज्जणय ७एक माली का नाम (अंत १८)। (चंद१)। २ पढना, अभ्यास (विसे)। ३ 'सुग्रं मे भविस्सइ त्ति प्रज्झाइप्रव्वं भवई' (दस अज्जू स्त्री [आर्या] सास, श्वश्र (हे १, ७७)। ग्रन्थ का एक अंश (विपा १, १)। ६, ४, ३)। अज्ञोग देखो अजोग = अयोग (पंच १)। अज्झयणि वि[ अध्ययनिन् ] पढ़ने वाला,
अज्झाय पुं [अध्याय १ पठन, अभ्यास अजोगि देखो अजोगि (पंच १)। अभ्यासी (विसे १४६५)।
(नाट) । २ ग्रन्थ का एक अंश (विसे १११५) अजोरुह न [दे] वनस्पति-विशेष (पएण १)। अझयाव सक [अधि + आप] पढ़ाना,
प्राप)। अज्झक्ख वि [अध्यक्ष] अधिष्ठाता (कप्पू)। सीखाना । । अझयाविति (विसे ३१६६) ।
अज्झारुह [अध्यारुह] १ वृक्ष-विशेष । २ अज्म पु[दे] यह (पुरुष, मनुष्य) (दे १,
वृक्षों के ऊपर बढ़नेवाली वल्ली या शाखा अज्झवस सक [अध्यव + सोj विचार करना,
वगैरह (पएरण १)। अज्झत्त देखो अज्झप्प (सूप्र १, २, २, १२)। चिंतन करना। वकृ. अज्झवसंत (सुपा
अज्झारोव पुं[अध्यारोप] आरोप, उपचार अज्झत्थ वि [दे] आगत, आया हुआ (द १,
५६५)। अज्झवसण । न [अध्यवसान] चिन्तन,
(धर्मसं ३५२; ३५३) । अज्झवसाण विचार, आत्म-परिणाम; 'तो अज्झारोवण न [अध्यारोपण] १ प्रारोपण, अज्भत्थान [अध्यात्म] १ आत्मा में, आत्मअज्झप्प | संबंधी, प्रात्म-विषयक (उत्त १;
कुमरेणं भरिणय, मुरिणपुंगव ! रइसुहझवस- ऊपर चढ़ाना। २ पूछना, प्रश्न करना (विसे प्राचा)।२ मन में, मन संबंधी, मनो-विषयक
एंपि । कि इयफलयं जायइ ? (सुपा ५६५) २६२८)। (उत्त ६; सूअ १, १६, ४) । ३ मन, चित्त; प्रासू १०४: विपा १, २)।
अज्झारोह पुं [अध्यारोह] देखो अज्झारुह 'अज्झप्पसारणयणं (दसनि १, २९) । ४ शुभ- अज्झवसाय पुं[अध्यवसाय विचार, आत्म- (सूम २, ३, ७, १८, १९)। ध्यान, 'अझप्प-रए सुसमाहि-अप्पा, सुत्तत्थं च |
परिणाम, मानसिक संकल्प (प्राचाः कम्म ४, अभाव देखो अज्झाअ = अध्यापय् । अज्झाविप्राणइ जे स भिक्खू' (दस १०,१५)। ५ पुं.. ८२)।
वेइ (सुख २,१३)। वक अज्झावअंत (हास्य प्रात्मा (प्रोघ ७४५)। जोग पुं[योग] अज्झवसिय वि [अध्यवसित] निश्चित, | १२४) । योग-विशेष, चित्त की एकाग्रता (सूत्र १,१६, (धर्मसं ४२८)।
| अज्झावग देखो अज्झावय(दसनि १,१ टी)।
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org