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पाइअसहमहण्णवो
समहिअ-समाणिआ समहिअ वि [समधिक] विशेष ज्यादा (प्रासू समाउट्ट वि[समान ] विनम्र (वव १) समागूढ विमागूढ] समाश्लिष्ट प्रालिंगित
१७८ महा. कुमा; सुर ४,१६६, सण) समाउत्त विसमायक्ता यक्त. सहित (प्रौपः । (पउम ३१, १२२) । सम गय वि[समधिगत १ प्राप्त, मिला सुपा ३०१)।
समाज पु[समाज] समूह, संघात (धर्मवि हुपा । र ज्ञात (सण) समाउल वि सभाकुल] १ समिश्र, मिश्रित
१२३) । देखो समाय = समाज । समाहटु सक [ समधि + स्था] काबू में (राय) । २ व्याप्त (सुपा ३०५)। ३ प्राकुल,
समाजुत्त न समायुक्त] संयोजन, जोड़ना रखना, अधीन रखना। कवकृ. समहिट्टिव्याकुल (हे ४, ४४४, सुर ६, १७४) ।
(राय ४०)। जमाण (राय १३२)
समाढत्त वि समारब्ध] १ प्रारब्ध, जिसका समाउलिअ वि [समाकुलित] व्याकुल बना समहिद्वाउ वि[समधिष्टा] अध्यक्ष, मुखी,
प्रारम्भ किया गया हो वह (काल; पि २२३; हुमा (स ६६)
२८६)। २ जिसने प्रारम्भ किया हो वहा अधिपति (प्राचा २, २, ३, ३, २, ७, १,
समाएस पुसमादेश १ प्राज्ञा, हुकुम २)
‘एवं भरिणउं समाढत्तो (सुर १, ६६) (उप १०२१ टो)। २ विवाह आदि के समहि दुअ वि[समधिष्ठित] आश्रित (उप |
| समाण सक [भुज् ] भोजन करना,
उपलक्ष में किए हुए जोमन में बचा हुआ ७२८ टीः सुपा २०६) वह खाद्य जिसको निर्ग्रन्थों में बाँटने का
खाना । समाणइ (हे ४, ११०; कुमा) समाहाडि ढय देखो स-महिड्ढेिय = स.
संकल्प किया गया हो (पिंड २२६; २३०)
समाण सक [सम् + आप्] समाप्त करना, महद्धिक ।
पूरा करना। समारणइ (हे ४, १४२), समाएसण न [समादेशन] आज्ञा, हुकुम समहिपदिय वि [समभिनन्दित] पान
समाणेमि (स ३७६) (भवि)1. न्दित खुशी किया हुआ (उप ५३० टो)।
समाण वि [समान] १ सदृश, तुल्य, सरिखा समाओग समायोग] स्थिरता (तंदु । समहिल वि [समखिल] सकल, समस्त
(कप्प)। २ मान-सहित, अहंकारी (से ३, १४) (गउड)
४६) । ३ पुंन. एक देव-विमान (सम ३५) समाओसिय वि[समातोषित] संतुष्ट किया समहुत्त वि [दे] संमुख, अभिमुख (अणु हुमा (भवि)
समाग वि [सत् ] विद्यमान, होता हुआ २२२)।
(उवा; विपा १, २-पत्र ३४)। स्त्री.णी समाकरिस सक [समा + कृष] खींचना । समा स्त्री [समा] १ वर्ष, बारह मास का
(भग; कप्प)।हेकृ. समाकरिसिउं (पि ५७५) । समय (जी ४१)। २ काल, समय (सम
समाग देखो संमाण = संमान (से ३, ४६) 10 समाकरिसण न [समाकर्षण ] खींचाव ६७ ठा २,१--पत्र ४७; कप्प)।
समाणअ वि[समापक] समाप्त करनेवाला (सुपा ४)। समाअम देखो समागम (अभि २०२; नाट.
(से ३, ४६)। | समाकार सक [समा + कारय् ] अाह्वान | समाणण न [भोजन] भक्षण, खानाः 'तंबोलमालती ३२) समाइन्छ सक[समा + गम् ] १ सामने करना, बुलाना । संकृ. समाकारिय (सम्मत्त
समागणपज्जाउलवयणयाए' (स ७२)। भाना । २ समादर करना, सत्कार करना। २२६)।
समाणत्त वि [समाज्ञप्त] जिसको हुकुम संकृ. समाइच्छिऊण (महा)। समागच्छ देखो समागम = समा + गम् ।
दिया गया हो वह (महा)। समाइच्छिय वि [समागत] पाहत, सत्कृत समागत देखो समागय (सुर २, ८०)। |
समाणिअ देखो संमाणिय (से ३, २४)। (स ३७२)। समागम सक [समा + गम् ] १ सामने
समाणिअ वि [समानीत] जो लाया गया समाइट्ठ वि [समादिष्ट] फरमाया हुआ पाना। २ प्रागमन करना। ३ जानना।
हो वह, मानीत (महा सुपा ५०५)। (महा)।
समागच्छद ( महा )। भवि. समागमिस्सइ समाइड्ढ वि [समाविद्ध] वेध किया हुआ (पि ५२३)। संकू समागच्छिअ (पि
समाणिअ वि [समाप्त] पूरा किया हुआ ५८१), "विन्नारोण समागम्म (उत्त २३,
(से ६, ६२; गाया १,८-पत्र १३३; स
३७१: कुमा ६, ६५) समा वि [समाकीर्ण] व्याप्त (प्रौप; -सुर ४, २४१) ।
समाणिअ वि [दे] म्यान किया हुआ, म्यान समागम पुं[समा + गम्] १ संयोग, समाइय। वि [समाचीण अच्छी तरह संबन्ध (गउड; महा)। २ प्राप्ति (सूम १,
में डाला हुमाः 'विलिएरण तक्खणं चेव समान आचरित (भगः उप ८१३; ७, ३०)
समारिणय मंडलग्गं' (स २४२)। विचार ८६५)।
समागमण न [समागमन] ऊपर देखो समाणिअ विभुक्त] भक्षित, खाया हुआ समापक [ समा+वृत्] नम्र होना, (महा)।
। (स ३१५) नमना, अधीन होना । भूका. समाउट्टिसु (सूत्र समागय वि [सनागन] आया हुआ (पि समाणिआ स्त्री [समानिका] छन्द-विशेष २, १, १८)।
(पिंग)
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