________________
सद्दाविय-सप्फंद
पाइअसहमहण्णवो (स्वप्न ६२)। कर्म. सद्दावीअंति (अभि | सद्धेय वि [श्रद्धेय श्रद्धास्पद (विसे ४८२) सप्प सक [सृप्] १ जाना, गमन करना। १२८)। संकृ.सहावित्ता, सदावेत्ता (पि | सधम्म वि [सधर्मन] समान धर्मवाला २ आक्रमण करना। सप्पइ (धात्वा १५५); ५८२: महा). (स ७१२)।
'घोरविसा वि हु सप्पा सप्पंति न बद्धवयणव्व' सदाविय विशब्दित, सब्दायित] पाहूत, सम्मिअ देखो स-धम्मिअ = सद्-धार्मिक ल (सुर २, २४३) । वकृ. सप्पंत, सप्पमाण
बुलाया हुआ (कप्पः महा; सुर ८, १३३) । सधम्मिणी स्त्री [सर्धामणी] पत्नी (दे २, (गउड, कप्प)। कु. सप्पणीअ (नाटसद्दिअ बि शिब्दित] १ प्रसिद्ध (प्रौपा १०६: सरण) ।
शकु १४७) । णाया १, १ टी--पत्र ३)। २ अाहत सधवा देखो स-धवा = स-धवा ।
सप्प पुंस्त्री [स] १ साँप, भुजंगम (उवा (सुपा ४१३; महा)। ३ वार्तित, जिसको सनय देखो स-नयम स-नय ।।
सुर २,१४३, जी २१, प्रासू १६, ३८% बात कही गई हो वह (कुमा ३, ३४)। सन्न वि [सन्न] १ क्लान्त (पान)। २ ११२) । श्री. प्पः (राज)। २ पुं. प्रश्लेषा सदिअ विशिाब्दिका शब्द-शास्त्र का ज्ञाता। प्रवसन्न, मग्न (सूम १, २,१,१०)। ३
नक्षत्र का अधिष्ठाता देव (सुज्ज १०, १२, (अणु २३४) । खिन्न (परह १, ३.-पत्र ५५)
ठा २, ३---पत्र ७.)। ३ एक नरकस्थान सदूल शिार्दूल] १ श्वापद पशु की सन्नाम देखो स-नाण = सज्ज्ञान । - (देवन्द्र २७) । ४ छन्द-विशेष (पिंग) एक जाति, बाथ (पानः परह १, १-पत्र सन्नाम सक [आ + ६] आदर करना, समान
सिर पुं [ शिरस.] हस्त-विशेष, वह ७; दे १, २४, अभि ५५)। २ छन्द विशेष करना। सन्नामइ, सन्नामेइ (षड् ; हे ४,
हाथ जिसकी उंगलिया और अंगूठा मिला (पिग)- विकोडिअ न [विक्रीडित]
हुमा हो और तला नीचा हो (दे८, ७२) । उन्नीस अक्षरों के पादवाला एक छन्द (पिग) सन्नाभित्र वि [आहत] संमानित (कुमा)।
सुगधा स्त्री [सुगन्धा] वनस्पति-विशेष स? पुन साटक] छन्द-विशेष (पिंग)। सन्निउत्थ बि [द] परिहित, पहना हुआ
(परण १-पत्र ३६)। सद्ध देखो स-द्ध = साध । (सुपा ३६)
सप्पम देवो स-पभ-स्व-प्रभ, सत्-प्रभ, सद्ध ना ] १ पितरों की तृप्ति के लिए सन्निउ (अप) देखो सणिों (भत्रि)
स-प्रभ । तर्पण, पिण्ड-दानादि (अच्चु १७ पुप्फ सन्निर न [दे] पत्र-शाक; भाजी (दस ५, |
सप्पमाग देखो सप्प = सृप्रू व शप् । १६७)। २ वि. श्रद्धावाला, श्रद्धालु (उप ७०)
सप्पारआव देखो स-परिआव-स८९८) ! देखो सड्ढ = श्राद्ध (उप १९६)। सन्नुस सक [छादय ] पाच्छादन करनाः
सप्परिनावपरिताप । पक्ख [प] आश्विन मास का कृष्ण
ढांकना । सन्नुमइ (हे ४, २१)। सप्पि न [ सर्पिस ] घृत, धो (पानः पव पक्ष (दे ६, १२७) ।
मन्ममिअ विछादित ढका हरा (कमा)।-४; सुपा १३; सिरि ११८४; सण) ।। सद्ध देखो सजक = साध्य (नाट-चैत ३५)। सन्ह देखो सह = लक्षण (कप्प)।
आसव. यासव वि [°आस्रव] लब्धिसद्धड भा] व्यक्ति-वाचक नाम (महा)।
विशेषधाला, जिसका वचन घी को तरह मधुर सप देखो सव= शप् । सपइ (विसे २२२७) सद्धरा स्त्री बिग्धरा] एक्कीस अक्षरों के
होता है (पएह २, १-पत्र १०:)। सपाख देखो स-पक्ख = स-पक्ष । चरणवाला एक छन्द (पिंग)। सपक्ख देखो स-पक्ख = स्व-पक्ष ।
साप्प विसपिन] १ जानेवाला, गति करनेसद्धल सिद्धल] एक प्रकार का हथियार, | १ सपरिवं अ [सपक्षम् ] अभिमुख, सामने
वाला (कप्प)। २ रोगि-विशेष, हाथ में कुन्त, बछा (पराह १,१.-पत्र १८)। देखो
लकड़ी के सहारे से चल सकनेवाला रोगि(अंत १४)। सव्वल सपक्व स्त्री [सपक्षी] एक महौषधि (ती
विशेष (पएह २, ५-पत्र १००)।सद्धस देशो सज्मस (प्राकृ २१ प्राप्र)।
सप्पिसल्लग देखो स-प्पिसल्लग/स-पिशासद्धा देखो साढा (हे २, ४१, णाया १, सपज्जा स्त्री [सपर्या] पूजा (अच्चु ७०) ।।
चक:१-पत्र ७४; प्रासू ४६; पात्र) "ल वि
सप डदिसिं अ [सप्रतिदिक् ] अत्यन्त सप्पा देखो सप्प = सर्प ।F ] श्रद्धावाला (चंड; श्रावक १७५) M संमुख, ठीक सामने (अंत १४) °ल विल वही अर्थ (संबोध ८)
सप्पुरिस देखो स-प्पु रस = सत्-पुरुष ।। | सपत्ति विसपत्रित] बाण से प्रतिव्यथित सप्फ न शिष्प बाल तृण, नया घास (हे स्त्री.लगः (गा ४.५) .
(द १, १३५)। सद्धिअ वि आन] श्रद्धावाला (पएह १, |
२, ५३; प्राप्र)। ३-पत्र ४४ वसुः प्रोघभा १६ टी)। सपह देखो सवह (धर्मवि १२६)।
सप्फ न [दे] कुमुद, कैरवः 'चंदुजयं तु सद्धिं असाम्] सहित, साथ (प्राचाः सपाग देखो स-पाग = श्व-पाक ।।
कुमुग्रं गद्दहयं केरवं सप्फ (पास) उवाः उत्त १६३)।
सपिस ल्लग देखो सप्पिसल्लग (पि २३२)। सप्फंद देखो स-प्फंद = स-स्पन्द ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org