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पाइअसहनहण्णवो
सञ्चित्त सझिल्लग
पत्नी, सत्यभामा (कुप्र २५८) । ३ इन्द्राणी सजोणिय देखो स-जोणिय = स-योनिक । सज्जीव अक [सज्जो + भू] सज्ज होना, (चउप्पन्न० ऋषभ-चरित) 'मोस विसन प्रकसज १ ग्रासक्ति करना।। तय्यार होना । सज्जाहवाइ (श्रा १४) । मृषा मिश्र-भाषा, सत्य से मिला हुआ २ सक. आलिंगन करना । सजइ (उत्त २५,
सज्जो देखो सज्ज = सद्यस (सुपा ३६७)। झूठ वचनः सच्चामोसारिण भासइ(सम ५०) २०), सजह (गाया १,८-पत्र १४८)।
सज्जोक वि [] प्रत्यग्र, नूतन, ताजा (दे सचिव देवो ल-ञ्चित्त = स-चित्त। वकृ. सज्जमाण (सूम १, ७, २७; दसचू
८, ३). सचिल्लय विदे. सत्य सच्चा, यथार्थ
२, १०, उत्त १४, ६, उवर १२)। कृ.
सझ वि [साध्व] १ साधनीय, सिद्ध करने (दे ८, १४) सन्जियव्य (पराह २, ५–पत्र १४६) ।
योग्य । २ वश में करने योग्य; 'बलियो हु सीसय पुंदे सच्चीसक] वाद्य-विशेष सज्ज अक [ सस् ] १ तय्यार होना। २
इमो सत्तू ताव य सज्झो न पुरिसगारस्स' (पउम १०२, १२३)। देखो बद्धीसका । सक. तय्यार करना, सजाना । सजेइ, सज्जेति
(सुर ८, २६ सा २४)। ३ तर्कशास्त्र प्रसिद्ध सच्चे विअ वि [] रचित, निर्मित (दे ८, |
अनुमेय पदार्थ, जैसे धूम से ज्ञातव्य वह्नि (कुमाः णाया १,८--पत्र १३२)। कर्म. सजीअंति ( कप्पू)। कवकृ. सजिजंत
(पंचा १४, ३५)। ४ . साध्यवाला, पक्ष सच्छ वि स्वच्छ] प्रति निर्मल (सुपा ३०)।
(विसे १०७७)। ५ देवगण-विशेष । ६ (कप्पू)। संकृ. सजिऊण, सज्जे (स ६४; सच्छंद वि स्वच्छन्द] १ स्वाधीन, स्व-वश महा)। कृ. सजियव्य, सज्जेयव्य (सत्त
योग-विशेष । ७ मन्त्र-विशेष (हे २, २६)। (अ ३३६ टोः सुर १४, ८५)। २ न.
४०; स ७०)। प्रयो., संकृ. सज्जादेऊण सज्म [ला १ पर्वत-विशेष (स ६७६) । स्वेच्छानुसार (णाया : ८-पत्र १५२; (महा)
२ वि. सहन-योग्य (हे २, २६; १२४) । प्रौप अभि ४६; प्रासू १७)। गामि वि सज सिर्ज] वृक्ष-विशेष (णाया १,१- सभांतिय पुं[.] ब्रह्मचारी (राज)। [गा मन] इच्छानुसार गमन करनेवाला, | पत्र २५, विसे २६८२ स १११; कुमा)। सम्झांतिया स्त्री दे] भगिनो, बहिन (राज)।स्वैरी। स्त्री.°णी (सुपा २३५) चारि,
सज पुं[षडज] स्वर-विशेष (कुमा)। 'यारि वि [चारिन्] स्वच्छन्दी, इच्छानु
समतेबासि पुं स्वाध्यायान्तेवासिन्] सज्ज वि [सज्ज तय्यार, प्रगुण (गाया १, सार विहरण करनेवाला, स्वैरी। स्त्री.°णी
विद्या-शिष्य (सुख २, १५)। (सं ३६; श्रा १६; गच्छ १, १०)
८-पत्र १४६; सुपा १२२, १६७; हेका सज्ममाण विसाध्यमान] जिसकी साधना ४६; पिंग)।
की जाती हो वह (रयण ४०)। सच्छर सक दृश् ] देखना (संक्षि ३६) ।
सजलास तुरन्त, जल्दी, शोघ्र; सज्झन सक [दे] ठीक करना, तन्दुरुस्त सच्छह विहे. सच्छाय] सदृश, समान, सज्ज । 'सजघायणं से कम्मरणजोगं पउंजामि'
करना । सज्झवेहि, सज्झवेमि (सुख २, तुल्य (दे ८, ६; गा ५; ४५; ३०८; ५३३
(स १०८ सुख ८, १३; गा ५६७ प्रः १५)। ५८०० ६८१: ७२१ सुर ३, २४६, धर्मवि कास)
सज्झस न [साध्वस] भय, डर (हे २, २६; सज्जंभव [शय्यम्भव] एक प्रसिद्ध जैन कुमा)। सच्छा विछाय] १ समान छाया
महर्षि (साधं १२)
समाइय वि स्वाध्यापिक] १ जिसमें पठन बाला. तुल्य (गउड; कुप्र २३)। २ अच्छी सजण देखो स-जम = सज्जन । -
आदि स्वाध्याय हो सके ऐसा शास्त्रोक्त देश, कान्तिवाला (कुमा)। ३ सुन्दर छायावाला।
काल प्रादि (ठा १०--पत्र ४७५) । २ न. ४ कान्ति-युक्त । ५. छाया-युक्त (हे १, २४६)
सज्जा देखो सेजा (राज)।सजा देखो सजा । सजिअ बि [सजित] सजाया हुआ, तय्यार
स्वाध्याय, शास्त्र-पठन सच्छाह विलाय जिसकी छाही सुन्दर
आदि (पब २६८% किया हुप्रा (औप; कुमाः महा)। हो वह । २ छांही वाला। ३ समान छाया
णंदि २०७ टी)
सज्झाय पुंस्वाध्याय] शोभन अध्ययन, वाला, तुल्य, सदृश (हे १, २४६) | सजिअ विसजित] बनाया हुआ (दे १,
शास्त्र का पठन, प्रावर्तन आदि (प्रौप; हे २, सत्ता स्त्री लच्छना] वनस्पति-विशेष । १३८)।
२६; कुमा; नव २६) (सूम २, ३, १६) सजिअ [दे] : नापित, नाई। २ रजक,
सज्झाराय वि[लाशाज] सह्याचल के राजा सजण देखो स-जण स्व-जन ।
धोबो। ३ वि. पुरस्कृत, आगे किया हुभा । से सम्बन्ध रखनवाला, सादिक राजा का सजिप देखो सजीव (सुर १२, २१०) ४ दीर्घ, लम्बा (दे ८, ४७)।
(पउम ५५, १७)। सजुन देखो संजुत्त (पिंग)।
सज्जिआ स्त्री [सजि] क्षार-विशेष, साजी सझिलग [६] भ्राता, भाई (उप २७५; संजोइ देखो स-जोइ = स-ज्योतिष् । खारः 'वत्थं सज्जियाखारेण अणुलिपति' । ३७७; पिंड ३२४)।सजग विसोगिन] १ मन आदि का (णाया १,५-पत्र १०६)।
सज्झिलगा स्त्री [३] भगिनी, बहिन (पिंड व्यापारवाला। २ पुंन. तेरहवाँ गुरण-स्थानक
३१६, उप २०७) देखो स-
ज स -जीव ।। (पि ४११सम २६; कम्म २, २, २०) सज्जीव ।
सझिल्लग देखो सज्झिलग (राज)।
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