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भ)। २ जिसको आज्ञा दी गई हो वह 'हरिगमे सिरगा सक्कवयरणसंदिट्ठेण' (कप्प ) । ईटा छिलका निकाला हुआ चावल यादि) (शय ६७)1
संदिद्धवि [संदग्ध] संशय-युक्त, संदेहवाला ( पाच ) ।
संदिन [ संदरा ] उनतीस दिनों का लगातार उपवास (संबोध ५८ ) 1
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संदिय वि [स्यन्दित ] क्षरित टपका हुआ (सुर २०६
मंदिर [[]]
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संदिस सक [ सं+दिश् ] १ संदेशा देना, समाचार पहुँचाना। २ श्राज्ञा देना । ३ अनुज्ञा देना, सम्मति देना । ४ दान के लिए संकल्प करना संसद (पहू महा), संदिसह (डि ) । कवकृ. संदिस्संत (पिंड २३६) । प्रयो, संकृ. संदिसाविऊण (पंचा ५, ३८)
संदिसण न [संदेसन] उपदेश, कथन 'कुलनीइनिंगप्मुहागण्यओससदिस' संबोध
संदीपण न [संदीपन] १ उत्तेजना उद्दीपन (सबोध ४८ नाट—— उत्तर ५६ ) । २ वि. उत्तेजन का कारण, उद्दीपन करनेवाला ( उत्तम ८८ ) 1
[संदीपित] उत्तेजित उद्दीपित
पाइअसहमहणको
२ नदी
संदेव पुं [दे] १ सीमा, मर्यादा मेलक, नदी संगम (देब, ७) 1 [संदेश] संदेशा, समाचार (गा
संदेस
३४२३८३३ हे ४, ४३४० सुपा ३०१३ ५१९) ।
संदिद्ध - संधिविग्गहिअ
संधान एक [ सं + धाबू] दोन संघा (उत्त २०, ४६)
संधि दुखी [संधि] १ र २ संधान, उत्तरोत्तर पदार्थ- परिज्ञान (सूत्र १, १, १, २० २१ २२ २३ २४ ) । ३ व्याकरण - प्रसिद्ध दो प्रक्षरों के संयोग से होने वाला वर्ण-विकार (पराह २ २ -- वत्र ११४) । ४ सेंध, चोरी के लिए भीत में किया जाता छेद (चार ६० महान हास्य ११० ) दो हाड़ों का संयोग-स्थानः 'थक्कानो सव्वसंधी' (सुर ४, १६५; १२, १६६: जी १२) । ६ मत, अभिप्रायः 'अहवा विचित्तसंविण हि पुरिसा इति' (२१) ७ कर्म, कर्म- संतति ( आचा सूप्र १, १, १, (२०) । ८ सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति । ६ चारित्रमोहनीय कर्म का क्षयोपशम १० अवसर, समय, प्रसंग ११ मीलन, संयोग (प्राचा) । १२ दो पदार्थों का संयोग-स्थान ( विपा १, ३- पत्र ३६६ महा) । १३ मेल के लिए कतिपय नियमों पर मित्रता-स्थापन, सुलह (कप्पू कुमा ६, ४०) । १४ ग्रंथ का प्रकरण, अध्याय परिच्छेद (भषि) "गिन [गृह] दो भीतों के बीच का प्रच्छन्न स्थान (कप्प ) । "च्छेय, गवि [क] संघ लगा कर चोरी करनेवाला ( गाया १, १८- पत्र २३६ विपा १, ३ - पत्र ३९ ) । "पाल, वाल["पाठ] दो राज्यों की सुलह का रक्षक (कप्पः श्रौप; खाया १,१पत्र १९) । संघा श्री [संचा] प्रतिज्ञा, नियम ( १२ संधि वि[दे] दुर्गन्ध दुधादे उप ३३३; सम्मत्त १७१) । संघाण न [संधान] १ दो हाड़ों का संयोग5,5) 1स्थान ( सुर १२, ६) । २ संधि, सुलह ( हम्मीर १५) मद, सुरा, दाह (पर्स । ३ मद्य, ५६)। ४ जोड़, संयोग, मिलान (श्राचा कुमा; भवि ) । ५ अचार, नोबू आदि का मसाला दिया खाद्य विशेष (पव ४) । संधारण न [संधारण ] सान्त्वना, आश्वासन (स ४१६) ।
(सू २, ६, २) ।
१५) 1
संदीण [संदीन] १ द्वोप-विशेष पक्ष या मास आदि में पानी से सराबोर होता द्वीप । २ अल्पकाल तक रहनेवाला दीपक । ३ श्रुतज्ञान । ४ क्षोभ्य, क्षोभरगोय ( श्राचा १, ६, ३, ३) संदीप व [संदीपक] उत्तेजक उद्दीपक संयया देखो संघ+या 'कामग्गिसंदीवगं' ( रंभा
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जलना,
संदेह [संदेह ] संशय, शंका ( स्वप्न ६६६ गड, महा) । -
संदोह [संदोह]] समूह जत्था (पार २, १४६ : सिरि ५६४)
करना
संघ क [सं+ धा] १ साँधना, जोड़ना । -२ अनुसंधान करना, खोज करना । ३ वाँछना, चाहना । ४ वृद्धि करना, बढ़ाना । ५ 'भग्गं व संघइ रहं सो' ( कुप्र १०२), संघ, संघए (द्याचा सूत्र १, १४, २११,११, ३४ ३५) । भवि. संधिस्सामि, संधिहिसि ( प ५३० ) । वकृ. संत ( से ५.२४)निमाण (भग)। कृ. संधि ( कु ३८१) संघ देवो देवेद्र २७० ) । संघण स्त्रीन [संधान] १ साधा, संधि, जोड़ (धर्मसं २०१७) २ संधान पंच १२ ४३) श्री. णा ( माचानि १०५ सूपनि १६७; ओघ ७२७) ।
संघणया स्त्री [संधना ] साँघना, जोड़ना (बब १) ।
संचय वि[संघक] संधानकर्ता स ४, ५) ।
। संधयाती
संधि (भवि ) 1संदुक्ख श्रक [ प्र + दीपू ] सुलगता दुखद ( प ) 1 संदु वि[संदुष्ट] अतिशय दुष्ट (संबोध ११) । संदुम [ प्र + दीप्] जलना, सुगना। संदुमइ (हे ४, १५२ कुमा) 1 संधारि वि [दे] योग्य, लायक (दे ८, १) । संदुमिअवि [ प्रदीप्त ] जला हुधा सुलगा संधारिअ वि[संधारित] रखा मा स्थापित हुआ (पास) -
( गाया १, १ - पत्र ६६ ) ।
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संधिअ वि [संहित] साँधा हुआ, जोड़ा हु ( से १, ५४; गा ५३ स २६७; तंदु ३६६ वजा ७० ) । - संधिअवि [संधित] प्रसारित (गउड) | संधिआ देखो संहिया (प्रोघ ६२ ) । संधिउं देखो संघ सं+धा संधित देखो संधिअ = संहित (भग) 1 V संधिविग्गहिअ पुं [ सान्धिविग्रहिक ] राजा की संधि और लड़ाई के कार्य में नियुक्त मन्त्री (कुमा) 1
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