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पाइअसद्दमण्णवो
वेआरणिय-वेकिल्लिअ वेआरणिय वि [दे] प्रतारण-सम्बन्धी, ठगने वेइअ देखो वेविअ = वेपित (गा ३६२ भ)
वेइअ देखो वेविअ = वेपित (गा ३६२ अ)। को को करने में समर्थ शरीर (सम १४१, भग, से उत्पन्न (ठा २, १-पत्र ४०)। वेइअ वि [वैदिक] १ वेदाश्रित, वेद-संबन्धी दं८)। २ वैक्रिय शरीर बनाने की शक्तिवाला वेआरणिय वि [वैचारणिक] विचार-संबंधी | (ठा ३, ३–पत्र १५१)। २ वेदों का (सम १०३, पव-गाथा ६)। ३ विकुर्वणा (ठा २,१-पत्र ४०)। जानकार (दसनि ४, ३५) ।
से बनाया हुमाः 'विझगिरिसमीवगयं एवं वेआरिअ वि [दे] १ प्रतारित, ठगा हुआ वेइअ वि [वेगित] वेलावाला, वेग-युक्त वेउब्वियं च मह भवणं' (सुपा १७८)। ४ (दे ७, ६५; पउम १४, ४६; सुपा १५२)। (गाया १, १-पत्र २६)।
वैक्रिय शरीरवाला (विसे ३७५)। ५ वैक्रिय २ पृ. केश, बाल (दे ७, ६५)।
वेइअ वि [व्येजित] १ कम्पित, काँपा हुआ शरीर से संबन्ध रखनेवाला (भग)। ६ विभूवेआल पुं [वेताल १ भूत-विशेष, विकृत (भग १, १ टी-पत्र १८)। २ कैंपाया षित (भग १८, ५-पत्र ७४६) लद्धिअ पिशाच, प्रेत (पएह १,३-पत्र ४६; गउड; हुश्रा (राय ७४)।
वि [°लब्धिक] वैक्रिय शरीर उत्पन्न करने महा: पिग)। २ छन्द-विशेष (पिंग)।
वेइआ स्त्री [दे] पनीहारी, पानी ढोनेवाली की शक्तिवाला (भग)। 'समुग्घाय पूं वेआल वि [दे] १ अन्धा । २ पृ. अंधकार स्त्री (दे ७, ७६)।
[समुद्भात] वैश्यि शरीर बनाने के लिए (दे ७, ६५)
वेइआ स्त्री [वेदिका] १ परिष्कृत भूमि- प्रात्म-प्रदेशों को बाहर निकालना (अंत)। वेआलग वि [विदारक ] विदारण-कर्ता
विशेष, चौतरा (भगः कुमा, महा)। २ वेउव्विया स्त्री [दे] पुनः-पुन:, फिर-फिर
अंगुलि-मुद्रा, अंगूठी (दे ७, ७६ टी)। ३ (कप्प)। (सूअनि ३६)। वेआलण न [विदारण] फाड़ना, चीरना
वर्जनीय प्रतिलेखन का एक भेद, प्रत्युपेक्षणा वेंकड पुं [वेङ्कट] दक्षिण देश में स्थित एक (सूअनि ३६)।
का एक दोष (उत्त २६, २६; सुख २६, पर्वत (अच्चु १)। °णाह पृ ["नाथ] विष्ण वेआलि पुं[वैतालिन् ] बन्दी, स्तुति-पाठक २६, प्रोघभा १६३)।
की वेंकटाद्रि पर स्थित मूर्ति (अच्चु १) । वेइज प्रक [वि + एज् ] काँपना। वकृ. वेंगी स्त्री [दे] वृतिवाली, बाड़वाली (दे ७, (उप ७२८ टी)। वेआलिअ देखो वइआलिअ (पामः हे १,
वेइज्जमाण (भग १, १ टी-पत्र १८)। ४३) ।
वेइज्जमाण देखो वेअ = वेदय । १५२ चेइय ७४६)
वेंजण देखो वंजण (प्राकृ ३१) । वेआलिय वि [वैक्रिय] विक्रिया से उत्पन्न
वेइद्ध वि [दे] १ ऊंचा किया हुआ। २ वेंट देखो विंट = वृन्त (गा ३५६; हे १,
विसंस्थुल । ३ प्राविद्ध । ४ शिथिल (दे ७, (सूम १, ५, २, १७)।
। १३६; २, ३१ कुमा; प्राकृ ४)
६५)। वेआलिय वि [वैकालिक] विकाल-सम्बन्धी,
वेंटल देखो विंटल (मोघ ४२४) I, वेइल्ल देखो विअइल्ल (हे १, १६६; २, ९८; वेंटली देखो विंटलिआः 'तो तेण तस्स अपराह्न में बना हुआ (दसनि १,६; १५) । । कुमा)।
(करिणो) पुरो वेंटलीकाऊण पक्खित्तवेआलियन [विदारक] विदारण-क्रिया वेडंठ देखो वेकुंठ (गउड)।
मुत्तरीयं' (महा)। (सूअनि ३६)। वेउट्टिया स्त्री [दे] पुनः पुनः, फिर-फिर
| वेटिआ देखो विंटिया (प्रोध २०३; प्रोधमा वेआलिय देखो वइआलीअ (सूअनि ३८) । (कप्प) ।
७६ उप १४२ टी; वव १)। वेआलिया स्त्री चितालिकी] बीणा-विशेष । वेउव्य देखो विउव्य = वि + कृ, कुर्व । संकृ. वेंड वितण्डा हाथी, हस्ती (प्राकृ ३०)। (जीव ३)।
वेउव्विऊण (सुपा ४२) ।
। देखो वेयंड वेआली स्त्री बिताली] १ विद्या-विशेष, वेउव्य वि वैक्रिया१विकृत, विकार-प्राप्त बढसुराखी [दे] कलुष मदिरा (द ७,७८)। जिसके प्रभाव से अचेतन काष्ठ भी उठ खड़ा
। (विसे २५७६ टो)। २ देखो विउव्व % वेंढि [दे] पशु (दै ७, ७४)। होता है—चेतन की तरह क्रिया करता है
वैक्रिय (कम्म ३, १६) लद्धि स्त्री (सूम २, २, २७)। २ नगरी-विशेष (गाया
वेंढिअ वि [दे] वेष्ति, लपेटा हुआ (दे ७,
र [°लब्धि] शक्ति-विशेष, वैक्रिय शरीर उत्पन्न १,१६-पत्र २१७)।
। ७६; महा)।
करने का सामर्थ्य (पउम ७०, २६)। वेइ स्त्री [वेदि] परिष्कृत भूमि-विशेष, चौतरा
वेंभल देखो विभल (पएह १,३–पत्र ४५, वेउब्धि देखो विउव्यि (पएह २,१-पत्र (कुमाः महा)।
पउम ५, १९२)। __EE; कप्प; प्रौपः प्रोघभा ५७)। वेइ वि [वोदन] १ जाननेवाला (चेइय ११६
वेकक्ख देखो वेअच्छ; 'वेकक्खउत्तरीमा' गउड)। २ अनुभव करनेवाला (पंच ५,
वेउव्विअ देखो विउव्विअ = विकृत, विकु- (कुमा)। ११६)
वितः वेउग्वियं असुइजंबालं अइचिक्कणं वेकच्छिया । देखो वेगच्छिया (मोघमा वेइअ वि [वेदित] १ अनुभूत (भग)। २ फासेण' (स ७६२, सुपा ४७)। वेकच्छी ३१८ प्रोघ ६७७)।ज्ञात, जाना हुमा (दस ४, १; पउम ६६, वेउव्विअवि [वैक्रिय, वैक्रियक, वैकुर्विका वेकिल्लिअ न [दे] रोमन्थ, चबी हुई चीज ३)।
१ शरीर-विशेष, अनेक स्वरूपों और क्रियानों को फिर से चबाना (दे ७, ८२)
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