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पाइअसहमहण्णवो
विहर-विहाण
| विहल पुं[विहल्ल] राजा श्रेणिक का एक विहा सक [वि + हा] परित्याग करना। मोघ १२४; महा भग)। संकृ. विहरित्ता, पुत्र (पडि) ।'
संकृ. विहाय (सूत्र १, १४, १) ।। विहरिअ (भग, नाट-वक्र १०२)। | विहव पुं[विभव] समृद्धि, संपत्ति, ऐश्वर्य विद्या प्रवासी विहरित्तए, विहरिउ (भगः ठा २, १- (पाम गउड, कुमाः हे ४, ६०० प्रासू ७२ १२,५)।. पत्र ५६; उव) । कृ. विहरियव्व (उप ७६)।
विहा स्त्री [विधा] प्रकार, भेद (कप्पा महा। १३१ टी)।
विवण न [विधवन] विनाश (राज)। अण)। विहर सक [ प्रति + ईक्ष ] प्रतीक्षा करना, विहवा स्त्री [विधवा] जिसका पति मर गया विहा' देखो विहग = विहायस् (धर्मस बाट जोहना । विहरइ (षड्):हो वह स्त्री, राँड़ (प्रौप; उव; गा ५३६
६१६)। विहर देखो विहार (उप ८३३ टी)। स्वप्न ५६; सुर १, ४३) । -
विहाइ वि [विधायिन् ] कर्ता, करनेवाला विहरण ने [विहरण] विहार (कुप्र २२)। विहवि चि [विभविन] संपत्ति-शाली, धनाढ्य (चेइय ४०३; उप ७६८ टी; धर्मवि १३६)। विहरिअ न [दे] सुरत, संभोग (दे ७, ७०)।
(कुमा; सुपा ४२२; गउड)।
विहाउ वि [विधात] १ कर्ता, निर्माता विहव्व देखो विहब % विभव (नाट-मृच्छ (विसे १५६७, पंचा ६, ३६)। २ पं. विहरिअ वि [विहत] जिसने विहार किया
पणपन्नि-देवों के उत्तर दिशा का इन्द्र (ठा हो वह (ोघ २१०; उवः कुप्र १६६)।
विहस अक [वि + हस्] १ विकसना, २, ३-पत्र ८५)। विहल प्रक [वि+ह बल ] व्याकुल होना ।
खिलना, प्रफुल्ल होना । २ हास्य करना, मध्यम | विहाउ सक [वि+ घटय ] १ वियुक्त वकृ. विहलंन (स ४१५)।
प्रकार का हास्य करना। विहसइ, विहसए, करना, अलग करना। २ विनाश करना। विहल देखो विहड = वि + घट् । वकृ. विहसेइ, विहसंति (प्राकृ २६; सण कुमाः ३ खोलना, उघाड़ना। विहाडेइ, विहाडेंति विहलंत (से १४, २६) ।
हे ४, ३६५)। विहसेज, विहसेजा (कुमा (राय १०४ महा; भग); 'कम्मसमुग्गं बिहाविहल वि [विह वल] व्याकुल, व्यग्र (हे २, ५, ८५) । भवि. विहसिहिइ, विहसेहिइ डेंति' (प्रौप; राय)। संकृ. 'समुग्गयं तं ५८ प्राकृ २४; पउम ८, २००० से ५, (कुमा ५, ८३) । वकृ. विसंत, विहसेंत विहाडे (धर्मवि १५)। कृ. विहाडेयव्व ५८ गा २८५; प्रासू ५; हास्य १४०, वज्जा (से २, ३६; कुमा ३, ८५, ५, ८४) । संकृ (महा)। २४० षड्ग उड)
विहसिऊण, विहसिअ, विहसेऊण (गउड विहाड वि [विघाट] विकट (राज)। विहल देखो विअल = विकल (संक्षि ८)।
८४५; ६१५; नाट-शकु ६८; कुमा ५, विहाड वि [विहाट] प्रकाश-कर्ता (सम्म २)।
८२)। हेकृ. विह सिउं, विहसेउं (कुमा विहान ना विहल वि [विफल] १ निष्फल, निरर्थक
. ५, ८२) (गउड; सुपा ३६६)। २ असत्य, भूठा मिच्छा
विहाडिअ वि [विघटित] १ वियोजित, विहसाव सक [वि + हासय ] १ हँसाना। मोहं विहलं अलिअं असचं प्रसन्भूग्रं' (पान)।
अलग किया हुआ (धर्मसं ७४२)। २ विना२ विकसित करना। संकृ. विहसाविऊण, विहल सक [विफलय ] निष्फल बनाना,
शित (उप ५६७ टी)। विहसावेऊण (प्राकृ ६१)। निरर्थक करना । विहलंति (उव)।
विहाडि वि [विघटित] उद्घाति, खोला विहसाविअ वि [विहासित] १ हँसाया विहलंखल । वि [विह वलाङ्ग] व्याकुल
हुमा (उप पृ ५४; वसु)। विहलंघल शरीरवाला (काप्र १९६; स
हुआ । २ विकसित किया हुआ (प्राकृ ६१)।
विहाडिर वि [विघटयित] अलग करनेवाला २५५; सुख १८, ३५; सुर ६, १७३; सुपा विहसिअ वि [विहसित] १ विकसित,
घियोजक (सण)। ४४७); "वियणाविहलंधला पडिया' (सुर खिला हुआ; प्रफुल्ल; विहसियदिट्ठीए विह१५, २०४)। सियमुहीए' (महा; सम्मत्त ७६)। २ न.
विहाण पुं [दे] १ विधि, विधाता, दैव, भाग्य विहलिअ वि [विह वलित] व्याकुल किया
मध्यम प्रकार का हास्य (गउड ६६६, ७५१)।
(दे ७,६०); 'माणुसमयजूवहं विहाणवाहो विहसिर वि [विहसित] खिलनेवाला,
करेमाणों' (स १३०; भवि)। २ बिहान, हुआ (कुमा ३, ४३; प्राप; महा)।विहलिअ देखो विडिय (से ७, ४६)।
प्रभात, सुबह (दे ७, ६० से ३, ३१; भवि; विकसित होनेवाला ।
हे ४, ३३०, ३६२: सिरि ५२५)। ३ पूजन विहलिअ वि [विफलित] विफल किया हुआ विहसिव्विअ वि [दे] विकसित, खिला
अर्चन; 'प्रमो चेव कूरदेवयाविहारानिमित्तं (सरण)।हुमा (दे ७, ६१)।
पयारिऊण परियणं एयाए वावाइयो हविस्सई विहल्ल मक [वि + रु, वि + स्तु] १ विहस्सइ देखो बिहस्सइ (पामा प्रौप)।
(स २९६)। आवाज करना । २ सक. विस्तार करना। विहा अक [वि + भा] शोभना, चमकना। विहाण न [विधान] १ शास्त्रोक्त रीति (उप विहल्लइ (धात्वा १४३)।| विहादि (शौ) (पि ४८७) ।
७६८० पव ३५)। २ निर्माण, रचना (पंचा
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