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८०४ पाइअसहमहण्णवो
विसंधि-विसण विसंधि पु [विसन्धि] १ एक महाग्रह. विसंवादण देखो विसंवायण (उत्त २६, | महा: सुपा १५८, ०५७)। २त्यक्तः 'जीवेण ज्योतिष्क देव-विशेष (ठा २, ३-पत्र ७८)।
जारिण उ विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि २ वि. बन्धन-रहित (राज)। "कप्प, विसंवादणा देखो विसंवायणा (ठा ४, १
(उव)। कप्पेल्लय पुं[कल्प] एक महाग्रह (सुज पत्र १६६)।
विसट्ट प्रक [दल] फटना, टूटना, टुकड़े२०)। विसंवाय वि [दे] मलिन, मैला (दे ७,
टुकड़े होना । विसट्टइ (हे ४, १७६; षड् ) विसंनिविट न [विसंनिविष्ट] विविध रथ्या,
विसर्दृति (गउड); 'तस्स विसट्टउ हिप्रयं'
७२)।'अनेक महल्ला (प्रौप)। विसंवाय पुं [विसंवाद] १ सबूत का प्रभाव,
(कुमा)। वकृ. विसर्दृत (स ५७६) । विसंभ देखो वीसंभ (महा)।
विरुद्ध सबूत, विपरीत प्रमाण; 'पएणोएण
विसट्ट प्रक [वि + कस ] विकसना, विसंभणया देखो विस्संभणया (प्राचा १, विसंवानो' (संबोध १७ सुपा ६०८)। २
खिलना, फूलना । विसट्टइ (प्राकृ ७६), ८, ६, ४)।
व्याघात (गा ६१६)। ३ विचलता (से ३, विसट्टति (वजा १३८)। वकृ. विसटुंत, ३०)।
विसट्टमाण (वजा ६० ठा ४, ४-पत्र विसंभोइय वि [विसंभोगिक] जिसके साथ
विसंवायग वि [विसंवादक] १ सबूत रहित, २६४)। भोजन आदि का व्यवहार न किया जाय वह,
प्रमाण-रहित । २ ठगनेवाला, वंचक (सुपा | | विसट्ट सक [वि + कासय ] विकसित मंडली-बाह्य, समाज-बाह्य (ठा ५, १-पत्र ६०८)।
करना, फुलाना, प्रफुल्ल करना । विसट्टइ विसंवायण न [विसंवादन] नीचे देखो (उत्त
(धात्वा १५३)। विसंभोग पुं[विसंभोग] साथ बैठकर भोजन प्रादि का अव्यवहार (ठा ३, ३)।
२६, ४८; सुख २६, ४८)।
विसट्ट अक [ पत् ] गिरना, स्खलित होना। विसंभोगिय देखो विसंभोइय (ठा ३, ३विसंवायणा स्त्री [विसंवादना] १ असत्य
विसति (सुख २, २६)। पत्र १३६)। कथन । २ वंचना, ठगाई (ठा ४,१-पत्र
विसट्ट वि [दे] १ विघटित, विश्लिष्ट (पान;
गउड १००६)। २ विकसित, प्रफुल्ल, खिला विसंवइय वि [विसंवदित] १ सबूत रहित,
२६६)। विसंसरिय वि [विसंसृत] उठ गया हुआ।
हुप्रा (प्राकृ ७७; गउड ६६७; ८०५; कुमाः अप्रमाणित (पाना स ५७६)। २ विघटित,
सुर ३, ४२; भत्त ३०) । ३ दलित, विशीर्ण, 'पहायसमए य विसंसरिएK थाणएसुं' (स वियुक्त (से ११, ३६)1 ५३७)।
खण्डित, जिराका टुकड़ा-टुकड़ा हुआ हो वह विसंवय प्रक [विसं + बद्] १ मप्रमाणित
(से ६, ३०; गउड ५५६; भवि) । ४ उत्थित होना, असत्य ठहरना, सबूत से सिद्ध न होना। विसंहणा देखो विस्संभणया (प्राचा)।
(गउड ७)। २ विघटित होना, अलग होना। ३ विपरीत विसकल वि [विशकल] नीचे देखो (राज)।होना, अन्यथा होना। विसंवयइ, विसंवयंति विसकलिय वि [विशकलित] टुकड़ा-टुकड़ा
विसट्टण न [विकसन] विकास, प्रफुल्लता;
'देव ! पणयजरणकल्लारणकंदुट्टविसट्टणुग्गंतमि(हे ४, १२६; उव); 'सो तारिसो धम्मो किया हुआ, खण्डित (भावम)।
हराणुगारिणो' (धर्मा ५)। नियमेण फले विसंवयई' (स ६४८ ७१६), विसग्ग विसग १निसर्ग, त्याग; 'सिमि'चरिएण कहं विसंवयसि' (मन २६),
विसड ) देखो विसम (षड्: है १, २४१;
णेवि सुरयसंगकिरियासंजणियवंजणविसग्गो' विसंवएजा (महानि ४)। वकृ. विसंवयंत
विसढ । कुमाः दे ७, ६२); 'ढंढेरण तहा (विसे २२८)। २ विसर्जन, छुटकारा, छोड़
| विसढा, विसढा जह सफलिया जाया' (उव)।. (उवः उप ७६८ टी, धर्मसं ८८३)।
देना (पि २१५)। ३ अक्षर-विशेष, विसर्ज
विसढ वि [दे] १ नीराग, राग-रहित । २ विसंवयण न [विसंवदन] विसंवाद, सबूत नीय वणं (पिंग)।
नीरोग, रोग-रहित (दे ७, ६२)। ३ विषोढ, का प्रभाव (उप पृ २६८)। विसज्ज सक [वि + सृज , सर्जय ] १
सहन किया हुआ (उव)। ४ विशीर्ण, टुकड़ेविसकाइ विविवादिन् विघटित होन- बिदा करना, भेजना । २ त्यागना । विसज्जेह
टुकड़े किया हुआ (से ६, ६६)। ५ प्राकुल, बाला, विच्छिन्न होनेवाला (कुमा ६, ८६)। (महा)। संकृ. विसज्जिऊण, विसजिअ २ अप्रमाणित होनेवाला, सबूत से सिद्ध नहीं
| व्याकुल (से ११, ८६)। (महा; अभि ४६)। हेकृ. विसज्जिदूं (शौ)
विसढ वि [विशठ] १ अत्यंत दंभी, अतिशय होनेवाला, असत्य ठहरनेवाला (कुप्र २६४ (अभि ६०)। कृ. विसज्जिदव्य (शौ)
मायावी; 'देवेहि पाडिहेरं किं व कयं एत्थ सम्मत्त १२३)। (मभि ५०)।
विसढेहि (पउम १०२, ५२)। २ पुं. एक विसंवाइअ वि [विसंवादित विसंवाद-युक्त विसजणा स्त्री [विसर्जना ] बिदाई (क्व |
श्रेष्ठि-पुत्र (सुपा ५५०)। (दे १, ११४० से ३, ३०)। विसंवाद देखो विसंवाय = विसंवाद (धमंसं विसजिअ वि [विसृष्ट, विसजित] १ बिदा विसण देखो वसण = वृषण (दे ६, ६२)।
| किया हमा, भेजा हमा (मौपः अभि ११६; विसण न [वेशन] प्रवेश (राज)।
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