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७८८ पाइअसहमहण्णवो
विद्धसण-विन्दु विद्धंसण न [विध्वंसन] विनाश (णाया १, विधूय वि [विधूत] क्षुण्ण, सम्यक् स्पृष्ट ४६, ४६; मोह ८२, सुपा १९२, २१६) १-पत्र ४८ पएह १, ३--पत्र ५५; सूप 'विधूयकप्पे (पाचा १,३, ३, ३, १, ६, ३२१) ।। १, २, २, १० चेय ६६४; उप पृ १८७) ३, १) । देखो विहूअ।
विनवण न [विज्ञपन] निवेदन, विज्ञापन विद्धंसणया स्त्री [विध्वंसना विनाश (भग) विनट देखो विणड । विनडई (भवि), 'पद (सुपा २६७) विद्धंसित वि [विध्वंसित] विनाशित (चंड
हिसन पसिन विरमसु दुल्लहपेम्मेण किं नु विनवणा स्त्री [विज्ञापना] १ प्रार्थना, विनती
विनडेसि (रुक्मि५८)। कवकृ. विनडिजत, (सूप १, ३, ४,१०)। २ महिला, नारी विद्धंसिय । वि [विध्वस्त] विनष्ट (पउम |
विनडिजमाग (मुपा ६५५: १३४) सून १, २, ३, २)। देखो विग्णवणा। विद्धत्थ ८, २३७, १९, ३० पव
विनडण न [विनटन] १ व्याकुल करना। विनविय वि [विज्ञापित निवेदित (महा)। १५५)।
२ विडम्बना (सुपा २०८)
विना देखो विण्णा = वि + ज्ञा। कृ. विन्नेय विद्धि स्त्री [वृद्धि] १ बढ़ाव, बढ़ती (प
विनडि वि [विनटित] १ व्याकुल बना (भगः उप ३३६ टी) ७२८ टी; 'सुर ४, ११५)। २ समृद्धि हुमा। २ विडम्बित: 'तराहाछहाविनडियो
विना देखो बिन्ना । यड न [तट] एक (ठा १०-पत्र ५२५, विसे ३४०८)। ३ फलजलरहियम्मि सेलम्मि' (सम्मत्त १५६
नगर का नाम (उप पू ११२) । अभ्युदय । ४ संपत्ति । ५ अहिंसा (पएह २,
सुपा २६०)
विनमि पुं [विनमि] भगवान् ऋषभदेव का १-पत्र ६६)। ६ कलान्तर, सूद (विपा
विन्नाउ वि [विज्ञान] जाननेवाला (प्राचा)। १,१-पत्र ११) । ७ व्याकरण-प्रसिद्ध स्वर एक पौत्र (धरण १४) -
विन्नाण न [विज्ञान] १ सद्बोध, ज्ञान (भगः का विकार (विसे ३४८२)। ८ पोषधि-विनास देखो विणास = वि + नाशय । विना
आचा)। २ कला, शिल्प; 'तं नत्थि किंपि विशेष (राज) सए (महा) -
विन्नाणं जेण धरिजइ काया' (वै७), 'कुसुम
विनाएं (कुमा; प्रासू ४३, ११२)। ३ विनिज्मा सक [विनि + ध्य] देखना । विधूण देखो विद्ध = व्यध् । विनिज्झाए (दस ५, १, १५)।
मेधा, मति, बुद्धि; 'मेहा मई मणीसा विन्नाणं विधम्म देखो विहम्म (राज) विनिबद्ध वि [विनिबद्ध] संबद्ध, बँधा हुमा
धी चिई बुद्धी (पान) विधम्मिय वि [विधर्मित] तिरस्कृत (विसे
(महा)।
विनाणिय , देखो विण्णाय (उप १५० टी; २३४६)
विनिमय [विनिमय व्यत्यय, 'इन सव्व- विनाय सुर २, १३१, पि १०६ विधवा देखो विहवा (निचू ८)
भासविनिमयपरिहिं' (कुमा) ।
पात्र) विधा प्रवृथा मुधा, निरर्थक, व्यर्थ (धर्मसं | विनियट्ट देखो विणिवट्ट। वकृ. विनियट- विनाविय देखो विनविय (सुपा १४) ४११)। माण (प्राचा १, ५, ४, ३)।
विन्नास पुं [विन्यास] १ रचना, विच्छित्तिः विधाण देखो विहाण = विधान (बृह १) | विनियट्टण न [विनिवर्तन] निवृत्ति, विराम | "विनासो विच्छित्ती' (पान), 'वयणविनासो' विधाय देखो विहाय = विधातु (राज)। (प्राचा).
(स ३०१, सुपा १७, २६६; महा)। २ विधार सक [वि+ धारय ] निवारणा
विनिरय वि [विनिरत लीन, मासक्त (कुप्र करना । संकृ. विधारेउं (पिंड १०२)
विन्नासण न [विन्यासन] संस्थापन (स विनिहन्न सक [विनि+ हन] मार डालना, | विधि (शौ) देखो विहि (हे ४, २८२;
विनाश करना। विनिहन्निजा (उत्त २, १७) विनासिअ वि[विन्यासित] संस्थापित (स ३०२)।
विनिहाय देखो विणिघाय (विपा १, २विधुर वि [विधुर] १ व्याकुल, विह्वल;
५६०)। पत्र ३१)। 'नहि विधुरसहावा हुंति दुत्येवि धीरा' (कुप्र
विन्नासिअ (अप) देखो विणासिअ (हे ४, विनीय देखो विणीअ (कस)। ५४)। २ विषम, असमान (धर्मसं १२२३;
४१८)। विन्नत्त देखो विण्णत्त (काल)। १२२४)। देखो विहुर। विन्नत्ति देखो विण्णत्ति (दं ४७; कुमा)
| विन्नु देखो विष्णु (माचा); 'एगा विन्नू' विधुव (शौ) देखो विहुण = वि +धू। विधुवेदि विन्नप्प देखो विन्नव ।
(ठा १-पत्र १६)। (पि ५०३) विन्नव देखो विण्णव । विनवइ, विनवेइ विनय देखो विन्ना = वि + ज्ञा।
विनेय देखो विन्ना = वि + ज्ञा। विधूण देखो विहुण = वि +धू। संकृ. विधू-|
(पउम ३६, ११४; महा), विनवेजा (कप्प)। विन्ह [विष्णु] एक जैन मुनि, जो पार्यणित्ता (सूत्र २, ४, १०)
वकृ. विनवेमाण (कप्प)। संकृ. विन्नविडं, | जेहिल के शिष्य थे (कप्प)। देखो विण्हु ।। विधूम पुं[विधूम] अग्नि, वहि (सूम १, | विन्नवित्ता (सुपा ३२३; पि ५८२)। कृ. पअ न [पद] आकाश (समु १५०)। ५, २, ८ वसु)
विन्नप्प, विनवणीय, विनवियव्व (पउम | "पदी स्त्री ["पदी] गंगा नदी (समु १५०)।
मागापमपानरतमानातक (ध स्थापना भविv
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