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पाइअसहमहण्णवो
विणिव्यवण-विण्हावणक विणिव्ववण न [विनिर्वपन] शान्ति, दाहो- २ विनय-युक्त, नम्र, शिष्ट (ठा ४ ४-पत्र | विण्णय देखो विणइय (ठा १०-पत्र पशम (गउड)।
२८५, सुपा ११६; उव)। ३ शिक्षित; भद्दो ५१६) विणिस्सरिय वि [विनिःसृत] बाहर निकला | विणीप्रविणमो' (उव ६)।
विण्णय देखो विण्ण (विपा १, २–पत्र हुमा (सण)
|विणीआ स्त्री [विनीता] अयोध्या नगरी (सम ३६; १, ८-पत्र ८४) विणिस्सह वि [विनिस्सह] श्रान्त, थका
। १५१ कप्प; पउम ३२, ५० ती १) विण्णव सक [वि+ज्ञपय ] १ बिनती हुमा 'कइयावि धणुपरिस्समविणस्सहो दीही
विणील वि[विनील] विशेष हरा रंग का करना, प्रार्थना करना। २ मालूम करना,
(गउड) यासु मज्जेई' (सुपा ५६)
विदित करना। ३ कहना । विएणवइ, |विणु (अप) देखो विणा (हे ४, ४२६ षड् ; विएणवेमि, विएणवेमो (पि ५५३; ५५१)। विणिह देखो विणिहण ।
हम्मीर २८; कुलक १२; भविः कम्म २,६ भवि. विएणविसं (रुक्मि ४१)। वकृ. विणिहट्टु देखो विणिहा। २६, २७, ३, ५; कुमा।
विण्णवंत (काल)। संकृ. विण्णविअ विणिहण सक [विनि+हन मार डालना। विणेअ वि [विनेय शिक्षणीय, शिष्य, (नाट–मृच्छ २६४)। हेकृ. विण्णविदूं विणिहणेजा, विणि हंति (सूम १, ११, ३७ अन्तेवासी, चेला (साधं ७०; उप १०३१ (शौ) (अभि ५३)। कृ. विण्णइदव्व (शौ) १, ७, १६)। कम. विणिहम्मति (उत्तटी )
(पि ५५१) विणेमाण देखो विणी= वि + नी। विण्णवणा स्त्री [पिज्ञापना] विज्ञापन, निवेविणिहय वि [विनिहत] जो मार डाला गया | विणोअ सक[ वि + नोदय.1 १ खरिडत | दन (उवा)। देखो विन्नवणा । हो, व्यापादित (महा) TV
करना। २ दूर करना, हटाना। ३ खेल विण्णा सक [वि + ज्ञा] जानना। संकृ. विणिहा सक [विनि + धा] १ व्यवस्था करना। ४ कुतूहल करना । विणोएइ, | विण्णाय (दस ८, ५६)। कृ. विण्णेय करना। २ स्थापन करना। संकृ. विणिहट्ठ, विणोयंति (गउड), विणोदेमि (शौ) (स्वप्न | (काल)। विणिहाय, विणिहित्तु (चेइय २६८ सूम | ५१)। भवि. विणोदइस्सामो (शौ) (पि विण्णाउ देखो विन्नाउ (राज)। १, ७, २१, कप्प)
५२८)। वकृ. विणोदअंत (शौ) (नाट-विण्णाण देखो विनाण ( उवा महा षड् ) विणिहाय देखो विणिघाय (णाया १,१४।। उत्तर ६५)। कवकृ. विणोदीअमाण (शौ)
विण्णाण न [विज्ञान] प्रवाय-ज्ञान, निश्चपत्र १८६) (नाट--मालवि ४५)
यात्मक ज्ञान (णंदि १७६)।विणिहिअवि [विनिहित स्थापित (गा | विणोअ [विनोद] १ खेल, क्रीड़ा। २
विण्णाणि वि [विज्ञानिन् निपुण, विचक्षण विणिहित्त । ३६१, सुपा ६२)।
कौतुक, कुतूहल (गउडा सिरि ५६ सुर ४, (कुमा) विणिहित्तु देखो विणिहा ।
२१६७ हे १, १४६)
विण्णाय वि [विज्ञात] १ जाना हुआ) विणी अक [विनिर + इ] बाहर निकलना। विणोइअ वि [विनोदित] विनोद-युक्त किया विदित (पान, गउड १२०)। २ न. विज्ञान विरिणति, विणेति (गा ९५४: पि ४६३) । | हुआ (सुर ११, २३८ सण)। वकृ. विणित (गउड १३८)।
विणोदअंत देखो विणोअ = वि + नोदय । विण्णाव देखो विण्णव । विएणावेमि, विएणाविणी सक [वि+नी] १ दूर करना, हटाना। विणोयक, वि [विनोदक] कुतूहल-जनक
वेहि (मा ३८, ३६) २ विनय-ग्रहण कराना। विणिति (णाया विणोयग (रंभा)।
विण्णास वि [वि+ न्यासय ] स्थापना १, १-पत्र २६; ३०), विरिणजामि,
करना, रखना। वकृ. विण्णासंत (पठम विणोयण न [विनोदन] १ अपनयद, दूर विरणइज, विणएज, विणेउ (णाया १,१
४३, २६) करता; 'परिस्समविणोयणत्यं' (उप १०३१ पत्र २६; सूत्र १, १३, २१; वि ४६०;
टी; कुप्र १४७) । २ कुतूहल, कौतुक (गा
विण्णास देखो विन्नास (मा ५१) णाया १, १-पत्र ३२) । भूका. विणइंसु
४८७) (सूम १, १२, ३)। भवि. विणेहिइ (पि
विण्णासणा स्त्री [विन्यासना] स्थापना (उप ५२१)। वकृ. विणेमाण (गाया १,१
३५४) V विण्ण देखो विष्णु (संक्षि १६)।। विण्णइदव्य देखो विण्णव ।।
विण्णु पत्र ३३)। कवकृ. विणिजमाण (णाया १,
वि [विज्ञ] पण्डित, जानकार, १-पत्र २६)। हेकृ. विणएत्तु (माचा १, विण्णत्त वि [विज्ञप्त] निवेदित (सुपा २२)।
विण्णुअ विद्वान् (भगः प्राकृ १८) ५, ६, ४; पि ५७७)। विण्णत्ति स्त्री [विज्ञप्ति] १ निवेदन, प्रार्थना |
विण्णेय देखो विण्णा। विणीअ वि [विनीत] १ अपनीत, दूर किया (कुमा)। २ ज्ञान (सूत्र १, १२, १७)। |विण्हावणक न [विस्नापनक] मन्त्र प्रादि हुमा, हटाया हुमा (गाया १,१-पत्र ३३); विण्णत्ति श्री [विज्ञप्ति] विज्ञान, विनिर्णय द्वारा संस्कृत जल से कराया जाता स्नान 'सव्वदन्वेसु विरणीयतरहे' (उत्त २६, १३)। (णंदि १३४)।
(पएह १, २-पत्र ३०)
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