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विडंबंत-विणमि पाइअसहमहण्णवो
७८१ विडंबंत (पउम ८, ३२) । कवकृ.विडंविजंत विडिमा स्त्री [दे] शाखा (पण्ह २, ४; तंदु विढत्ति स्त्री [अर्जिति ] अर्जन, उपार्जन (सुपा ७०) २१ राज)
(श्रा १२) विडंब सक [वि + डम्बय ] विवृत करना, | बिडुच्छअ वि [दे] निषिद्ध प्रतिषिद्ध विढप्प अक [व्युत् + पद् व्युत्पन्न होना। फैलाना । विडंबेइ (भग ३,२-पत्र १७३) (षड्)
विढप्पंति (प्राकृ ६४) । विडंब पुन [विडम्ब] १ तिरस्कार, अपमान
विडविल्ल वि [दे] भीषण, भयंकर (नाट- विढप्प नीचे देखो। (भवि)। २ माया जाल, प्रपंच; 'परिणच्वं मालती १३७) ।
विढव सक[अर्ज.1 उपार्जन करना, पैदा च कामाण सेवाविडंब' (श्रु 85 कप्पू)
विडूर पु[विदूर] १ पर्वत-विशेष। २ देश- करना । बिढवइ (हे ४, १०८ महाः भवि)। विडंबग वि [विडम्बक विडंबना-जनक;
विशेष, जहाँ वैदूर्य रत्न पैदा होता है (कप्पू)। कम. विढविज्जइ, विढप्पइ (हे ४, २५१) ‘जइवेसविडंबगा नवर' (संबोध १४; उव) | विडोमिअ ' [दे] गण्डक मृग, गेंडा (दे, कुमाः भवि) ।।
विढवण न [अर्जन उपार्जन (सुर १, विड बण न [विडम्बन नीचे देखो (भवि) विड्ड वि [दे] १ दीर्घ, लम्बा (दे ७, ३३)। २२१)। विडंबणा स्त्री [विडम्बना] १ तिरस्कार, २ प्रपंच, विस्तार (दे १, ४)
विढविध वि [अर्जित] पैदा किया हुआ अपमान (दे)। २ दुःख, कष्ट (धरण ४२)।
विड्ड वि [ब्रीड, वीडित] लजित, शरमिन्दा; (कुमाः सुपा २८० महा)। ३ मनुकरण, नकल । ४ उपहास । ५ कपट'लजिया विलिया विड्डा' (निर १, १; पि
विढिअ वि [वेष्टित] लपेटा हुआ (सुपा वेष (कप्पू) २४०)
३८८) विडंबिय वि [विडम्बित विडम्बना-प्राप्त विड्डर देखो विड्डिरः 'अकंडविड्डरमेयं कि देव विणइ वि [विनयिन् ] दूर करनेवाला; (कप्पा गउड, ३०२) पारद्धं' उप ७६८ टी)
'मारंभविणईणं' (प्राचा)। विडज्झमाण वि [विदह्यमान] जो जलाया विड्डा स्त्री [ब्रीडा] लज्जा, शरम (दे ७,
विणइत्त वि [विनयवत् ] विनयवाला, जाता हो वह, जलता हुआ (पाचा १, ६, ६१; पि २४०) ।
विनय को ही सर्व प्रधान माननेवाला (सूपनि विड्डार न [विद्वार] देखो विड्डर (राज) विडड्ढ देखो विदड्ढ (गा ६७१) ।
विणइत्तु वि [विनेत] विनीत बनानेवाला, विड्डिर न [दे] १ प्राभोग (दे ७. १०)।
विनय की शिक्षा देनेवाला (उत्त २६, ४)। विडप्प पुं[दे] राहु (दे ७, ६५; पापा | २ पाटोप, आडम्बर (पाप)। ३ वि. रौद्र विडय ) गउड वज्जा ६८ दे ७, ६५),
विणइत्तु देखो विणी = वि + नी।
भयंकर (दे ७,६०) विडव ' [विटप] १ पल्लव (सुर ३, ४५)। विड्डिरिल्ला स्त्री [दे] रात्रि, निशा (दे ७,
विणइय वि [विनयित] शिक्षित किया हुमा, २ शाखा (भवि ११०)। ३ पल्लव-विस्तार । ६७)
सिखाया हुमा (राज) । देखो विण्गय । ४ स्तम्ब गुच्छा (प्राप्र)। विडडुम देखो विद्दुम (पाप)।
विणइल्ल देखो विणइत्त (कुमा) विडवि पुं [विटपिन्] वृक्ष, पेड़, दरख्त विड्डरी स्त्री [दे] पाटोप, आडम्बर; कि विणएत्तु देखो विणी = वि + नी ।। (पामा सुपा ८८; गउड सण) लिंगविड्डुरोधारणेणं' (उव)।
विट्ठ वि [विनष्ट] विनाश-प्राप्त (उवा विडविड ? सक [रचय ] बनाना, निर्माण | विड्डुरिल्ल वि[ वैडूर्यवत् ] वैदूर्य रत्नवाला प्रासू ३१नाट-मृच्छ १५२) विडविड्ड करना । विडविडइ, विडविडुइ (सुपा ५९)।
विणड सक [वि + नटय , वि +गुप्] १ (हे ४, ६४ षड्)। भूका. विडविड्डीप विड्डेर न [दे. विड्डर] नक्षत्र-विशेष, पूर्व व्याकुल करना। २ विडम्बना करना । (कुमा)।
द्वारवाले नक्षत्रों में पूर्व दिशा से जाने के विण्डेइ (गउड ६८), विण्डति (उव), विडिअ वि [वीडित लज्जित (से ११, बदले पश्चिम दिशा से जाने पर पड़ता नक्षत्र विण्डउ (हे ४, ३८५; पि १००) ५०; पि ८१)
(विसे ३४०६)। देखो विड्डार । विडिअ देखो विनडिअ (गा ६३० टी) । विडिंचिअवि [दे] विकराल, भीषण, विढज (शौ) सक [वि + दह ] जलाना। विणण न [वान] बुनना (बृह १) विडिच्चिर ) भयंकर (दे ७, ६९) संकृ. विढजिअ (पि २१२) । विणभ सक [खेदय् ] खिन्न करना । विडिम पु[दे] १ बाल-मृग (दे ७, ८९)। विढणा स्त्री [दे] पाष्णि, फीली का नीचला | विणभइ (धात्वा १५३) २ गएडक, गेंडा (दे ७, ८६; गउड)। ३ भाग (द ७, ६२)।
विणम सक [विनम् ] विशेष रूप से वृक्ष, पेड़ा 'दुमा य पायवा रुक्खा भागमा विढत्त वि [आजत] उपार्जित, पैदा किया | नमना । वकृ. विणमंत (नाट-मालवि विडिमा तरू' (दसनि १, ३५) । ४ शाखा हुआ (हे ४, २५८ गउड था १० प्रासू ३४)। (पएह २, ४-पत्र १३० औषः तंदु २१) ७४, भवि)।
| विणमि देखो विनमि (राज)
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