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७६२ पाइअसहमहण्णवो
वावड-वास वावड पुं [दे] कुटुम्बी, किसान (दे ७, ५४) वावाअ सक [व्या + पादय ] मार डालना, वावित्ति स्त्री [व्यावृत्ति] व्यावर्तन, निवृत्ति वावड वि [व्यापृत] १ व्याकुल (दे ७, विनाश करना। वावाएइ (स ३१, महा)। (धर्मसं १०५)।
५४ टी)। २ किसी कार्य में लगा हुआ कर्म. वावाइजइ, वावाईयइ (स ६७३), वाविद्ध देखो वाइद्ध = व्यादिग्ध, व्याविद्ध (हे १, २०६ प्राप्र; कस; सुर १, २६) भवि. वावाइज्जिस्सइ (पि ५४६)। संकृ. (ठा ५, २-पत्र ३१३) । वावड वि [व्यावृत्त] लौटाया हुआ, वापस
बावाइऊण (स ७५५)। कृ. बावाइयञ्च वाविर देखो वावर । वाविरह (षड्) किया हुआ (उप ५३४) ।
वावी स्त्री वापी] चतुष्कोरण जलाशय-विशेष वावडय स्त्रीन [दे] विपरीत मैथुन (दे ७, वावाइजवि [व्यापादित] मार डाला गया, |
(प्रौप; गउड; प्रामा) ५८)। स्त्री. या (पास)। विनाशित (सुपा २४१), 'प्रवावावि(?इ)ो
वावूड) (शौ) देखो वावड-व्यापूत (नाटवावण न [व्यापन] व्याप्त करना (विसे
चेव विउत्तो खु एसो' (स ४११)।
वावुद मृच्छ २०१, पि २१८; दारु ६) ८९) ।
वावायग वि व्यापादक] हिंसक, विनाश- वावोणय न [दे] विकीणं, विखरा हुमा वावणग वि वामनक] ठिंगणो, ठिंगना, कर्ता (स २६७)
(दे ७, ५६) बौना, छोटे कद का (चउप्पन पत्र १६१)Mवावायण न [व्यापादन] हिसा, मार डालना, वाश (मा) स्त्री [वासा नाटक की भाषा वावणी स्त्री [दा छिद्र, विवर (दे ७,५५) विनाश (स ३३, १०२१०३, ६७५; सुर में बाला (मच्छ २७ वावण्ण देखो वावन्न (णाया १, १२)
१२, २१६)
| वास देखो वरिस = वृष् । वासंति (भग)। वावत्ति स्त्री [व्यापत्ति] विनाश, मरण वावायय देखो वाचायग (स ७५०)।
भूका, वासिंसु (कप्प)। कृ. वासिड (ठा ३, (णाया १, ६-पत्र १६६; उप ५०६ स वावार सक [व्या + पारय ] काम में ३-पत्र १४१; पि ६२, ५७७) ।। ३६५ ४३२, धर्मस ६३४ ९७६)
लगाना। वकृ. वावारेंत (गउड २४४)। वास अक [वा ]१ तियंचों का--पशु वावत्ति स्त्री [व्यापृति] व्यापार (उप ५०६) कृ. वावारियव्व (सुपा १९२)
पक्षियों का बोलना। २ अाह्वान करना; वावत्ति स्त्री [व्यावृत्ति] निवृत्ति (ठा ३,
वावार पुं व्यापार व्यवसाय (ठा ३, १ 'खीरदुमम्मि वासइ वामत्थो वायसो चलिय४-पत्र १७४)
टी-पत्र ११४, प्रासू ६१, १२१; नाट- पक्खों (पउम ५५, ३१), वासइ, वासए वावन्न वि [व्यापन] विनाश-प्राप्त (ठा ५, विक्र १७)।
(भवि; कुप्र २२३)। वकृ. वासंत (कुप्र २-पत्र ३१३, स २४१; सम्मत्त २८
वावारण न [व्यापारण] कार्य में लगाना २२३, ३८७)। सं ६०)।
(विसे ३०७१, उप पृ ७१). | वास सक [वासय् ] १ संस्कार डालना। वावय पुं [दे] आयुक्त, गाँव का मुखिया (दे | वावार वि व्यापारिन् । व्यापारवाला (से
२ सुगन्धित करना। ३ वास करवाना। १४, ६६; हम्मीर १३)
वासइ (भवि)। वकृ. वासंत, वासयंत वावर अक [व्या +] १ काम में लगना। वावारिद (शौ) वि [व्यापारित] कार्य में (औप; कप्प )। कृ. वासणिज्ज ( विसे २ सक. काम में लगाना। वावरेइ (हे ४, | लगाया हुआ (नाट-शकु १२०)।
१६७७ धर्मसं ३२६) ८१), वावरइ (भवि); 'सयं गिह परिच्चज वावि अ [वापि] १ अथवा, या (पव ६७)। वास देखो वरिस = वर्ष (सम २, कप्प, जी परिगिहम्मि वावरे' (उत्त १७, १८, सुख । २स्त्री. देखो वावी (पराह १.१-पत्रM ३४; गउड, कुमाः भग ३, ६सम १२, १७, १८) । वकृ. वावरंत (कुमा ६,५१)। वावि वि व्यापिन्] व्यापक (विसे २१५,
हे १, ४३, २,१०५ षड् ४६; सुपा ६७) प्रयो., हेकृ. वावराव (स ७६२) श्रा २८४; धर्मस ५२५)।
त्ताण न [त्राण] छत्र, छाता (धर्म ३; वावरण न [व्यापरण] कार्य में लगाना
योघ ३०)J धर, हर पुं[धर] पर्वतवाविअ वि [दे] विस्तारित (दे ७, ५७) ।।
विशेष (उवा ७४, २५३; ठा २, ३, सम (भवि)।
वाविअ वि [वापित] १ प्रापित, प्राप्त वावल्ल देखो वावड = व्यापृत (उप पृ८७)
१२, इक) करवाया हुआ (से ६, ६२)। २ बोया हुप्राः वास पुं [वास] १ निवास, रहना (माचार वावल्ल पुंन [दे. वावल्ल] शस्त्र-विशेष (सण)
गुजराती में 'वावेलु"; 'जं मासी पुवभवे । उप ४८६, कुमा; प्रासू ३८)। २ सुगन्ध वावहारिअ वि [व्यावहारिक व्यवहार से धम्मबीयं वावियं तए जीव' (आत्महि ८ दे ( कुमाः भवि )। ३ सुगन्धी द्रव्य-विशेष सम्बन्ध रखनेवाला (इका विसे ६५६; जीवस ७, ८६)
(गउड)। ४ सुगन्धी चूर्ण-विशेषः 'पणवन्नवाविअ वि [व्याप्त] भरा हुआ (कुमा ६, वासवासं विहियं तोसाउ तियसेहि' (सुपा वावाअ (?) अक [अव + काश ] अवकाश
१७; दंस २)। ५ द्वीन्द्रिय जन्तु की एक पाना, जगह प्राप्त करना। वावाअइ (धात्वा वावित्त वि [व्यावृत्त] व्यावृत्तिवाला, निवृत्त जाति (पएण १-पत्र ४४) घर न १५२) ! (धर्मसं ३२१)
[गृह] शयन-गृह (णाया १, १६-पत्र
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