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पाइअसहमहण्णवो
लोगिग-लोलुअ 'वाल देखो पाल (कुप्र १३५), वीर । २०; संबोध ४४) । ३ वि. स्मृत । ४ शयित [हार] रूंगटों से लिया जाता पाहार, पुं[वीर] भगवान महावीर (उव), सिंग (दे ७,७२६)।
त्वचा से ली जाती खुराक (भगः सूअनि न [शृङ्ग] एक देव-विमान (सम २५) लोढय पुं [दे. लोठक कपास के बीज १७१)। "सिटू न [सृष्ट] एक देव-विमान (सम निकालने का यन्त्र (गउड)।
लोमंथि पुं. [दे] नट (नंदि टिप्पण वैनयिक २५) ५ हिअ न [हित] एक देव-विमान लोढिअ वि [लोठित] लेटवाया हुआ, | बुद्धिगत १३ वा कथानक)। (सम २५) यय न [यत] नास्तिक- | सुलाया हुआ (पउम ६१, ६७)।" लोमसी स्त्री [दे] १ ककड़ी, खीरा (उप पृ प्रणीत शास्त्र, चार्वाक-दर्शन (णंदि) लोण नालवण] १लून, नमक । २ लावण्य, २५२)। २ वल्ली-विशेष, ककड़ी का गाछ लोग पुन [लोक परिपूर्ण आकाश-क्षेत्र,
शरीर-कान्ति (गा ३१६; कुमा)। ३ पुं. (वव १)संपूर्ण जगत् (उवः पि २०२) वित्त न
वृक्ष-विशेष (पउम ४२,७ श्रा २०० पव | लोय न [दे] सुन्दर भोजन, मिष्टान्न (आचा [वित एक देव-विमान (सम २५) हाण ४)। ४-देखो लवण (हे १, १७१ प्राप २, १, ४, ३) न [ख्यान] लोकोक्ति, जन-श्रुति (उप गउड औप)।
लोर पुन [दे] १ नेत्र, अाँख । २ अश्रु, आँसू ५३० टो) लोगंतिय देखो लोअंतिय (पि लोणिय वि [लावणिक] लवण-युक्त, लवण- (पिंग)। सम्बन्धी (प्रोघ ७७६)
लोल प्रकलठ्ठ] १ लेटना । २ सक. लोगिग देखो लो इअ = लौकिक (धर्मसं | लोण्ण न [लावण्य] शरीर-कान्ति (प्राकृ ५) विलोडन करना । लोलइ (पिड ४२२, १२४८)।
लोत्त न [लोत्र] चोरी का माल (स १७३) पिंग), 'लोलेइ रक्खसबल' (पउम ७१, ४०)। लोगुत्तर देखो लोउत्तर। 'वडिंसय न लोद्ध लोध्र] वृक्ष-विशेष (णाया , वकृ. लोलंत; लोलमाण (कप्प; पिंगः पउम
[वतंसक] एक देव-विमान (सम २५)। १-पत्र ६५, पएण १; सूप १, ४, २, ५३, ७९)। लोगुत्तर पु [लोकोत्तर] मुनि, साधु । २ ७ प्रौप कुमा)। देखो लद्ध = लोध्र । लोल सक [लोठय् ] लेटाना। लोलेइ, जिन-शासन, जैन सिद्धान्त (अणु २६)। लोद्ध देखो लुद्ध = लुब्ध (पामः सुर ३. ४७, | लोलेमि (उवा)। लोगुत्तरिअ वि [लोकोत्तरिक १ साधु १०, २२३; प्राप्र)।
लोल वि [लोल] १ लम्पट, लुब्ध, आसक्त का। २ जिन शासन का (अरण २६) लोप्प देखो लेप: 'जो एगं वायं लोप्पइ सो (णाया १, १ टी-पत्र ५; औप; पाम: लोगुत्तरिय देखो लोउत्तरिय (मोघ ७६५)
तिन्निवि लोप्पयंतो कि केरणावि धरिलं कप्प; सुपा ३६५)। २ पृ. रत्न-प्रभा नरक पारीयइ' (स ४६२) ।
का एक नरकावास (ठा ६-पत्र ३६५, देवेन्द्र लोट्ट अक [स्वप्] लोटना, सोना। लोट्टई |
३०)। ३ शकंराप्रभा नामक द्वितीय नरक(हे ४, १४६)। वकृ. लोय (पान)।
देना। कवकृ. लोभिज्जत (सुपा ६१)। पृथिवी का नववाँ नरकेन्द्रक-नरक-स्थान लोट्ट अक [लुठ १ लेटना। २ प्रवृत्त
लोभ पुं [लोभ] लालच, तृष्णा (माचा; (देवेन्द्र ७) • °मज्झ पुं [ मध्य] नरकावासहोना। लोट्टइ, लोट्टती (प्राकृ ७२, सून १, __ कप्प; औपः उवा ठा ३, ४)। २ वि. लोभ
विशेष (ठा ६ टो-पत्र ३६७) । सिट्ट १५, १४) । वकृ. लोटुंत (सुपा ४६६) युक्त (पडि)।
पुं[शिष्ट] नरकावास-विशेष (ठा ६ टो)। लोट्ट । पुं[दे] १ कच्चा चावल (निचू
लोभणय वि [लोभनक लोभी, लालची वित्त पुं [व] नरकावास-विशेष (ठा लोट्टय) ४) । २ पुंस्त्री. हाथी का छोटा बच्चा (आच। २, १५, ५)
६ टीः देवेन्द्र ७)। (णाया १, १-पत्र ६३), स्त्री. 'ट्रिया लोभि । व [लोभिन लोभवाला (कम्म
लोलंठिअन [दे] चाटु, खुशामद (दे ७, (णाया १, १)। लोभिल्ल ४, ४०; पउम ४, ४६) 10
२२)। लोट्टिअ वि [दे] उपविष्ट (दे ७, २५)।
लोलण न [लोठन] १ लेटना, घोलन (सूत्र लोम पुन [लोम] रोम, रोंगा, रूंगटा (उवा)। लोट्ठ वि [दे] स्मृत (षड् )।
7 १, ५, १, १७)। २ लेटवाना (उप ५१०)।
पक्खि पुं [ पक्षिन] रोम के पंखवाला | लोट [लोष्ट] रोड़ा, ढेला (दे ७, २४)।
पक्षी (ठा ४, ४-पत्र २७१) + °स वि
| लोलपच्छ [लोलपाक्ष] नरक-स्थान-विशेष लोडाविअ वि [लोटित घुमाया हुआ (गा [श] लोम-युक्त (गउड)। हत्थ पुं["हस्त] |
(देवेन्द्र ३०)।७६६) पींछी, रोमों का बना हुमा झाडू (विपा १,
लोलिक्क न [लौल्य] लम्पटता, लोलुपता लोढ सक[दे] कपास निकालना, लोढ़नाः ७-पत्र ७८ प्रौपा गाया १, २). हरिस
(पएह १, ३–पत्र ४३)।गुजराती में 'लोढवू' । वकृ. लोढयंत (राज) पुं["हर्ष] १ नरकावास-विशेष (देवेन्द्र २७)। लोलिम पुंस्त्री [लोलत्व] ऊपर देखो (कुमा)। लोढ [दे] १ लोढ़ा, शिलापुत्रक, पीसने | २ रोमाञ्च, रोमों का खड़ा होना (उत्त ५, लोलअ वि [लोलुप] १ लम्पट, लुब्ध (पउम का पत्थर (दस ५, १, ४५; उवा)। २. ३१) + हार पु[हार] मार कर धन १, ३०; २६, ४७; पामः सुर १४, ३३)। मोषधि-विशेष, पधिनीकन्द (पव ४; था | लूटनेवाला चोर (उत्त ६,२८) हार पुं २ पुं. रत्नप्रभा नरक का एक नरकावास
पारीक [ लोभय]
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