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रेसणिआ-रोमंचिअ
पाइअसद्दमहण्णवो रेसणिआ। स्त्री [दे] १ करोटिका, एक रोअ सक [ रोचय] निर्णय करना। रोपए रोगिणिआ स्त्री [रोगिणिका] रोग के कारण रेसणी प्रकार का कांस्य-भाजन (पान (दस ५,१,७७)।
ली जाती दीक्षा (ठा १०-पत्र ४७३) । दे७,१५) । २ अक्षि-निकोच (दे ७, १५) रोअरोच रुचि,
रोगिल्ल देखो रोगि (प्रामा) रेसम्मि देखो रेसम्मि, जो उण सद्धा-रहियो 'दुक्कररोया विउसा बाला
रोघस वि [द] रंक, गरीब (दे ७, ११) दणिं देइ जसकितिरेसम्मि' (स १५७)
भणियेपि नेव बुझंति।। रोच्च देखो रोंच । रोच्चइ (षड् ) रेसि (अप) देखो रेसिं (हे ४, ४२५ सण)- तो मज्झिमबुद्धीरणं हियत्यमेसो
| रोज्झ पुं [दे] ऋश्य, पशु-विशेषः गुजराती में रेसिअ वि दे] छिन्न, काटा हुमा (दे ७,
पयासो में' (चइय २६०)। 'रोझ' (दे ७, १२, विपा १, ४ पान)
रोअ [रोग] प्रामय, बीमारी (पास)। रोट्र पूंन [दे] १ तंदुल-पिष्ट, चावल प्रादि का रेसिं (अप) नोचे देखो (हे ४, ४२५) । रोअग वि रोिचक] १ रुचि-जनक । २ न. पाटा, पिसान, गुजरातो में 'लोट' (दे ७, रेसिम्मि अ. निमित्त, लिए, वास्तेः 'दसण- सम्यक्त्व का एक भेद (संबोध ३५; सुपा ११योघ ३६३३७४ पिंड ४४ बृह १). नाणचरित्ताण एस रेसिम्मि सुपसत्थों (पंचा ५५१) ।
| रोट्टग पू[दे] रोटी, रोट (महा)। १६, ४०)
रोअण न [रोदन] रोना, रुदन (दे ५, १०, रोड सक [दे] १ रोकना, अटकाना। २ रेह अक [राज ] दीपना, शोभना, चमकना । कुप्र २३५, २८६)।
अनादर करना। ३ हैरान करना । रोडिसि (स रेहइ, रेहए (हे ४, १००; धात्वा १५०; रोअण ' [रोचन] १ एक दिग्रहस्ति-कूट | ५७५)। कवकृ.रोडिजंत (उप पू १३३) । महा)। वकृ. रेहंत (कप्प)।
(इक) । २ न. गोरोचन (गउड)। रोड न [दे] घर का मान, गृह-प्रमाण (दे रेहा स्त्री रेखा] १ चिह-विशेष, लकीर रोअणा स्त्री [रोचना] गोरोचन (से ११, ७, ११)। (मोघ ४८६; गउड; सुपा ४१ वजा ६४)। ४५; गउड)।
रोडी स्त्री [दे] १ इच्छा, अभिलाषा । २ वणी २ पंक्ति, श्रेणि (कप्पू)। ३ छन्द-विशेष रोअणिआ स्त्री दि] डाकिनी, डाइन (दे ७, की शिबिका (दे ७,१५)।(पिंग) . १२; पान)।
रोत्तव्य देखो रुअ = रुद । रेहा स्त्री [राजना] शोभा, दीप्ति (कप्पू)। रोअत्तअ देखो रोअ = रुद ।
रोद्द पु[रौद्र] १ अहोरात्र का पहला मुहूर्त १२ पण रोआविअ वि रोदित] रुलाया हया (गा (सम ५१)। २ एक नृपतिः , तृतीय बलदेव ३५७, सुपा ३१७)।
और वासुदेव का पिता (ठा 8-पत्र ४४७)। रेहिअ वि [राजितशोभित (सुर १०, | रोइ वि रोगिन् रोगवाला, बीमार (गउड)।
३ अलंकार-शास्त्र-प्रसिद्ध नव रसों में एक रस
(अणु) । ४ वि. दारुण, भयंकर, भीषण रेहिर वि [ रेखावत् ] रेखावाला (हे २, रोइ देखो रुइ = रुचिः 'अवि सुंदरेवि दिएरणे
(ठा ४,४महा) । ५ न. ध्यान-विशेष, दुक्कररोई कलहमाई' (पिंड ३२१) १५६) ।
हिंसा प्रादि कर कर्म का चिन्तन (औप) रोइअ वि [रोचित १ पसंद आया हुआ रोह रेहिर । वि [राजित] शोभनेवाला (सुर
रुद्र] अहोरात्र का पहला मुहूर्त रेहिल्ल १,५०सुपा ५९), 'नयरे नयरे
। (सुज्ज १०, १३) । देखो रुद्द = रुद्र ।हिल्ले' (उप ७२८ टी)
रोइर वि [रोदित] रोनेवाला (गा ३८६ रोद्ध वि [दे] १ कूणिताक्ष। २ न. मल (दे रेहिल देखो रेहिर = रेखावत् (उप ७२८ षड्)।
७. १५)।टी)
रोंकण वि [दे] रंक, गरीब (दे ७, ११)। रोम पुन रोमन् लोम, बाल, रोंपा (प्रौप; रोअ देखो रुअ = रुद् । रोपइ (संक्षि ३६ प्राकृ रोंच सक [पिष्] पीसना। रोंचइ, (हे ४, | पाम गउड) । कूव पु [कूप] लोम का ३८) । वकृ. रोअंत, रोयमाण (गा ५४६; | १८५)।
छिद्र (गाया १, १-पत्र १३, सुर २, उप पृ १२८ सुर २, २२६)। हेकृ. रोउं रोका विदेप्रोक्षित. प्रति सिक्त (षड)- १०१)। (संक्षि ३७)। कृ रोअत्तअ, रोइअव्व (से
रोक्कणि ) विदे१ श्रृंगी, अंगवाला। रोमन रोम खान में होता लवण (दस ३, ४८; गा ३४८ हेका ३३) ।
रोकणि २ नृशंस, निर्दय (दे ७, १६) ३, ८) । रोअ देखो रुञ्च = रुच् । रोयइ, रोयए (भग; रोग पुं [रोग] १ बीमारी, व्याधि (उवाः र
रोमंच ( [रोमाञ्च] रोंगों का खड़ा होना, उव), 'रोएइ जं पहूणं तं चेव कुणंति सेवगा
भय या हर्ष से रोंगों का उठ जाना, पुलक निच्चं' (रंभा)। वकृ. रोयंत (श्रा ६)।
पएह १, ४) । २ एक ब्राह्मण-जातीय श्रावक रोअ सक [रोचय ] १ रुचि करना। २ ।
(कुमाः काल, भविः सण)। (उप ५३६)।
रोमंचइअ) वि [रोमाश्चित] पुलकित, पसन्द करना, चाहना । रोयइ, रोएमि, रोएहि रोगि वि [रोगिन् बीमार (सुपा ५७६)
रोमंचिअ जिसके रोम खड़े हुए हों वह (उत्त १८, ३३, भग)। संकृ. रोयइत्ता रोगिअ वि [रोगिक, त] ऊपर देखो (सुख (पउम ३, १०४; १०२, २०३; पामः (उत्त २६, १)। १, १४)
भवि)।
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