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रायाण-रिक्ख
पाइअसहमहण्णवो
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रायाण देखो राय = राजन्; (हे ३, ५६ राह ' [राध] १ वैशाख मास । २ वसन्त रिउ देखो उउ (हे १, १४१, कुमाः पव
ऋतु (से १,१३)। ३ एक जैन प्राचार्य | १४१)। राल । पुन [राल, क] धान्य-विशेष, (उप २८५; सुख २, १५)।
रिउ वि [ऋजु] १ सरल, सीधा (सुपा रालग एक प्रकार की कंगु (सूम २,२, राह पं दे] १ दयित. प्रिय। २ व ३४६)।२२. विशेष पदार्थ. मान्य-भिन्न रालय । १: ठा -पत्र ४०५, पिंड निरन्तर । ३ शोभित । ४ सनाथ । ५ पलित, वस्तु (पब २७०), सुत्त [मत्र] नय१६२, वजा ३४)।
सफेद केशवाला (दे ७,१३)। ६ रुचिर, विशेष (विसे २२३१,२६०८)। देखो उज्जु । राला स्त्री दे] प्रियंगु, मालकांगनी (दे ७, सुन्दर (पास)।
| रिउ पुं[रिपु शत्रु, वैरी, दुश्मन (सुर २, राहअ । पुं[राघर] १ रघुवंश में उत्पन्न । ६६ कुमा) महण पुं[मधन राक्षसराव सक [दे] पार्द्र करना। भवि. रावेहिति | राहव । (उत्तर २०)। २ श्रीरामचन्द्र (से वंश का एक राजा (पउम ५, २६३)।(विसे २४६ टी)
१२, २२, १, १३, ४७)।
रिउ स्त्री [ऋच् ] वेद का नियत अक्षरराव देखोरंज= रजय । रावेइ (हे ४, ४६)। राहा स्त्री [राधा र वृन्दावन की एक प्रधान पादवाला अंश । [1] एक वेदहेक्व. राविउं (कुमा)।
गोपी, श्रीकृष्ण की पत्नी (वज्जा १२२ ग्रंथ (गाया १, ५, कप्प)। राव सक [रायय ] पुकारना, अाह्वान करना।
पिंग)। २ राधावेध में रखी जाती पुतली रिंखण न [रिक्षण] सर्पण, गति, चाल (पउम वकृ. रावेत (औप)।
(उप पृ १३०)। ३ शक्ति-विशेष । ४ कर्ण २५, १२)।राव पुं [राव] १ रोला, कलकल (पान)।
का पालन करनेवाली माता (प्राकृ ४२)। रिखि वि [रिडिन] चलनेवाला, 'गिद्धाव२ पुकार, आवाज (सुपा ३४८; कुमा)।
मंडव पुं [मण्डप जहाँ पर राधावेध रखि हद्दन्नए (?गिद्ध व रिखी हदन्नए)'
किया जाय वह स्थान (सुपा २६६) वेह (पिंड ४७१)। रावण पुं [रावण] १ एक स्वनाम प्रसिद्ध
पुं["वेध] एक तरह की वेध-क्रिया, जिसमें रिंग देखो रिंग । रिंगइ, रिंगए (हे ४, २५६ लंका-पति (पि ३६०)। २ गुल्म-विशेष
चक्राकार घूमती पुतली की वाम चक्षु बींधी टिः षड् ; पिंग)। वकृ. रिंगत ( हास्य (पएण १-पत्र १२)।
जाती है (उप ६३५, सुपा २५५)। राविअ वि [रञ्जित] रंगा हुआ (दे ७, ५)। राहिआ। स्त्री [राधिका] ऊपर देखो (गा
रिंगण न [रिङ्गण] चलना, सपण (पद २)।राविअ वि [दे] प्रास्वादित (दे ७, ५)। राही ८६; हे ४, ४४२ प्राकृ ४२)।
रिंगणी स्त्री [दे] वल्लो-विशेष, कण्टकारिका, रास [रास, क] एक प्रकार का नृत्य, राह पुं [राह] १ ग्रह-विशेष (ठा २, ३-पत्र
गुजराती में "रिंगणी' (दे २, ४, उर २, ८) रासग। जिसमें एक दूसरे का हाथ पकड़कर । ७८; पान)। २ कृष्ण पुद्गल-विशेष (सुज्ज
रिंगिअ न [दे] भ्रमण (दे ७, ६)।। नाचते-नाचते और गान करते-करते मंडलाकार २०)। ३ विक्रम की पहली शताब्दी के एक
रिंगिअ न [रिङ्गित] १ रेंगना, कच्छप की फिरना होता है (दे २, ३८, पापा बजा | जैन प्राचार्य (पउम ११८, ११७)।
तरह हाथ के बल चलना। २ गुरु-वन्दन का १२२ सम्मत्त १४१, धर्मवि ८१)
एक दोष (गुभा २४)।राहुहय न [राहुहत] जिसमें सूर्य और चन्द्र रासभ देखो रासह (सुर २, १०२)।
रिंगिसिया स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (राज)।
का ग्रहण हो वह नक्षत्र (वव १) रासय देखो रासग (सुर १, ४६; सुपा ५००
रिंछ (अप) देखो रिच्छ = ऋक्ष (भवि) राहेअराधेय] राधा-पुत्र, कर्ण (गउड) रिछोली स्त्री [दे] पंक्ति, श्रेणी (द ७, ७ ४३३)।रासह पुंस्त्री [रासभ] गर्दभ, गदहा (पाम:
रिम [रे] संभाषण-सूचक अव्यय (तंदु ५०; सुर ३, ३१; विसे १४३६ टीः पान; चेइय
५२ टी) प्रातः रंभा)। स्त्री. 'ही (काल)।
४४ सम्मत्त १८८ धर्मवि ३७ भवि)। रासाणंदिअयन [रासानन्दितक] छन्द
. रि सक ऋ] गमन करना। कम. प्रज्जए रिंडी स्त्री [दे] कन्थाप्राया, कन्था की तरह का विशेष (अजि १२)। (बिसे १३६६)।
फटा-टूटा आच्छादन-वन (द ७, ५)। रासालुद्धय पं रासालुब्धक] छन्द-विशेष रिअ सक [री गमन करना । रियइ, रियंति,
रिक्क वि [दे] स्तोक, थोड़ा (दे ७, ६)।(अजि १०)।
रिए (सूम २, २, २०, सुपा ४४५; उत्त २४, ४)। वकृ. रियंत (पउम २८, ४)।
रिक्क देखो रित्त = रिक्त (माचा; पाना पउम रासि देखो रस्सि (संक्षि १७)।
८, ११८ सुपा ४२२, चउ ३९) रासि पुंस्त्री [राशि] १ समूह, ढग, ढेर (मोघ | रिअ सक[प्र+विश] प्रवेश करना, पैठना।
रिक्किा वि [दे] शटित, सड़ा हुआ (दे ७, ४०७; प्रौपा सुर २, ५, कुमा)। २
रिपइ (हे ४, १८३; कुमा)। ज्योतिष्क-प्रसिद्ध मेष प्रादि बारह राशि | रिअन[ऋतर गमन, पुरमा रिय साह- रिक्ख
| रिअन [ऋत] १ गमन, 'पुरमो रियं सोह- रिक्ख प्रक [रिख] चलना। वकृ. (विचार १०६)। ३ गणित-विशेष (ठा ४, माणे (भग) । २ सत्य (भग ८, ७) 'गिरिव मच्छिन्मपक्खो अंतरिक्खे रिक्खंतो
| रिअ वि [दे] लून, काटा हुमा (षड्) । लक्खिज्जई' (कुप्र ६७)।"
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