________________
मोअ-मोण पाइअसद्दमहण्णवो
se मोअ सक [मुच् ] छोड़ना, त्यागना। मोइल पुं [दे] मत्स्य-विशेष (नाट)। मोघ देखो मोह = मोघ; 'मोधमणोरहा मोमइ (प्राकृ ७०, ११९)। वक. मोअंत मोंड देखो मुड = मुण्ड (हे १, ११६ (पएह १, ३–पत्र ५५)। (से ८, ६१)। २०२)
मोच देखो मोअ = मोचय । संकृ. मोचिअ मोअ सक [ मोचय् ] छुड़वाना, त्याग मोक ' [मोक] सर्प-कंचुक, साँप का केंचुल (अभि ४७)। कराना । मोअनदि (शौ) (नाट-मालवि मोकल्ल सक [दे] भेजना; गुजराती में
| मोच न [दे] अर्घजंधी, एक प्रकार का जूता ४१) । कवकृ. मोइज्जत (गा ६७२)। _ 'मोकलवु", मराठी में 'मोकलणें । मोकल्लइ
(दै ६, १३६) मोअ पुं [मोद] हर्ष, खुशी (रयण १५ | (भवि) ।
मोच देखो मोअ = (दे) (सूम १, ४, २, महाः भवि)। मोक्क देखो मुक्क - मुक्त (षड् )।
१२) । मोअ वि [दे] १ अधिगत । २ पुं. चिभंट मोकणिआ। स्त्री [दे] कृष्ण कणिका, कमल मोचग देखो मोअग = मोचक (वसु)। प्रादि का बीजकोश (दे ६, १४८) । ३ मूत्र, मोकणी का काला मध्य भाग (दे ६, | मोट्राय प्रक [ रम्] क्रीड़ा करना । मोट्टायद पेशाब (सूत्र १, ४, २, १२; पिड ४६८
१४०)।
| (हे ४, १६८) कसः पभा १५), पडिमा स्त्री [ प्रतिमा] |
पयर मासु मोट्टाइअ न [रत] रति-क्रीड़ा, रत, मैथुन प्रस्रवण-विषयक नियम-विशेष (ठा ४, २- तुम मोक्कलइ जेण सिग्घंपि' (सुपा ६१२) (कुमा)। पत्र ६४ प्रौप; वव )
| मोक्कल देखो मुक्कल (सुपा ५८०; हे ४ | मोट्टाइअ न [मोट्टायित] चेष्टा-विशेष, प्रियमोअइ पुं मोचकि] वृक्ष-विशेष; 'सल्लइ
कथा आदि में भावना से उत्पन्न चेष्टा (कुमा)।। मोयइमालुयबउलपलासे करंजे य' (पएण
मोक्कलिय वि [दे] १ प्रेषित, भेजा हुआ १-पत्र ३१)
मोट्टिम न [दे] बलात्कार (पि २३७)। (सुपा ५२१) । २ विसृष्ट (सुपा १४०)। मोअग वि [मोचक] मुक्त करनेवाला (सम |
देखो मुट्टिम। मोक्ख देखो मुक्ख = मोक्ष (प्रौप; कुमा; मोड सक [मोटय] १ मोड़ना, टेढ़ा १. पडिः सुपा २३४)मोअग पुं [मोदक] लड्डु, मिटान्न-विशेष
हे २, १७६, उप २६४ टी; भग; वसु)- करना । २ भाँगना। मोडसि (सुर ७, ६)। (अंत ६; सुपा ४०६) । देखो मोदअ ।
मोक्ख देखो मुक्ख = मूर्ख (उप ५५५) ।। वकृ. मोडत, मोडित, मोडयंत (भवि; मोअण न [मोचन] नीचे देखो (स ५७५; | मोक्ख न [दे] वनस्पति-विशेष (सूम २, महाः स २५७)। कवकृ. मोडिजमाण गउड)। २,७)।
(उप पृ ३४) । संकृ. मोडेउं (सुपा १३८) मोअणा स्त्री [मोचना] १ परित्याग (श्रावक | मोक्खण न [ मोक्षण ] मुक्ति, छुटकारा मोड ' [दे] जूट, लट (दे ६, ११७)। ११५)। २ मुक्ति, छुटकारा (सूत्र १, १४, (स ४१८, सुर २, १७)।
मोडग वि [मोटक] मोड़नेवाला (पएह १, १८)। ३ छुड़वाना, मुक्त कराना (उप मोग्गड पुं[दे] व्यन्तर-विशेष (सुपा ४०८)। ४-पत्र ७२)। ५१०)। देखो मुग्गड ।।
मोडण न [मोटन] मोड़न, मोड़ना (वज्जा मोअय देखो मोअग (भग; पउम ११५, ६ | मोग्गर पुं[दे] मुकुल, कलिका, बौर (दे ६, ३८) सुपा ४०६; नाट-विक २१)। १३६)
मोडणा स्त्री मोटना] ऊपर देखो (परह १, मोआ स्त्री [मोचा] कदली वृक्ष, केला का मोग्गर पुं [मुद्गर] मृगरा, मोगरी। २ ३-पत्र ५३)। गाछ (राज)।
कमरख का पेड़ (हे १, ११६, २, ७७)। मोडिअ वि [मोटित] १ भग्न, भाँगा हुमा मोआव सक [ मोचर ] छुड़वाना। मोप्रा- ३ पुष्पवृक्ष-विशेष, मोगरा का गाछ (पएण (गा ५४६; णाया १, ६-पत्र १५७) वेमि, मोमावेहि (नाट-शकु २५; मृच्छ | १-पत्र ३२) । ४ देखो मुग्गर । पाणि पएह १, ३-पत्र ५३)। २ आनंडित, ३१९)। भवि. मोप्रावइस्ससि (पि ५२८)। पुं["पाणि] एक जैन महर्षि (अंत १८)। मोड़ा हुआ (विपा १, ६-पत्र ६८स कर्म. मोयाविज्जइ (कुप्र २६१)। वकृ. मोग्गरिअ वि [दे] संकुचित, मुकुलित (दे
३३५) मोयावंत (सुपा १८६)। ६, १३६ टी)।
मोढ पुं [मोढ] एक वणिक-कुल (कुप्र २०)। मोआवण न [मोचन] छुटकारा कराना मोग्गलायण ) न [मौद्गलायन, ल्या] मोढेरय न [मोढेरक] नगर-विशेष (दे ६, (सिरि ६१८ स ४७)।
मोग्गल्लायण १ गोत्र-विशेष (इक ठा ७ १०२ ती ७)। मोआवि। वि [मोचित] छुड़वाया हुमा
सुज्ज १०, १६)। २ पुंस्त्री. उस गोत्र में मोण न [मौन मुनिपन, वाणो का संयम, मोइअ (पि ५५२; नाट-मृच्छ ८६ उत्पन्न (ठा ७-पत्र ३९०)।'
चुप्पी (ोप; सुपा २३७ महा)। 'चर वि सुर १०, ६; सुपा ४७७, महा: सुर २, मोग्गाह देखो मुग्गाह । मोग्गाहइ (?) [चर] मौन व्रतवाला, वाणी का संयम३६, ६,७८ सुपा २३२० भवि) (धात्वा १४६)।
वाला, वाचंयम ( ५, १-पत्र २९६
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org