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अइपाइअ-अइरिंप
पाइअसहमहण्णवो
'जो दव्वखेत्तकालभावकयं जं जहि जया काले। करने की अनुज्ञा न हो; 'अइभूमि न गच्छेजा, २ राजा वगैरह का नगर प्रादि में धूम-धाम तल्लेसुस्सुत्तमई, अइपरिणामं वियारणाहि' गोयररंगगो मुणी' (दस ५, १, २४)। । से प्रवेश करना (ठा ४) । (बृह १)।
अइमट्टिया स्त्री [अतिमृत्तिका] कीचवाली अइयाय वि [अतियात] गया हुमा, गुजरा अइपाइअ वि [अतिपातिक] हिंसा करनेवाला मट्टी (जीव ३) ।
हुआ ( उत्त २०)। (सूम २, १, ५७)।
अइमत्त । वि [अतिमात्र] बहुत, परिमाण अइयार पुं [अतिचार]उल्लंघन, अतिक्रमण अइपास पुं [अतिपाव] भगवान् अरनाथ अइमाय से अधिक (उवठा )।
(भवि) । २ गृहीत व्रत या नियम में दूषण के समकालिक ऐरवत क्षेत्र के एक तीर्थंकर
अइमुक | पुं [अतिमुक्त, क] १ स्वनाम लगाना (श्रा ६)। देव (तित्थ)।
अइमुंन । ख्यात एक अन्तकृद् (उसी जन्म में | अइर भ[अचिर] जल्दी, शीध्र (स्वप्न ३७), अइपास सक [अति + दृश्] अतिशय अइमुंतय मुक्ति पानेवाला) जैन मुनि, जो अइर न [अजिर] आंगन, चौक (पान)। देखना, खूब देखना । अइपासइ (सूत्र १, १, अइमुत्त ! पोलासपुर के राजा विजय का पुत्र अइर दे] मायुक्त, गांवका राज-नियुक्त
अइमुत्तय ) था और जिसने बहुत छोटी ही मुखिया (दे १,१६)। अइप्पगे प्र[अतिप्रगे] पूर्व-प्रभात, बड़ी
उम्र में भगवान् महावीर के पास अइरन [दे. अतर] देखो अयर-अतर सबेर (सुर ७, ७८)।
दीक्षा ली थी (अन्त)। २ कंस
(सुपा ३०)। अइप्पमाण वि [अतिप्रमाण] १ तृप्त न होता
का एक छोटा भाई (प्राव) । ३ अइर वि [दे] प्रतिरोहित (पिंड ५६०; हुया भोजन करनेवाला । २ न. तीन बार से
वृक्ष-विशेष (पउम ४२, ८)। ४
| ५६१)। अधिक भोजन (पिंड ६४७)।
माधवी लता (पाम; स ३५) ।
अइरजुवइ स्त्री (दे) नई बहू, दुलहिन (दे १, अइप्पसंग पुं[अतिप्रसङ्ग] १ प्रतिपरिचय
५ न. अन्तगड़दसा नामक अंग-ग्रन्थ (पश्चा१०)। २ तर्क-शास्त्र में प्रसिद्ध अति
का एक अध्ययन (अन्त) । (हे १,
| अइरत्त पुं[अतिरात्र अधिक तिथि, ज्योतिष व्याप्ति-नामक दोष (स १६६; उवर ४८ )।
२६;१७८, पि २४६)।
की गिनती से जो दिन अधिक होता है वह आइप्पसंगि वि [अतिप्रसङ्गिन] अतिप्रसंग अइय वि [अतिग प्रतिक्रान्तः 'अव्वो अइन
| (ठा ६)। दोषवाला (अज्झ १०)। म्मि तुमे, गवरं जइ सा न जूरिहिइ' (हे
अइरत्त वि [अतिरक्त] १ गाढा लाल । २ २, २०४) । २ करनेवाला; 'ठाणाइय अइप्पहाय न [अतिप्रभात] बड़ी सबेर (गा |
विशेष रागी। कंबलसिला, कंबला श्री (औप)।
[°कम्बलशिला, कम्बला मेरु पर्वत के अइबल वि [अतिबल] १ बलिष्ठ, शक्तिशाली अइय वि [अतिग] प्राप्त (राय १३४)।
पांडक वन में स्थित एक शिला, जिसपर (प्रौप)। २ न. अतिशय बल, विशेष सामर्थ्य । 'अइय वि [दयित] १ प्रिय, प्रीतिपात्र । २ जिनदेवों का जन्माभिषेक किया जाता है ३ बड़ा सैन्य (हे ४, ३५४)। ४ पुं. एक | दया-पात्र, दया करने योग्य (से , ३१)।। (ठा २, ३) । राजा. जो भगवान ऋषभदेव के पूर्वीय चतुर्थ अइयच्च देखो अइगच्छ।
अइरा प्र [अचिरात् ] शीघ्र, जल्दी (से भव में पिता या पितामह था (पाचू)। ५ | अइयण न [अत्यदन] बहुत खाना, अधिक भरत चक्रवर्ती का एक पौत्र (ठा ८)। ६ भोजन करना ( वव २)।
अशास्त्री [अचिरा] पांचवें चक्रवर्ती और भरत क्षेत्र में आगामी चौबीसी में होनेवाला | अइयय वि [अतिगत] गया हुआ (स
सोलहवें तीर्थंकर-देव की माता (सम पांचवां वासुदेव (सम ५) । ७ रावण का एक ३०३) ।
अइराणी १५२; पउम २०, ४२)। . योद्धा (पउम ५६, २७)।
अइयर सक [अति + चर्] १ उल्लंघन | अइराणी स्त्री [दे] १ इन्द्राणी । २ सौभाग्य के अइभद्दा स्त्री [अतिभद्रा] भगवान् महावीर करना। २ व्रत को दूषित करना। वकृ. | लिए इन्द्राणी-व्रत करनेवाली स्त्री (दे १,५८)। के प्रभास नामक ग्यारहवें गणधर की माता | अइयरंत (सुपा ३५४)।
अइरावण ऐरावग] इन्द्र का हाथी(पाम)। (पाचू)।
अइया सक [अति + या] जाना, गुजरना | अइरावय पुं[ऐरावत] इन्द्र का हाथी (भवि)। अइभूइ पुं[अतिभूति] एक जैन मुनि, जो (उत्त २०)।
अइराहा स्त्री [अचिरामा बिजली, चपला पंचम वासुदेव के पूर्व जन्म में गुरु थे (पउम अइया स्त्री [अजिका] बकरी, छागी (उप
(दे १, ३४ टी)। २०, १७६)। | २३७)।
अइरि न [अतिरि] धन या सुवर्ण का प्रतिअइभूमि स्त्री [अतिभूमि १ परम प्रकर्ष। अइया स्त्री [दयिता] स्त्री, पली (से, क्रमण करनवाला, धनाव्य ( षड्। २ बहुत जमीन (से३, ४२) । ३ गृहस्थों ३१)।
अइरिंप पुदेि] कथाबन्ध, बातचीत, कहानी के घर का वह भाग, जहाँ साधुओं का प्रवेश | अइयाण न [अतियान] १ गमन, गुजरना।। (द १,२६) ।
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