________________
पाइअसहमहण्णवो
११ पृथिवी,
१०४
तदर्थ
भुल्ल वि [भ्रष्ट] भूला हुआ, 'कामंधमो कि भू स्त्री [भू] १ पृथिवी, धरती (कुमाः जह स इत्यो संतो भूमो तदन्नहाभूमों' (विसे पभमेसि भुल्लों (श्रु १५३, सुपा १२४ कुप्र ११६; जीवस २७६, सिसि १०४४)। २२५१)। ७ उपमा, प्रौपम्य । ८ तादर्थ्य, ५१६; कप्पू) ।
२ पृथ्वीकाय, पार्थिव शरीरवाला जीव (कम्म तदर्थ-भाव; 'प्रोवम्मे तादत्थे व हुज एसित्थ भुल्लविअ वि [भ्र शित] भ्र किया हुआ
४, १०; १६ ३६), 'आर पुं[दार] भूयसद्दो त्ति' (श्रावक १२४)। ६ न. (कुमा)।
शूकर, सूपर (किरात ९) कंत पु प्रकृत्यर्थः 'उम्मत्तगभूए' (ठा ५, १)। १० भल्लिर वि [भ्र शिन] भूलनेवाला, 'मयरण
[कान्त] राजा, नर-पति (था २८)Mपुं. एक देव-जाति (पण्ह १, ४, इक; णाया प्रभुल्लिरदुल्ललियभल्लिसुमहल्लतिक्खभल्लीहि
'गोल पु [गोल] गोलाकार भूमण्डल १,१-पत्र ३६)। ११ पिशाच (पान दे (सुपा १२३)
(कप्पू)। चंद पुं [चन्द्र] पृथिवी का ४, २५)। १२ समुद-विशेष (देवेन्द्र २५५)।
चन्द्र, भूमि-चन्द्र (कप्पू)। °चर वि [चर] १३ द्वीप-विशेष (सुज १६) । १४ पुंन. जन्तु, भुल्लुंकी [दे] देखो भल्लुंकी (पान)।
भूमि पर चलने फिरनेवाला मनुष्य आदि प्राणी; 'पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई', भुव देखो हुव = भू । भुवइ (पि ४७५)।
(उप ६८६ टी)। °च्छत्त पुन [च्छत्र] 'भूयाणि वा जीवाणि वा' (प्राचा १, ६, ५, भुवदि (शौ) (धात्वा १४७)। भूका. भुवि वनस्पति-विशेष (दे १, ६४)तणग देखो |
४१, ७, २, १, २, १,१,११; पि ३६७); (भग)।
यणय (राज)। धण पू[धन] राजा 'हरियाणि भूपाणि विलंबगारिण' (सूत्र १, ७, भुव देखो भुअ = भुज (भवि) ।
(श्रा २८)। धर पु [धर] १ राजा, ८. उवर १५६)। १५ पृथिवी आदि पाँच भुवइंद देखो भुअइंद (से ५, ७१) । नरपति (धर्मवि ३)। २ पर्वत, पहाड़ (धर्मवि
द्रव्य, महाभूत (स १६५), कि मन्ने पंच भुवण न [भुवन] १ जगत्, लोक (जी १ ३ कुप्र २६४) 'नाह पु[नाथ] राजा |
भूया' (विसे १६८६)। १६ वृक्ष, पेड़, सुपा २१ कुमा २, १५)। २ जीव, प्राणी; (उप ६८६ टी; धर्मवि १०७)। 'मह पु
वनस्पति (प्राचा १, १, ६, २) इंद पुं 'भुवणाभयदाणललिअस्स' (कुमा) । ३ | [मह] अहोरात्र का सत्ताईसवाँ मुहुर्त (सम
["इन्द्र] भूत-देवों का इन्द्र (पि १६०)। प्राकाश (प्रासू १००)। क्खोहणी स्त्री ५१) 'यणय पुन [तृणक] वनस्पति
'ग्गह पुं ["ग्रह] भूत का आवेश (जीव [°क्षोभनी] विद्या-विशेष (सुपा १७४)। विशेष (पएण १ -- पत्र ३४)। रुह पुं
३) ग्गाम पुं[ग्राम] जीव-समूह (सम गुरु पुं["गुरु] जगत् का गुरु (सुपा ७५) [रुह] वृक्ष, पेड़ (गउड; पुप्फ ३६२
२६)। "त्थ वि [°ार्थ] यथार्थ, वास्तविक 'नाह पु[नाथ] जगत् का त्राता (उप पू धर्मवि १३८) व पु [प] राजा
(गउड; पउन २८, १४) । "दिण्णा देखो ३५७)। पाल पुं [पाल] विक्रम की ( उप ७२८ टी ती. ३७ ६६, काल)।
दिन्ना (पडि) "दिन्न पुं["दिन] १ एक बारहवीं शताब्दी का गोपगिरि का एक वइ j[पति राजा (सुपा ३६; पिंग)- जैन प्राचार्य (पंदि)। २ एक चाण्डाल-नायक राजा (मुणि १०८६६)- बंधु पु[°बन्धु]. वाल पुं[पाल] १ राजा (गउड; सुपा |
(महा)। दिन्ना नो ["दिन्ना] १ एक अन्त१ जगत् का बन्धु। २ जिनदेव (उप २११ ५६०)। २ व्यक्ति-वाचक नाम (भवि)
कृत स्त्री (अंत)। २ एक जैन साध्वी, महर्षि टी)1 "सोह पु[ शोभ] सातवें बलदेव वित्त पुं[वित्त] राजा (श्रा २८), 'बीढ
स्थूलभद्र की भगिनी (कप्प) + मंडलपविके दीक्षक एक जैन मुनि (पउम २०,२०५)। न ["पीठ] भूतल, भूमि-तल (सुपा ५६३)
भत्ति न [ मण्डलप्रविभक्ति] नाट्य-विधि लंकार पु[लंकार] रावण का एक हर देखो धर (सण)।
का एक भेद (राज) लिविनी [लिपि] पट्ट-हस्ती (पउम ८२, १११)। भू [भूयस् ] कर्म-बन्ध का एक
लिपि-विशेष (सम ३५) 4 वडिंसा स्त्री भुवणा स्त्री [भुवना] विद्या-विशेष (पउम ७, भूअ प्रकार (कम्म ५, २२, २३), 'गार
[वितंसा] १ एक इन्द्राणी (जीव ३)। १४०)। पुं [ कार] वही अर्थ (कम्म ५, २२)। देखो |
२ एक राजधानी (दीव) वाइ, वाइय, भुश्का (मा) देखो भुक्खा
मुक्खा
(प्राकृ १०१)। (प्राक १०१)। भूओगार ।।
वादिय पुं [°वादिन, वादिक] १ एक भुस देखो बुसः 'तुसरासी इवा भुसरासी इवा' भूअ [दे] यन्त्रवाह, यन्त्र-वाहक पुरुष (दे देव-जाति (इक; पण्ह १, ४; औप)। २ (भग १५)।
वि. भूत-ग्रह का उपचार करनेवाला, मन्त्रभसंढि स्त्री [दे. भुशुण्डि ] शस्त्र-विशेष भूअ वि [भूत] १ वृत्त, संजात, बना हुआ । तन्त्रादि का जानकार (सुख १, १४) वाय (सरण)
२ प्रतीत, गुजरा हुआ (षड् : पिंग)। ३ पुं [वाद] १ यथार्थवाद । २ दृष्टिवाद, भू देखो भुव = भू। भोमि (पि ४७६)।
प्राप्त, लब्ध (णाया १,१-पत्र ७४) । ४ | बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (ठा १०-पत्र संकृ भोत्ता, भोदूण (शौ) (हे ४, २७१)। समान, सदृश, तुल्यः 'तसभूएहि' (सूम २, ४६१) । विज्जा, वेजा स्त्री ["विद्या] भू स्त्री [5] भौं, अाँख के ऊपर की रोम- ७, ७, ८ टो)। ५ वास्तविक, यथार्थ, सत्य __ आयुर्वेद का एक भेद, भूत-निग्रह-विद्या (विपा राजि; 'रना भूसन्नाए' (सुपा ५७६; श्रा १४; 'भूप्रत्थेहि चित्र गुणेहि' (गउड), 'भूयत्थसत्य- १, ७-पत्र ७५ टी)। गणंद पुं [°ानन्द] सुपा २२६; कुमा)।
गंथी' (सम्मत्त १३६)। ६ विद्यमानः ‘एवं । १ नागकुमार देवों का दक्षिण दिशा का इन्द्र.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org