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पाइअसहमहण्णवो
भदण-भिद
भित्तूणं, भिंदिअ भिंदिऊण, भेत्तआण, ७४ उवा) 4 लाभिय पुं [लाभिक भिजिय देखो भिझिय (भग)। भेत्तण (रंभा; उत्त ६, २२; नाट--विक्र भिक्षुक-विशेष (प्रौप)।
भिज्झा स्त्री [अभिध्या] गृद्धि, लोभ (कस)।१७. पि ५८६; हे २, १४६, महा)। हेकृ. भिक्खाग 1 वि [भिक्षाक] भिक्षा माँगने
| भिझिय वि [अभिध्यित] लोभ का विषय, भिंदित्तए, भित्तुं, भेत्तुं (पि ५७८ कप्पा भिक्खाय वाला, भिक्षा से शरीर-निर्वाह
सुन्दर (भग ६, ३–पत्र २५३)। पि ५७४) । कृ. भिदियव्व (एएह २, १),
करनेवाला (ठा ४, १-पत्र १:५; आचा २, १, ११, १, उत्त ५, २८ कप्प)
भिट्ट सक [दे] भेंटना। कर्म. 'बहुविहभिट्टभेअव्व (से १०, २६)
णएहि भिट्टिजइ लद्धमाणेहि' (सिरि ६०१)। भिंदण न भेदन खण्डन, विच्छेद (सुर १६, | भिक्खु पुंस्त्री [भिक्षु] १ भोख से निर्वाह |
भिट्टण न [दे] भेंट, उपहार: गुजराती में ५६)।
करनेवाला, साधु, मुनि, संन्यासी, ऋषि (पाचाः सम २१; कुमा; सुपा ३४६; प्रासू
| 'भेटणु (सिरि ७५६६०१)। भिंदणया स्त्री [भेदना] ऊपर देखो (सुर १,
१६६), 'भिक्खणसीलो य तमो भिक्खु त्ति भिट्ठा स्त्री [दे] ऊपर देखो (सिरि ३९२)।
निदरिसिप्रो समए' (धर्मसं १०००)। २ | भिड सक[दे] भिड़ना-१ मिलना, सटना, भिदिवाल (शौ) देखो भिडिवाल (प्राकृ
बौद्ध संन्यासीः 'कम्मं चयं न गच्छद चउबिह सट जाना । २ लड़ना, मुठभेड़ करना । भिडइ ८७) :
भिक्खुसमयम्मि' (सूअनि ३१) । स्त्री. °णी (भवि), भिडंति (सिरि ४५०) । वकृ. भिडंत भिंभल देखो भिब्भल (सुपा ८३, ३६५,
(प्राचा २, ५, १, १; गच्छ ३, ३१; कुप्र (उस ३२० टीः भवि) पि २०६)
१८८)। पडिमा स्त्री [ प्रतिमा] साधु का भिडण न [दे] लड़ाई, मुठभेड़; 'सोंडीरसुहडभिंभलिय वि [विह वलित] विह्वल किया अभिग्रह-विशेष, मुनि का व्रत-विशेष (भग; भिडणिक्कलंपडं' (सुपा ५६६) हुआ, 'ता गजइ मायंगो विझवणे य (? म) प्रौप) । पडिआ श्री [प्रतिज्ञा] साधु का | भिडिय वि [दे] जिसने मुठभेड़ की हो वह, यपवाहभिभलिओ' (धर्मवि ८०)। उद्देश, साधु के निमित्त, से भिक्खू वा भिक्खुणी लड़ा हुआ (महाः भवि)। भिभसार पुं[भिम्भसार] देखो भंभसार
वा से जं पुरण वत्थं जाणेजा असंजए भिक्खु
भिणासि पुं [दे] पक्षि-विशेष (पएह १, (प्रौप) पडियाए कीयं वा धोयं वा रत्तं वा' (प्राचा
१ पत्र ८)। भिभा स्त्री [भिम्भा] देखो भंभा (राज)।
२, ५, १, ४)।
भिण्ण देखो भिन्न (गउड; नाट-चैत ३४)। भिंभिसार ' [भिम्भिसार] देखो भंभसार भिक्खुड देखो भिच्छुड (राज)।
मरद (अप) पुं[महाराष्ट्र] छन्द का एक भिक्खोंड देखो भिच्छुड (अणु २४)। (ठा ६-पत्र ४५८; पि २०६)
भेद (पिंग)। भिभी स्त्री [भिम्भी] वाद्य-विशेष, ढक्का (ठा
भिखारि (अप) वि [भिक्षाकारिन् भिखारी, | भित्त देखो भिश्च (संक्षि ५)।
भीख माँगनेवाला (पिंग)। ६ टी—पत्र ४६१)।
भित्तग । न [दे. भित्तक] १ खण्ड, भिगु देखो भिउ (पउम ४, ८६मोघ ३७४)भित्तय । टुकड़ा। २ आधा हिस्सा (प्राचा भिक्ख सक [भिक्ष ] भीख मांगना, याचना
भिगुडि देखो भिउडि (पि १२४)। २, ७, २, ८६७)। करना । भिक्खइ (संबोध ३१) । वकृ.
| भिच्च पुंभृत्य] १ दास, सेवक, नौकर (पानः | भिक्खमाण (उत्त १४, २६)।
भित्तर न [दे] १ द्वार, दरवाजा (दे ६, सुर २, ६२, सुपा ३०७)। २ वि. अच्छी
१०५) । २ भीतर, अंदर (पिंग)। भिक्ख न [भैक्ष] १ भिक्षा, भीख । २ भिक्षा
तरह पोषण करनेवाला (विप। १, ७-पत्र | समूह (मोघमा २१६; २१७); 'न कज्ज
भित्ति स्त्री [भित्ति भीत (गउड; कुमा)। | ७५)। ३ वि. भरणीय, पोषणीय (पएह १, मम भिक्खेण (उत्त २५, ४०), जीविअ
संध न[सन्ध] भीत-दीवार का संधान, २-पत्र ४०) भाव पुं[भाव नौकरी वि [जीविक] भीख से निर्वाह करनेवाला,
'जाएवि भित्तिसंधे खणियं खत्तं सुत्तिक्ख| (सुर ४, १५६) भिखमंगा (प्राकृ8; पि ८४)।
सत्येणं' (महा)। भिच्छ देखो भिक्ख (पि ६७)। भिक्ख देखो भिक्खा (पि ९७, कुप्र १८३; भिच्छा देखो भिक्खा (गा १६२)।
भित्तिरूव वि [दे] टंक से छिन्न (दे ६, धर्मवि ३८)।
भिच्छंड वि [दे. भिक्षोण्ड] १ भिखारी, | भित्तिल न [भित्तिल] एक देव-विमान (सम भिक्खण न [भिक्षण] भीख मांगना, याचना | भिक्षा से निर्वाह करनेवाला । २ पुं. बौद्ध ३८)। (धर्मसं १०००)।
साधु (णाया १, १५-पत्र १९३)। भित्तु वि [भेत्तु] भेदन करनेवाला (पव २)। भिक्खा स्त्री [भिक्षा] भीख, याचना (उव; भिजन [भेद्य] कर-विशेष, दण्ड-विशेष | भित्तुं । देखो जिंदा सुपा २७७: पिंग)। यर वि [चर] (विपा १, १-पत्र ११)।
भित्तण । देखो भिद। भिक्षुक (कण्य) यरिया स्त्री [चर्या] भिज्जा देखो भिज्झा (ठा २, ३-पत्र ७१; भिद देखो भिद । भिदंति (पाचा २, १, ६, भिक्षा के लिये पर्यटन (प्राचा प्रौप; भोघभा सम ७१)।
९)। भवि. भिदिस्सति (माचा २,१,६,
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